हर दिन सुबह नौ बजे के घंटे के साथ
जिस कमरे में दाखिल होते हैं हम
वो पुरानी सरकारी बिल्डिंग का एक कमरा
पता नहीं क्यों??
उसे है, झूठ बोलने की बुरी लत
बेशक हम खुद को नहीं समझा पाये
पर, उसे हर क्षण समझाने की होती है कोशिश
'झूठ बोलना पाप है'.. 'भ्रष्टाचार गुनाह है'!
जिस कमरे में दाखिल होते हैं हम
वो पुरानी सरकारी बिल्डिंग का एक कमरा
पता नहीं क्यों??
उसे है, झूठ बोलने की बुरी लत
बेशक हम खुद को नहीं समझा पाये
पर, उसे हर क्षण समझाने की होती है कोशिश
'झूठ बोलना पाप है'.. 'भ्रष्टाचार गुनाह है'!
ढेरों फाइलों व पुराने आलमारियों से
लदा फदा ये अजीब सा कमरा
करता रहता है करोड़ो के हिसाब किताब!
पर, ये कमरा कभी नहीं बता पाता कि
इस कमरे में बैठे अधिकतर लोग
पैसों की तंगी झेलने वाले
हैं, दर्द से भरे, चुप्पी साधे, साधारण से लोग !!
लदा फदा ये अजीब सा कमरा
करता रहता है करोड़ो के हिसाब किताब!
पर, ये कमरा कभी नहीं बता पाता कि
इस कमरे में बैठे अधिकतर लोग
पैसों की तंगी झेलने वाले
हैं, दर्द से भरे, चुप्पी साधे, साधारण से लोग !!
कईयों बार, फाइलों के साथ, टेबल के नीचे
सुविधा युक्त कमरे में जीने वाले, दिखाते हैं नोटों की झलक
ला देती है कई आँखों में अनायास एक चमक
ये लुभाते हैं, खास होती है इनकी महक
पर उस साधारण से इंसान के धड़कते दिल की आवाज
“गुनाह है” के साथ रोक लेता है बढ़ता हाथ
फिर भी, ये सीलन भरी दीवार वाला कमरा
ब्रेकिंग न्यूज़ में शक जताती तस्वीर के साथ
बनता है लिविंग-रूम बहस का महत्वपूर्ण मुद्दा !!
सुविधा युक्त कमरे में जीने वाले, दिखाते हैं नोटों की झलक
ला देती है कई आँखों में अनायास एक चमक
ये लुभाते हैं, खास होती है इनकी महक
पर उस साधारण से इंसान के धड़कते दिल की आवाज
“गुनाह है” के साथ रोक लेता है बढ़ता हाथ
फिर भी, ये सीलन भरी दीवार वाला कमरा
ब्रेकिंग न्यूज़ में शक जताती तस्वीर के साथ
बनता है लिविंग-रूम बहस का महत्वपूर्ण मुद्दा !!
महंगाई भत्ते की 4-5% की उतरोत्तर वृद्धि
जिसका एक-एक रुपया होता है अहम
तभी तो इसी कमरे मे हम बनाते हैं बजट
पर आम लोगों में ये बनती है एक ऐसी खबर
“सरकारी कर्मचारी के कारण 100 करोड़ का बोझ”
मानों हर डीए के बाद, वे बन जाते हैं करोड़पति
पर, इसी झूठ को सच बनाता है ये कमरा
बिना किसी सुविधा के धनवान बनाता कमरा !!
जिसका एक-एक रुपया होता है अहम
तभी तो इसी कमरे मे हम बनाते हैं बजट
पर आम लोगों में ये बनती है एक ऐसी खबर
“सरकारी कर्मचारी के कारण 100 करोड़ का बोझ”
मानों हर डीए के बाद, वे बन जाते हैं करोड़पति
पर, इसी झूठ को सच बनाता है ये कमरा
बिना किसी सुविधा के धनवान बनाता कमरा !!
सच पर, झूठ का लबादा पहना ही देता है,
ये अजीब सा कमरा
खैर! बना ले हर सच को झूठ
दिखा दे कैसी भी तस्वीर
पर है तो, पालनहार, तारनहार
ये सरकारी कार्यालय का कमरा
बदलती जिंदगी में वाचाल होता ये कमरा
ये अजीब सा कमरा
खैर! बना ले हर सच को झूठ
दिखा दे कैसी भी तस्वीर
पर है तो, पालनहार, तारनहार
ये सरकारी कार्यालय का कमरा
बदलती जिंदगी में वाचाल होता ये कमरा
है न.....................
~मुकेश~
27 comments:
हाहाहाहाहा...मार ही डालेंगे आप.....जाहिर है जब अधिकतर लोग मारे-मारे फिर रहे हैं तो दूसरों की बढ़ती तन्ख्वाह से जलन तो होगी ही....वैसे भी जहां खर्चों को कंट्रोल करना चाहिए वहां होता नहीं कंट्रोल..औऱ फिर कटौती के नाम पर आम कर्मचारी की सुविधा छीनी जाती है तो बाहर जनता पर अनावश्यक बोझ बढ़ाया जाता है।
कितना कुछ समेट लिया इस एक रचना में ...
एक होती है काजल की कोठरी.. कैसा भी सयाना जाए. एक लीक लागी है तो लागी है... ये कमरा और भी जादुई है... यहाँ करोड़ों का बजट बनता है.. देश चलता है... और चलता रहता है.. अच्छाई और बुराई का महाद्वंद्व.. कभी कोई पड़ला भारी कभी दूसरा... और कभी सबसे आगे निकल जाती है अफवाहों की हरम हवा...... और इन सब के बीच जो सरकारी कर्मचारी है.. वो अपने भीतर के आम आदमी से भी लड़ता रहता...... बेहतरीन.. सामयिक.. और मच्योर रचना.. बधाई मुकेशजी
garm hawa padhen pls..
बहुत कुछ कहती ये रचना
behad khoobsurat rachna ..
jahan tabadle nahi hote,puri naukari yek kothri me gujar jati hai,jane kitne katu or madhur anubhav hote hain,haranubhuti ko aapne yek rachna me samet liya...bahut achhe...
बेहद खूबसूरत पंक्तियों में उभर कर आता सत्य...
बेहतरीन :-)
aaj ke samay par chot karti hui,ek bebak kavita..... bahot achcha likhe hain.....
behtreen saamaayik sattek v bebaak rachna ... kisi sarkaari buildink ke kamre ka drashya uker diya ..aapne ... sach ke kareeb ..badhaai Mukesh ji
Bahut sateek varnan aaj ke bojh taley Dabe sarkaari karamchari ka... Se élan aur noto ki chamak.. Yahi hai zindagi aam vyakti ki... Khoobsurti se vyange ke liye Badhai...
जिंदगी के इस सच से रूबरू करवाने एक लिए आभार
office ke es kamre ke saath harkamre ki ak alag kahani hoti hai...wakae deewaaren, files..sab bolte hue dikhe...awesome....
एक ऐसा सच जिसे जानते भी सब हैं मानते भी सब हैं . परन्तु शक के दायरे में भी रखते हैं .
एक समसामयिक और उत्कृष्ट रचना
stik rachna.....ek sach ye bhi hai...
ये ही सच ही है, बेह्तरीन रचना.
रामराम.
बहुत कुछ झेलती हैं इस कमरे की दीवारें ,प्रत्यक्ष दर्शी हैं हर उस गुनाह की जो इसकी औट में होता है इसमें रखी टेबल के नीचे अपना ईमान बेचते लोगों की,किसी की अन्दर ही अन्दर तड़पती मजबूरी की ,और दम तोडती सच्चाई की और जाने क्या क्या?फिर भी इन दीवारों को खामोश ही रहना पड़ता है,मुकेश जी इस रचना ने बहुत कुछ खोल कर रख दिया बहुत ही उत्कृष्ट रचना लिखी है एक ख़ास मुद्दे पर ,बहुत बहुत बधाई आपको इसको साझा करने के लिए ,ये आज के चर्चा मंच पर भी डाली है
हर गुनाहों का साक्षी
बचपन
एक व्यक्त सच, दुख देता हुआ सच।
सच ही तो है ...बहुत ही बढ़िया रचना...
ईंटे गारे की दीवारों में धडकता है एक दिल …आकार लेते अरमान …. उन्हें साकार करने के लिए बहता पसीना … सब कुछ उन फ़ुइलो के गडमड होता जाता है घडी की सुई के साथ … जिंदगी को वही तो है जो गतिमान रखता है इससे ज्यादा महवपूर्ण तो शायद अपने अपनों का खुशियों भरा चेहरा और अपनी खुद चलती हुई सांसें ही हो सकती हैं मुकेश
वाचाल शब्दों को भरपूर स्नेह …. यूँही प्रवाह बना रहे …. ....
बिलकुल ही अलग विषय ....
कोसने वाले बहुत मिलते हैं पर हमदर्द ....बहुत कम
एक ईमानदार सरकारी व्यक्ति का नज़रिए रखती सुंदर रचना
पूरा दफ्तर ... :)
सच्चाई का बखान करती रचना ...
पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं (24) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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