आज एक सोच मन मे आई
क्यूँ न समर्पित करूँ एक कविता
एक "मजदूर" को ...
पर उसके लिए
कविता/गीत/छंद/साहित्य
का होगा क्या महत्व ?
फिर सोचा
मेहनतकश जिंदगी पर लिख डालूँ कुछ
पर रहने दिया वो भी
क्योंकि तब लिखनी पड़ेगी "जरूरतें"
और जरूरत से ज्यादा
भूख, प्यास, दर्द, पसीना
पर भी तो लिखना पड़ेगा ...
और हाँ, अहम जरूरतें, इन पर क्या लिखूँ
गेहूं, चावल - दाल
मसाला व तेल भी
कहाँ से ला पाऊँगा उनके लिए
कुछ क्षण सुकून के
ठंडे हवा का झोंका भी तो
नहीं बंध पाएगा शब्द विन्यास में
छोड़ो यार! रहने देते हैं !
मना लेते हैं "मजदूर दिवस"
आने वाला है "एक मई" ...........
33 comments:
नहीं बंध पाएगा शब्द विन्यास में
......... बहुत सही कहा आपने
इन अंतिम पंक्तियों में
सशक्त भाव लिये अनुपम प्रस्तुति
आभार
बेहद प्रभावी.
सच है क्या होगा ये दिवस मनाने से.
बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...एक दिन मज़दूर दिवस मनाने से क्या उनके कष्ट दूर हो जायेंगे...
बस दिवस माना कर इतिश्री समझ लेते हैं लोग .... ज़रा उनकी ज़िंदगी में झांक कर तो देखें ... बहुत सार्थक रचना ।
sahi kaha , kya hoga yah manane se .....sundar abhivyakti
bahut hi prabhavshali ..... kuch topic aise hote hain jinpar likhne ka bahut kam log sochte hain or aap hamesha aise hi topics choose karte hain ......... bahut achcha likha aapne
bahut hi prabhavshali ..... kuch topic aise hote hain jinpar likhne ka bahut kam log sochte hain or aap hamesha aise hi topics choose karte hain ......... bahut achcha likha aapne
jabardast! aupcharikta ka jamana hai! bahut achha likha hai aapne!
बहुत सार्थक व हृदय स्पर्शी रचना!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
यही तो करते आए हैं हम सभी हमेशा से बस यही...हर रोज़ बस कोई न कोई दिवस मानना और अगले दिन भूल जाना बस यही तो रह गया अब नाम ज़िंदगी का...सार्थक रचना शुभकामनायें
badhiya post}
बहुत सही ,सशक्त भाव, प्रभावी प्रस्तुति
बहुत ही सटीक व्यंग .....
हमें दुनिया के ग़मों से क्या सरोकार
बस मजलिस सजाने का बहाना चाहिए
आवाज़ तो बुलंद करनी ही चाहिए... प्रयासरत रहना अधिक श्रेयस्कर... प्रासंगिक रचना के किए शुभकामनाए...
जो लिखते हो दिल को छू जाते हैं ......।
कुछ छूटा ही नहीं
हार्दिक शुभकामनायें
मना लेते हैं "मजदूर दिवस" ओद ही तो उतारना है ...वाणी विलास के लिए second best विषय ..फिलहाल .....
सीधा दिल से दिल तक पहुँचता बल्कि कहूँ सोच्नेपे मजबूर करता तुम्हारा एक और हस्ताक्षर .
bhut khoob Mukesh ji ..sach hai hum karte kya hain sirf formality ke liye har din celebrate karte hain ...bina us din ka mahatva samje ....
बहुत खूब मुकेश बाबू!! यही तो करते आ रहे हैं हम लोग!! महिला दिवस मनाया और महिमा मंडित किया नारी को.. दायित्व पूरा हुआ.. अगले दिन से चीर हरण का सिलसिला शुरू!!
एक सार्थक और कडवा सच!!
सच ही तो है
सच है, एक दिन देकर लोग कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं।
हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे एक खेत नहीं एक बाग़ नहीं हम सारी दुनिया मांगेगे ...........
मज्दूरू का समर्पित बेहतरीन रचना मुकेश जी .......
बहुत सार्थक रचना........
बहुत खूब
बहुत सार्थक रचना!
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व्यंगात्मक अंदाज़ में बाखूबी लिखा है आपने मजदूरों का हाल ... सच है कोई नहीं पूछता उनको बीएस आज के दिन को छोड़ के ...
सार्थक और सशक्त रचना | पता नहीं इस दिवस के मानाने से कुछ होगा भी या नहीं | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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sahi hai har sal ki tarh man jayega ye varsh bhi ..prabhavi rachna..
सार्थक, सशक्त लेखन ! सच असली मुद्दों को कौन छेड़ना चाहता है ! बस हवाई बातें और हवाई वायदे कर मजदूर दिवस मना लेने में ही भलाई है ! बहुत ही चुटीली रचना ! शुभकामनायें !
बस... हर साल ऐसे ही मना लिया जाता है मजदूर दिवस. बहुत गंभीर रचना, शुभकामनाएँ.
सशक्त रचना, गहरे तक उतरती हुई
सच्ची तौर पर बयां करती रचना
मजदूर दिवस पर सार्थक
उत्कृष्ट प्रस्तुति
विचार कीं अपेक्षा
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
bahut sundar rachna mukesh badhai sundar srajan ke liye
मित्र, आपकी सहृदयता को नमन...शारीरिक श्रम को किसी भी श्रम से कम नहीं आँका जाना चाहिए...मई २०११ में लिखी एक कविता साझा कर रहा हूँ... http://vaanbhatt.blogspot.in/2011/05/blog-post_22.html
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