जिंदगी की राहें

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Tuesday, December 24, 2013

पगडंडी


अपर्णा के एल्बम से 

कोई नहीं
नहीं हो तुम मेरे साथ
फिर भी
चलता जा रहा  हूँ
पगडंडियों पर
अंतहीन यात्रा पर ...

कभी तुम्हारा मौन
तो, तुम्हारे साथ का कोलाहल
जिसमें होती थी
सुर व संगीत
कर पाता हूँ, अभी भी अनुभव
चलते हुए, बढ़ते हुए
तभी तो बढ़ना ही पड़ेगा ...

मेरे बेमतलब वाली
बिना अर्थ वाली कविता
जैसी ही तो हो तुम !
लोग तो बेवजह
बिना पढे, कह देते हैं “वाह”
मैं स्वयं भी
कहाँ  हो पाता हूँ संतुष्ट
फिर भी, बढ़ना तो पड़ेगा ही ...

बस तुम हो न साथ
अहसासों में
साँसो में
रहना ! रहोगी न !! 


11 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हर रचना एक नया भाव लेकर आती है, मन हरा भरा कर जाती है।

Unknown said...

ये कविता बेमतलब हो ही नहीं सकती :)

Aparna Bhagat said...

ye yaatra hai... pagdandiyaan saakshi hain us vikas ki jo antarman mein chalti rehti hai... har kadam ek naya bodh le kar aati hai.. sundar likha hai....

ANULATA RAJ NAIR said...

रहेगी....ज़रूर रहेगी :-)

सुन्दर भावाव्यक्ति...

अनु

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर भाव.

वाणी गीत said...

बेमतलबी में बड़ा मतलब है कविता का !

Pallavi saxena said...

जब बेमतलब में यह भाव हैं तो मतलब वाली कैसी होगी :) सुंदर भाव अभिव्यक्ति...

Anju (Anu) Chaudhary said...

दिल के अहसास ....बहुत खूब ...दिल के साथ

Neeraj Neer said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

Onkar said...

सुन्दर रचना

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
:-)