जिंदगी की राहें

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Wednesday, July 30, 2014

एक सच्चाई ऐसी भी .......


एक सुन्दर नवयुवती
थी, स्विमिंग सूट में 
(अधोवस्त्र भी कह सकते हैं )
पूल में छप छप छपाक 
के आवाज के साथ, कूद पड़ी 
अब कर रही थी अठखेलियाँ, तैरते हुए 
उड़ती तितलियों या मछलियों सी 
दूर खड़ा इंस्ट्रक्टर, निहार रहा था 
सुरक्षा की दृष्टि से !! है न जरुरी !!

एक स्त्री रोग विशेषज्ञ
पुरुष डाक्टर के क्लिनिक में
अनुभवों की गहराती रेखाएं लिए
एक चालीस-वर्षीय महिला
बेझिझक थी लेटी
थी तनावग्रस्त बेशक
डाक्टर टटोल रहा था वक्ष
मेमोग्राफी का पहला टेस्ट था शायद
जिंदगी का भरोसा दे रहा था डॉक्टर !!

एक पूर्ण ढकी हुई स्त्री
सुन्दर सौम्य भारतीय परिधान में
गुजर रही थी मार्केट से
था कमर के पास, थोड़ा उघड़ा हुआ देह
रह गया था बचा
पल्लू के ढकने से शायद !
बींध रही थी, पता नहीं कितनी सारी
कामुक पुरुष नजरें !!
स्त्री महसूस रही थी खुद को
असहाय, नग्न और बेबस !!

किसी ने कहा
ब्यूटी लाइज ओन बीहोल्डर’स आईज
सुन्दरता तो देखने वाले के नजर में होती है
वैसे ही शायद
नग्नता भी शायद कुदृष्टि का कमाल है
मानसिक दिवालियेपन का
है न सच !!
________________
एक सच्चाई ऐसी भी !!




11 comments:

Kailash Sharma said...

अश्लीलता देखने वाले की आँखों में होती है...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

प्रतिभा सक्सेना said...

देखनेवाले का मनोभाव ही प्रधान होता है लेकिन सामने के दृष्य का प्रभाव भी अदृष्ट नहीं रहता .

Misra Raahul said...

मुकेश भैया सही कहा।
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति।
नई रचना : सूनी वादियाँ

Yogi Saraswat said...


ये हकीकत है मुकेश जी ! पागल पड़ी हुई अधनंगी को कोई तिरस्कार से भी नहीं देखता !

दिगम्बर नासवा said...

गहरी बात ... मन में किसी के क्या ... कौन जाने ...

shikha varshney said...

जाकी रही भावना जैसी ..

कालीपद "प्रसाद" said...

मन के भाव के ऊपर निर्भर करता है लेकिन आपकी बात में वास्तविकता छुपी है |नई पोस्ट माँ है धरती !ता छुपी है |

Unknown said...

वाह बहुत बेहतरीन

Unknown said...

वाह.. बहुत बढ़िया तरीके से सच को बयां किया है आपने

Rohitas Ghorela said...

मैं बॉयज हॉस्टल में रहता था, मैंने देखा है या इसे परीक्षण समझो..

90% लड़के छोटे वस्त्र पहने लड़कियों को घूरते थे, मौका मिले तो उनका पीछा भी करते थे और ज्यादातर कमेंट पास छोटे वस्त्रों या तंग कपड़ों पर ही होते थे .

किसी ओर ही मैटर' पर बात चल रही होती थी और कोई एक दम से कम या तंग कपड़ों में लड़की वहां से गुजरी तो कमबख्त बात करने का मैटर ही बदल जाता था.

अब कैसे कहें की ये देखने वाले पर है ये तो दिखाने वाले पर होता है.

अब जवां खून होता है तो बहक भी जल्दी जाता है.

पर जब भी कोई लड़का किसी लड़की को पुरे कपड़ों में देखता था तो ये पक्का है की उसकी मानसिकता कभी कुंठित नहीं होती थी ,,,, हल्की सी मुस्कान उसकी सुंदरता के लिए पेश जरूर कर देते थे.

"माफ़ी चाहता हूँ किसी को आहत किया हो तो."
:)

Meena Pathak said...

मानसिक दिवालियापन ही कहेंगे