लगता है !
फिर से हो जाऊंगा लेट
ऑफिस जाते समय
जूते के लेस को बांधते हुए
जब गई दीवाल घड़ी पर नजर
हर दिन, छोटी-मोटी वजह
और अंततः
ऑफिस एंट्री गेट पर लगी
पंचिंग मशीन पर रखी उंगली
बता ही देती थी
हो ही गए न, दस-बीस मिनट लेट!
कल तो पक्का
समय पर नहीं, समय से पहले पहुंचूंगा
दिया खुद को ढाढ़स
आधे घंटे पहले का लगाया एलार्म
श्रीमती जी को भी दी हिदायत
सुबह उठा भी समय से, जगा
फिर आँखों ने ली एक हल्की सी झपकी
जो बन गया खर्राटा
फिर वही ढाक के तीन पात
पंचिंग मशीन में दर्ज दस-बीस मिनट लेट !
टाइम मशीन में बंधती जिंदगी
हर सुबह लाती खुद पर खीज
हर नया दिन बदल जाता है कल में
आने वाला नया कल होगा न परफेक्ट
इसी सोच में कटती जा रही जिंदगी
इस्स! ये कल आएगा कब
काश मिल पाती
समय की स्वतन्त्रता
ताकि हर दिन खुद को न लगता
फिर से हो गए न दस-बीस मिनट लेट!
फिर से हो जाऊंगा लेट
ऑफिस जाते समय
जूते के लेस को बांधते हुए
जब गई दीवाल घड़ी पर नजर
हर दिन, छोटी-मोटी वजह
और अंततः
ऑफिस एंट्री गेट पर लगी
पंचिंग मशीन पर रखी उंगली
बता ही देती थी
हो ही गए न, दस-बीस मिनट लेट!
कल तो पक्का
समय पर नहीं, समय से पहले पहुंचूंगा
दिया खुद को ढाढ़स
आधे घंटे पहले का लगाया एलार्म
श्रीमती जी को भी दी हिदायत
सुबह उठा भी समय से, जगा
फिर आँखों ने ली एक हल्की सी झपकी
जो बन गया खर्राटा
फिर वही ढाक के तीन पात
पंचिंग मशीन में दर्ज दस-बीस मिनट लेट !
टाइम मशीन में बंधती जिंदगी
हर सुबह लाती खुद पर खीज
हर नया दिन बदल जाता है कल में
आने वाला नया कल होगा न परफेक्ट
इसी सोच में कटती जा रही जिंदगी
इस्स! ये कल आएगा कब
काश मिल पाती
समय की स्वतन्त्रता
ताकि हर दिन खुद को न लगता
फिर से हो गए न दस-बीस मिनट लेट!
29 comments:
यथार्थ अभिव्यक्ति!!
:-)
जनाब जल्दी सो जाया करें...जल्द नींद खुले तो ये सुबह की भाग दौड़ बच जायेगी!!!
अनु
बस, यही लगता है कि समय २० मिनट आगे बढ़ जाता।
आज के समय की सच्चाई
अनुशासित होना अत्यंत आवश्यक है ...अगर हम जीवन मे सफलता चाहते हैं तो ....
अच्छी बात कह रही है रचना ...!!
टाइम मशीन में बंधती जिंदगी
हर सुबह लाती खुद पर खीज
हर नया दिन बदल जाता है कल में
आने वाला नया कल होगा न परफेक्ट
इसी सोच में कटती जा रही जिंदगी
इस्स! ये कल आएगा कब..
..sachchai ka darshan..
लो हम भी हो गए न लेट... :)लेकिन इस आने वाले कल को परफेक्ट बनाने के लिए हर रोज़ खुद को तैयार करना। यह एक तरह से अच्छी बात ही तो है। आख़िर उम्मीद पर दुनिया कायम है भाई :))एक न एक दिन तो सही समय आकर ही रहेगा। बस उम्मीद का दमान और कोशिश नहीं छोडनी चाहिए।
bat sahi hai magar sanymit to hona hi padega
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति.....
:) hum sab ka yahi haal hai....ghadi kay saath bandh gayi hai zindagi
हम सब घडी के कांटे के साथ भाग रहे है ,देखन है काँटा आगे जाता है या हम
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
क्या बात है मुकेश .....छा गए तुम तो
नए नए टॉपिक....बहुत खूब
Har yek wyakti aaj ke wyast jindgi me yunhi bhagambhag karta hai.....sahaz abhiwyakti.....
rozmarra ki badi badi samasyaaon ko utni hi sahajta aur saralta se abhivyakt kar dena hi aapki sabse badi khasiyat hai !
सपने कम देखा करो न जल्दी उठा करो कम से कम ऐसे परेशानिया तो नही होगी
:))
सच कहा जिंदगी एकदम टाइम मशीन हो गयी है हर वक़्त समय देखते रहो ....
समय से न बंधें हों तो कोई भी काम न हो पाये ... कम से कम 10 मिनट ही सही देर से पहुँच तो जाते हैं ... स्वतन्त्रता मिल जाये तो न जाने पहुँचें भी या नहीं ... यथार्थ अभिव्यक्ति
jindagi me samy ka apna mahtv hai ...sundar rachna ...
बहुत सुंदर रचना..ये टाइम मशीन कुछ ऐसी हैं मानो लगता है कि घड़ी की सुईयां पीठ पर कोड़े बनकर बरस रही हैं।।।
bahut badhiya ....badhai
ईद मुबारक.....teez kee shubhkamnayen
Uf! Ye daftar samay pe pahunchne ka tension....sach! Zindagi bandh-si jati hai!
रोचक अभिव्यक्ति !
समय हमारे और हम समय के पीछे दौड़ते रहेंगे....यूँ ही कट जाएगा सफ़र..... :)
रोचक अभिव्यक्ति !
समय हमारे और हम समय के पीछे दौड़ते रहेंगे....यूँ ही कट जाएगा सफ़र..... :)
hmmm... wakai, wo punching machine jane q time bata deti aur perfect rahti... kash wo bhi kabhi-kabhi 10-20 min late ho jaya kare...
but atleast mai abhi tak to office time par pahuch hi jati hu... ;)
haan, lunch time par jarur gussa aat hai... :)
bahut badhiya...
बिलकुल सही ....वाकई सुबह से शाम तक ,,शाम से रात...और रात से फिर सुबह...अक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया.....हा जिंदगी थोड़ी आसान हो जाती है अगर कहीं से एक टुकड़ा आसमान का अपनी मुट्ठी में आ जाए ...फिर जिंदगी की राह् आसान हो जाती है....घड़ी के दौड़ते काँटे भी अच्छे लगते हैं और...अपनी मुट्ठी से फिसलता आसमान भी..............
बिलकुल सही ....वाकई सुबह से शाम तक ,,शाम से रात...और रात से फिर सुबह...अक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया.....हा जिंदगी थोड़ी आसान हो जाती है अगर कहीं से एक टुकड़ा आसमान का अपनी मुट्ठी में आ जाए ...फिर जिंदगी की राह् आसान हो जाती है....घड़ी के दौड़ते काँटे भी अच्छे लगते हैं और...अपनी मुट्ठी से फिसलता आसमान भी..............
Yatharth ko pribhashit karti sundar rachna ...
ज़िंदगी टाइम मशीन से चल ही कहाँ पाती है. मौक़ा पाते ही घड़ी को धता बता देती है... १०-20 मिनट लेट सही. २४ घंटे में ४८ घंटे का काम कैसे हो? बहुत अच्छी रचना.
बहुत खूब :)
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