रोड-साइड ढाबे पर
तीन साइकल
हीरो, हरक्युलस और एवन के
अगले एक से टायर
थे, एक जगह जुड़े हुए
पर हम थे चार
चल रही थी मंत्रणा
सामने चूल्हे पर उबलती चाय
लो अब आ गई
कटिंग चाय की ग्लास
साथ ही दो समोसे, पर चार हिस्सेदार
और! और !
कालेज के ही सुंदरी के खूबसूरती पर
उसके सादगी पर भी
चल रही थी लंबी बहस
यार !! वो तो पढ़ाई में भी है अव्वल
देखो न कैसे सर की हो गई है चहेती
कुछ तो करना ही होगा
बेशक, उसके लिए पढ़ना ही
होगा
ऐसी ही सिरियस बहस के लिए
करनी पड़ती थी पीरियड बंक
चाय की चुसकियों में लगाते थे
लंबा समय हम
बिल पे करने वाला बकरा
हर दिन होता था अलग !!
पर यार! आज भी
उन निरुद्देश्य मीटिंग्स
के सहेजे हुए दृश्य
मानस पटल पर ला देते हैं
खूबसूरत मुस्कुराहट !!
अच्छा लगता है न !!
14 comments:
jab padhne me awwal hona hi tha to class kyu bunk karte the.......:) sajeev chtarn..:0
masti or wo bhi student life ki...sajiv chitran..
ज़िन्दगी हवाई जहाज़ जैसे आगे बढ़ गयी...मगर साइकिल की यादें अब भी ताज़ा है...
:-)
अनु
वाकई बहुत अच्छा लगता है :)
बीते हुए पल याद करना अच्छा लगता है ..
बिना किसी विशेष बात के बतियाना भी अच्छा लगता है, कभी कभी।
बीती बातों का सैलाब ... मन में सुख का आभास भर देता है ...
बीती बातें कभी कभी दस्तक दे जाती है !
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याद न जाए हाय .. बीते दिनों की .. :)
बीते दिनों को याद करना बेहद ख़ुशी देता है ...सुन्दर प्रस्तुति !!
बहुत सुन्दर यादें हैं आप की मुकेश जी, भूले भी तो कैसे
कुछ बातें कुछ यादें यूँ ही मुस्कराहट ला देती हैं.
......मुस्कराहट बीते दिनों की :-))
ये स्मृतियाँ नहीं होती तो ये कविताई भी बस नून तेल लकड़ी तक सिमटी होती :)
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