आज
पार कर लिया है तुमने
उम्र का सत्रहवां घेरा भी
बेशक नहीं है कोई बड़ी घटना
न ही हमने उसको खास बनाने की..की कोशिश
पर जो पहली उम्मीद मुझमें जगी वो ये कि
अब हर बार यात्राओं में
सूटकेस लेकर चलोगे तुम आगे
हर बार याद दिलाओगे तुम कि
रुकिए पापा
मम्मी रह गयी है पीछे
हर थमते-रुकते-भागते स्टेशन पर
बिसलरी की बोतल लाने की जिम्मेवारी
होगी तुम्हारी
अब तो टीटी को ट्रेन टिकट भी चेक
तुम ही करवाना
आखिर ऐसे शुरुआती उम्मीदें ही तो
आगे समृद्ध होंगी
मम्मी से पूछना
एक किलो सात सौ साठ ग्राम के थे तुम
जब हॉस्पिटल के ऑपेरशन थियेटर के सामने
नर्स ने पकडाते हुए कहा था
लो पकड़ो इसको, बेटे के पापा
और स्तब्ध-आश्चर्यचकित सा मैं बहुत देर तक समझ नहीं पाया
कि पापा बन जाने के बाद होता क्या है परिवर्तन
मेरे कुछ समझने या अनुभव करने से पहले
तब तक तुम्हे इन्क्युवेटर में सुलाया जा चुका था
अंडर ग्रोथ चाइल्ड होने के वजह से
रहे थे तुम एडमिट तब भी,
जब तुम्हारी मम्मी आ चुकी थी घर
और हम संदेह के लम्बे गलियारे में खड़े बस ताकते रहते
कहीं बदल गए तुम तो
हर बच्चे पर नजर रखते चौकीदार बन गए थे उन दिनों?
हॉस्पिटल से घर लाते समय
एक बित्ते के थे तुम और
हम ढूंढ रहे थे वो खास निशान
जो बता पाए बेटा है हमारा
आज सत्रह वर्षों बाद
जब उस पहले दिन के सहेजे खास क्षणों की तुलना
करता हूँ आज वाले तुमसे
तत्क्षण फील कर पाता हूँ पितृत्व
दिख जाती है ढेरों वो रातें
जब ब्रोंकाइटिस से भींच जाती थी
तुम्हारी छाती
तुम्हारी तेज साँसे बढ़ाती थी हमारी धड़कन
और आज भरे हुए तुम्हारे कुल्हे
बता रहे तुम एक शानदार प्लेयर हो टीटी के
हर बाप की तरह हूँ आज
अनिश्चित भरे तुम्हारे भविष्य के लिए चिंतित
जन्मदिन पर बढ़ती मोमबत्तियों की कतारें
आगाह करती है
बेटा बड़ा होने ही वाला है
या यूँ कहें कि एक युवा बेटे का बाप हूँ
पर चाहता हूँ आज भी
रुक जाए समय
ताकि बस स्वयं
अनुभव करता रहूँ उम्मीदों का जवां होना
और तुम भी ताजिंदगी खिलखिलाते हुए कह सको
- नया स्पोर्ट्स शूज चाहिए पापा।
वो सभी तस्वीरें आज भी पसन्द हैं
मुझे व मम्मी को,
जिनमें तुम केंद्र हो
व तुम्हारी दोनो बाहें हैं त्रिज्यात्मक दूरी में
और हमदोनों परिधि में रहे ।
जिंदगी तुमसे है, जीवन रेखा ही रहना
- तुम्हारा पापा !
~मुकेश~
पटना बिट्स पर मेरी कविता सिमरिया पुल पटना बीट्स पर मेरी कविता सिमरिया पुल |
No comments:
Post a Comment