जिंदगी की राहें

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Friday, February 14, 2020

खिलखिलाहट और खीज


खिलखिलाहट से परे
रुआंसे व्यक्ति की शायद बन जाती है पहचान,
उदासियों में जब ओस की बूंदों से
छलक जाते हों आंसू
तो एक ऊँगली पर लेकर उनको
ये कहना, कितना उन्मत लगता है ना
कि इस बूंद की कीमत तुम क्या जानो, लड़की!
खिलखिलाते हुए जब भी तुमने कहा
मेरी पहचान तुम से है बाबू
मैंने बस उस समय तुम्हारे
टूटे हुए दांतों के परे देखा
दूर तक गुलाबी गुफाओं सा रास्ता
ये सोचते हुए कि
कहीं अन्दर धड़कता दिल भी तो होगा ना
सिर्फ मेरे लिए
खिलखिलाहट और खीज
अन्योनाश्रय संबंधो में बंधा प्रेम ही तो था
जिस वजह से
झूलती चोटियों के साथ मुस्कुराती, गाती आँखें
और चौड़ा चमकता माथा
चमकीली किरणों सा आसमान एक
जो फैलकर
बताता सूर्योदय के साथ
कि पकी बालियों सी फसल बस कटने वाली है
सुनो मेरी खीज से परे
बस तुम खिलखिला देना
सौगंध है तुम्हें
ताकि बस तुम हो तो लगे ऐसा कि
मेरे आसमान में भी उगती है धनक,
कभी न कभी
बारिश के बाद निकलती है एक टुकड़ा धूप
और खिलती है फ़िज़ा
सिर्फ मेरे लिए
सुनो कि बार बार हूँ कह रहा
खूब खिलखिलाती रहना
महसूस करना
मेरे साथ बह रही एक नदी
मचलती, बिफरती, डूबती, उतराती
जीवंत खिलखिलाती नदी
ताकि मुझपर पड़ती रहे
मासूम बूंदों की फुहार ...
छन छन छन छन ।
समझे ना !!
~मुकेश~

4 comments:

Rohitas Ghorela said...

लाजवाब, प्यारी रचना।
बहोत ही मंत्र मुग्ध करने वाले भाव
प्रेम रस में डूबी ये रचना कमाल की है।

आइयेगा- प्रार्थना

Nitish Tiwary said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति।

Sudha Devrani said...

वाह!!!
बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बहुत प्यारी रचना.