जिंदगी की राहें

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Tuesday, October 21, 2014

वो आयी थी ......


चाय की ट्रे
दो रखे थे कप
चाय की अंतिम बूंद थी नीचे
एक कप के कोने पर
थी लिपिस्टिक 
एक आध टूटे बिस्किट
और बच गए थे कुछ मिक्सचर
समझे न .
वो सच में आयी थी !

कई बार सोचा
वो जा चुकी
इनको होना चाहिए अब सिंक में
पर हर बार
अलग अलग सोफे पर बैठ कर
महसूसना
अच्छा लग रहा था
वो सच में आयी थी !

उसके जिस्म से
या शायद परफ्यूम जो लगाया था
उड़ने लगी थी उसकी सुगंध भी
फिर से कमरे की वही पूरानी
जानी पहचानी बास
लगी थी छाने
पर मन तो अभी भी
वही उसके
केविन क्लेन के इटरनीटी में
था खोया
अच्छा लग रहा था
वो सच में आयी थी !

मैंने कलेंडर
घडी की सुइयां
मन का कंपन
सोचा सबको रोक लूं
कर दूं स्थिर
ताकि हो सबूत
खुद को समझा पाने का
वो सच में आयी थी ........... न !!

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4 comments:

आशीष अवस्थी said...

सुंदर , व , अच्छा लेखन , सर धन्यवाद !
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Unknown said...

mahsusna hi to satya hai....kitni sahzata se lekhan karte ho....umda

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर

Pratik Maheshwari said...

यादों से वक़्त को रोकिये अन्यथा वह तो निरंतर बहती रहेगी..