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आलमीरा में चिपके आईने पर
चिपकती हुई युवती
या यूं कहूँ कि अर्द्ध चंद्राकार मुड़कर
नशीले नजरों से निहारते हुए
चला रही थी उँगलियाँ
और बस गुलाबीपन
पसरता जा रहा था होंठो पर
जो गुलाबी होंठ को कर रहा था
सुर्ख गुलाब की पंखुड़ियों सा
थी शायद कुछ ऐसी जल्दी
जैसे एक व्यक्ति ने कुछ
लगातार पोस्ट डेटेड चेक पर करते हुए हस्ताक्षर
ली हो जम्हाई
और फिर से उंगली घुमाई
बेशक फलो गड़बड़ाया
पर फिर भी सिग्नेचर उग आई चेक के पत्ती पर
हाँ होंठ के बाएँ कोने से ज्यादा ही छितरी लग रही थी
पर कोई ना, होता है
एक्वेरियम में
फडफड़ाती लाल मच्छलियों सी
दर्द के बावजूद चमकती छमकती सी
दृढ़ निश्चय की लाली सहेजे
हर गुजरने वाले को
करती है आकर्षित
उद्दाम आकर्षण
और रंग का प्रतिफल
जा चुकी स्त्री के द्वारा छोड़ा हुआ ग्लास
कुछ बची रह जाती है कॉफी
और ग्लास के कोने पर रह जाते हैं
मासूम गुलाबी एहसास
जैसे सिल्ड वसीयत पर लगा हो सरकारी ठप्पा
वो आई ही थी ' का कन्फ़र्मशन
एनिवे
जिंदगी का गुलाबी होना जरूरी है न
तो, गुलों से कह दो फूल खिलखिला रहे ।
1 comment:
सुंदर प्रस्तुति.
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