सुनो !!
कुछ नया गढ़ूं?
नया विस्तार पाने की एक कोशिश
क्यों? है न संभव?
मानो ! तुम हो !
चौसठ घर वाले चेस की
सत्ताधारी क्वीन !
मानना ही पड़ेगा क्योंकि
किसी भी सूरत में ताज तो तुम्हे ही मिलेगा !
पर मैं क्या?
मुझमे क्या है दिखता
हाथी-घोडा-नाव
यानि जानवर जैसा समझूँ स्वयं को
न बाबा
फिर वजीर ?
लेकिन इतनी भी औकात नही !
चलो ऐसा करते हैं
'क्वीन' यानी तुम्हारे ठीक सामने वाला
पैदल सिपाही मैं !!
ताकि कैसे भी बस करीबी बनी रहे
फिर
फिर मैं हर संभव करूँगा रक्षा तुम्हारी
हाँ, जान देने तक की शर्त है शामिल !
और तुम
तुम बस मुझमे विश्वास बनाये रखना !
जिंदगी/खेल यूँ ही बढ़ती रहेगी आगे
अंततः समय व चालों के साथ
बस आठवें अंतिम पंक्ति तक पहुँच पाऊं
शायद यही होगा तुम्हारे साथ से हासिल
मेरे सफलता का पैमाना
काश, कहीं इससे पहले धराशायी न हो जाऊं ?
तो होगा
एक शानदार विस्मयकारी परिवर्तन
प्यादे से वजीर में परिणत !!
सुनो !
विश्वास डगमगाए नही
वजीर बनते ही होगी मेरी पहली चाल
चेक व मेट !!
समझी क्वीन !!
मेरे सह संपादन में प्रकाशित साझा संग्रह 100 कदम, प्रतिभागी रचनाकार नंदा पाण्डेय व उनके पति के हाथो में ... |
3 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
पर मैं क्या?
मुझमे क्या है दिखता
हाथी-घोडा-नाव
यानि जानवर जैसा समझूँ स्वयं को
न बाबा
फिर वजीर ?
लेकिन इतनी भी औकात नही !
खुबसूरत रचना , खासकर ये लाइनें
बहुत सुन्दर
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