पिछले दिनों हमारी साझा कविता संग्रह "कस्तूरी" प्रकाशित हुई ! उसमे ये रचना प्रकाशित हो चुकी है, पहले ब्लॉग पर साझा नहीं किया था , अब सोचा आप सबसे से पूछूं कैसी हैं ...........
बताएँगे???
हमारी गंगा-यमुनी
संस्कृति
का प्रतीक
व दिल्ली की जीवन रेखा
"यमुना"
अब जब भी गुजरो
इसके ऊपर के पुल से
तो दूर से दिख जाती है
झक सफ़ेद
दुधिया नदी............!
.
पर कभी पहुँचो पास
तब होगा अहसास
नहीं है यह सफ़ेद दुधिया रंग
नहीं है ये स्वच्छ जल
ये तो है गंदगियों से बना
दुधिया फेन
जो तैर रहा है
छिछले गंदे काले पानी पर..
यमुनोत्री की पावन जल धारा
दिल्ली आकर बन जाती है
गन्दा नाला !!
.
हम सब कर रहे हैं कोशिश
बना रहे हैं परियोजनाएं
ठान लिया है....
कैसे भी कर के मानेंगे
कर देंगे स्वच्छ
पर कैसे?
कागज पर हो रही है कोशिश
लग रहे हैं पैसे
क्या होगा हकीकत में वैसे ?
.
यहाँ तो
जहाँ जिन्दा है यमुना
वहां हो रहा है काम
उसको मारने का
और जहाँ मर चुकी है
वहां कर रहे हैं कोशिश
लाश नोचने की ...
लगे हैं हम
एक नया रेगिस्तान बनाने में
एक प्यारी सी नदी
की मरसिया पढने में.....!!!!!
44 comments:
मुझे यह कविता बहुत पसंद आई थी ....समीक्षा करते वक़्त ..मुकेश जी ..सही हालत का ब्यान किया है आपने इस में और सबसे अच्छा इसका शीर्षक लगा जो अपनी बात कह गया ...
bahut sundar aur sarthak mukesh jee, yamuna aur ganga ke marm ko bakhoobi bata diya
उफ़ तस्वीर और शब्दों की तस्वीर दोनों सच्चे हालात बयान कर रही हैं.
khoobsurat kavita mukesh ji
बिल्कुल सार्थक व सटीक ... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिये बधाई
very nice ...........sarthak
प्रक़ति से इसी तरह खिलवाड़ होता रहा तो इक दिन हमारी पूर्ण सभ्यता की ही मर्सिया पढ़ी जानी है।
सब नदियों का बस यही हाल है ...वहां यमुना ...तो यहाँ गंगा बेहाल है
काश, लोगों की संवेदनायें जागें...
bahut sahi likha hai...
वास्तविकता को आपने बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है .बधाई .
Bahut khub
मुकेश जी, आपने अपनी कविता में आज कि वास्तविकता बहुत ही मार्मिक रूप से प्रस्तुत कि है....
बेशक बहुत अच्छी रचना है.....
हाँ शीर्षक में मुझे लगता है कि मर्सिया पुर्लिंग शब्द है..याने "एक नदी का मर्सिया होना" चाहिए...वैसे गुणीजनों से पूछना बेहतर होगा :-)
अनु
सार्थक लेख सच्चाई के बहुत करीब जवलंत विषय पर रचना अच्छी लगी |
बहुत ठीक बात कही है आपने मुकेश जी...मुझे अच्छी लगी कविता!!!
सच को बयाँ करती एक उम्दा प्रस्तुति।
सच को कहती अच्छी रचना .... अनु जी की बात पर गौर फरमाएँ
अच्छी कविता है मुकेश . नदियों के बारे में हम संवेदनहीन हो गए हैं.
समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का यह भी एक नतीजा है
बहुत अच्छा लिखा...सूखती और गंदगी बटोरती नदियाँ दुखी तो होंगी ही न!!
इस देश में हर चीज़ का मर्सिया पढ़ा जा रहा है...या पढ़ा जाना है...
ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती...
और मरने के बाद मर्सिया पढ़ देना...या मुआवजा दे देना...यही रीत बन गयी है...ज्वलंत समस्या है वहां यमुना की...यहाँ गंगा की...
आज हर पवित्र नदी जिसकी हम पूजा करते हैं प्रदूषण का शिकार हो रही हैं...बहुत सार्थक अभिव्यक्ति..
अच्छी और सच्ची थी ...तभी तो कस्तूरी का हिस्सा बनी .....
सच का आईना दिखाती रचना
Bahut,bahut sundar! Badhayee ho!
bhut hi behtareen prastuti Mukesh ji ,aaj jahan bhi pardooshan hai vo sirf ham log ki vajah se hi hai ..
लगे हैं हम
एक नया रेगिस्तान बनाने में
एक प्यारी सी नदी
की मरसिया पढने में.....!!!!!!!!!!!!!!
बड़ी समस्या है .दूषित होता नदियों का जल .फिर जमुना हो या गंगा ..आपने बहुत कलात्मकता से लिख दिया है सारा दर्द बधाई
अब तो बस एक उबाल आएगा इस जलधारा का और सारे कागज़ और उनपे झूठ लिखने वालों को बहा ले जाएगा..
apne bilkul sach bayan kiya hai apne kavita kay madhyam say....bahut bura haal hai.....
नदी नाले पेड़ पौधे .... इंसान - हर तरफ मर्सिया की आवाज़
जबरदस्त....सटीक!!
मुकेश जी ,यह एक नहीं हर एक नदी का दुख आपके शब्दों में बोल उठा है !
सार्थक व सटीक रचना...
:-)
yamuna ke bahane nadiyon ke desh ki har nadi ki vyatha bayan ki hai aapne..
सरल व सार्थक प्रस्तुति....
prasangik rachna ...hmne apne kritya se ..nadi -naale sabkopradushit kar diya ...
saral aur ispasht- ****
पर्यावरण चेतना की भावांजलि है यह रचना .गंगा हो या जमुना भाषण में कहलातीं हैं हमारी माँ पर व्यवहार में रखैल हैं .कितने ज़हीन हो गए हैं हम लोग .क़ानून मंत्री यहाँ फंड खाने का तरीका सिखातें हैं तरक्की पा के विदेश विभाग हथिया लेते हैं ये देश का सेकुलर निजाम है ,गंगा जमुना के नाम है .
हमारी गंगा-यमुनी संस्कृति
का प्रतीक
व दिल्ली की जीवन रेखा
"यमुना"
अब जब भी गुजरो
इसके ऊपर के पुल से
तो दूर से दिख जाती है
झक सफ़ेद
दुधिया नदी............!
.
पर कभी पहुँचो पास
तब होगा अहसास
नहीं है यह सफ़ेद दुधिया रंग
नहीं है ये स्वच्छ जल
ये तो है गंदगियों से बना
दुधिया फेन
जो तैर रहा है
छिछले गंदे काले पानी पर..
यमुनोत्री की पावन जल धारा
दिल्ली आकर बन जाती है
गन्दा नाला !!
.
हम सब कर रहे हैं कोशिश
बना रहे हैं परियोजनाएं
ठान लिया है....
कैसे भी कर के मानेंगे
कर देंगे स्वच्छ
पर कैसे?
कागज पर हो रही है कोशिश
लग रहे हैं पैसे
क्या होगा हकीकत में वैसे ?
.
यहाँ तो
जहाँ जिन्दा है यमुना
वहां हो रहा है काम
उसको मारने का
और जहाँ मर चुकी है
वहां कर रहे हैं कोशिश
लाश नोचने की ...
लगे हैं हम
एक नया रेगिस्तान बनाने में
एक प्यारी सी नदी
की मरसिया पढने में.....!!!!!!!!!!!!!!
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प्रस्तुतकर्ता Mukesh Kumar Sinha पर 4:17 am
Life's Glorious Gift ...
हमारी गंगा-यमुनी संस्कृति
का प्रतीक
व दिल्ली की जीवन रेखा
"यमुना"
....................
यमुनोत्री की पावन जल धारा
दिल्ली आकर बन जाती है
गन्दा नाला !!
.
बना रहे हैं परियोजनाएं
कागज पर हो रही है कोशिश
लग रहे हैं पैसे
क्या होगा हकीकत में वैसे ?
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लगे हैं हम
एक नया रेगिस्तान बनाने में
एक प्यारी सी नदी
की मरसिया पढने में.....!!!!!!!!!!!!!!
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sahi kaha aapne 100% agree with u...... gndi ho gyi gndi ho gyi bolne k naam pr sb aa jate h pr ek baar b sochte nhi kiya kisne...q ho rhi h? ... priyojnaaye bnti h or ltka di jati h salo tk k liye... do-char kagaz utha kr photo khinch li jati h ...yamuna ki safai ka abhiyaan.... lo ji ho yamuna maiya ki safai..... kmaal ki baat h hume saaf pani b chahiye or gndgi b hum hi failate h .... thnx sirji fir se sochne ko mazboor kregi aapki ye rachna hum sabko.... hmari soch or prayaas k bahaav ki dish tay krti ek rachna...
Yesterday at 16:49 · Unlike · 2
Ashok Kumar Suyal: ye schhai h dost, or ismai yamuna ko is kdr maarne mai hamri bhe bhumika h... kyon ki use gnda krne mai hm bhe shyog kr rhe hn.. aap ki anter mn ki peeda.. hm kt phucnhi h.....
Yesterday at 16:40 · Like · 1
Vivek Mishra: Jindaa hu mai marsiyaa na padh, ho sake to thoda sahaaraa dede
Yesterday at 16:39 via mobile · Like · 1
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
Mukesh Jee,
kyaa kavitaa hai likhee,
man hil gayaa aur keh oothaa:-
chup chaap
mar rahi hai Jo har roz,
aisee ek nadi ka dard
ooski baahvanaa jataa kar,
aapney saaNjhaa kiyaa
insaaniyat kaa karz,
Marsiyaa shabd kaa istemaal bhi kuchh aisaa kiya,
ki nadi ke dard ko dil ke dard se milaa diyaa,
isey kehtey hai,
kavi ki bhaavuktaa
aur seedhi seedhi ek sachi kavita.
wonderfull writing, I wish u all the best. bas aisey hi liktey rahiye, blog ka look kaafi shaandar hai aapko badhaai- kasturi ke sampaadan ke liye bhi.
Thanks and regards-
renu ahuja
www.kavyagagan.blogspot.com
एक -एक शब्द सच्चाई को बयान कर रहा है । अतिउत्तम प्रस्तुति ।
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