जिंदगी की राहें

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Tuesday, December 20, 2016

कहीं इमरोज न बन जाऊं


प्रेम से पल्लवित कोंपलें
होती हैं जवां,
दो नादाँ खुशमिजाज और चहकते दिलों में
हिलोरे मारती है चाहतें
शायद हो कोई जूलियट, लैला या रांझा 
जो थामे उसके हाथों को
और प्यार भरी नजरों से ताकते हुए कह भर दे
वही घिसे पिटे तीन शब्द
आई लव यू !
बदलती उम्र का तक़ाज़ा
या देर से उछला प्रेम स्पंदन
या यूँ कह लो
प्रेम भरी साहित्यिक कविताओं का
नामालूम असर
कहीं अन्दर से आई एक आवाज
चिंहुका प्रेम उद्वेग
हो मेरे लिए भी कोई अमृता -
जो मेरे पीठ पर नाख़ून से
खुरच कर लिख सके
किसी साहिर का नाम!
कहीं इमरोज न बन जाऊं !
~मुकेश~
100कदम की प्रतिभागी 

4 comments:

Onkar said...

बहुत बढ़िया

kuldeep thakur said...


दिनांक 22/12/2016 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...

दिगम्बर नासवा said...

शब्दों में इमरोज़ को उतार ही दिया ई आपने ...

nidhi kumari said...

wow very nice..happy new year2017
www.shayariimages2017.com