अपर्णा के एल्बम से |
कोई नहीं
नहीं हो तुम मेरे साथ
फिर भी
चलता जा रहा हूँ
पगडंडियों पर
अंतहीन यात्रा पर ...
कभी तुम्हारा मौन
तो, तुम्हारे साथ का कोलाहल
जिसमें होती थी
सुर व संगीत
कर पाता हूँ, अभी भी अनुभव
चलते हुए, बढ़ते हुए
तभी तो बढ़ना ही पड़ेगा ...
मेरे बेमतलब वाली
बिना अर्थ वाली कविता
जैसी ही तो हो तुम !
लोग तो बेवजह
बिना पढे, कह देते हैं “वाह”
मैं स्वयं भी
कहाँ हो पाता हूँ संतुष्ट
फिर भी, बढ़ना तो पड़ेगा ही ...
बस तुम हो न साथ
अहसासों में
साँसो में
रहना ! रहोगी न !!
11 comments:
हर रचना एक नया भाव लेकर आती है, मन हरा भरा कर जाती है।
ये कविता बेमतलब हो ही नहीं सकती :)
ye yaatra hai... pagdandiyaan saakshi hain us vikas ki jo antarman mein chalti rehti hai... har kadam ek naya bodh le kar aati hai.. sundar likha hai....
रहेगी....ज़रूर रहेगी :-)
सुन्दर भावाव्यक्ति...
अनु
बहुत सुंदर भाव.
बेमतलबी में बड़ा मतलब है कविता का !
जब बेमतलब में यह भाव हैं तो मतलब वाली कैसी होगी :) सुंदर भाव अभिव्यक्ति...
दिल के अहसास ....बहुत खूब ...दिल के साथ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
सुन्दर रचना
बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
:-)
Post a Comment