(मेरे छोटे पापा, छोटी माँ और मेरे बेटे और भाई के बेटी के साथ) |
छोटका पप्पा !
है न प्यारा सा सम्बोधन,
दिल से बहुत करीब,
बचपन की यादों से जुड़ा
एक महत्वपूर्ण हिस्सा !!
पापा से ज्यादा डर था,
पर प्यार भी पाते थे पापा से ज्यादा,
साइकिल के डंडे पर बैठकर,
पूरे शहर के सफर में हम होते थे हमसफर,
उफ! कितना समझते-समझाते
हमें,
लगता, कितना उपदेश देते !
खूब पढ़ो! खूब खेलो ! खूब खाओ !!
और हम,
हूँ – हाँ ! के साथ उनकी बातों को उड़ाते रहते
पढ़ाई के लिए डांट का होता अजीब सा डर,
तभी तो, सामने रख कर विज्ञान/गणित की किताब
“हवा हूँ, हवा मैं, बसंती हवा हूँ” ....
जैसी बावली सी कविता चिल्लाने लगते और
उनके ओझल होते ही खिलखिला उठते,
दूर आटा गूँथती छोटी माँ नहीं रह पाती चुप,
मुस्कुरा ही देती ...
था मुझे दिल से संबन्धित रोग
घर में खुसफुसाहट बराबर चलती
चक्कर लगता मेरा डाक्टर के क्लीनिक पर,
मैं साइकिल के डंडे पर सवार और
“ छोटका पप्पा” थे न मेरे साथ
बहुतों बार देखी थी मैंने उनके माथे पर
चमकती पसीने की बूंद पर,
धीरज रखो सब ठीक, होगा
यही, आवाज सुनी थी उनसे !
मेहनत और चाहत
ये दो शब्द कैसे होते हैं
अब समझा हूँ उनसे
बेशक पारिवारिक उलझन व
दूरियाँ
है वो वजह जो हैं हम दूर
पर “छोटका पप्पा दिल के बहुत अंदर बसते हो तुम” !!
8 comments:
दिल से लिखी गई दिल की बात |
उम्दा ये आपकी अभिव्यक्ति
एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''भूल कर भी, अब तुम यकीं, नहीं करना''
बहोत सुन्दर रचना दिल तक पहूँचती दिल की बात.....
बहोत-सुंदर रचना दिल की बात दिल तक ....
बहोत सुन्दर रचना दिल तक पहूँचती दिल की बात.....
:))))
Beautiful
Sunder abhivyakti
Badhai
Mukesh ji
Hmare shubh kamnaye aapke sath hai
आश्वस्त करता जिनका अस्तित्व
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