उखड रहा है चौखट से..
पीछे जो खेत है,
उसकी जमीन भी हो
गयी है उसर...
होते ही नहीं अंकुरित
लगे हुए मटर...
तुमने जो नीला कोट दिया था
वो अभी भी बक्से में पड़ा है
आई ही नहीं इत्ती सर्दी..
घनेरे छाये मेघ भी
बस... गड गडा कर उड़ जाते हैं
शायद उन्हें भी लगता है-
क्यूं बरसे जिंदगी भर ?......
.
"मेरे शब्द"... उनको तो, क्या हो गया,
कैसे बताऊँ ?
हर बार रह जाते हैं, थरथरा कर
बोल ही नहीं पाते कुछ
सब कुछ तो बदल गया
.
पर पता नही क्यूं
तुमने जो लगाया था
मेहँदी का पेड़
उसके पत्ते आज भी
लाल कर देते हैं हथेली...
आज भी...!!
43 comments:
बढिया रचना
"मेरे शब्द"... उनको तो, क्या हो गया,
कैसे बताऊँ ?
हर बार रह जाते हैं, थरथरा कर
बोल ही नहीं पाते कुछ
सब कुछ तो बदल गया....... पर समय के पहियों पर आज भी लाली है, कितना पक्का था वह रंग
badhiya kavita mukesh bhai...
हर बार रह जाते हैं, थरथरा कर
बोल ही नहीं पाते कुछ
सब कुछ तो बदल गया......
very nice
सब कुछ बदल जाये लेकिन प्रेम का रंग नहीं बदलता ... बहुत सुंदर रचना
बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
http://madan-saxena.blogspot.in/
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"मेरे शब्द"... उनको तो, क्या हो गया,
कैसे बताऊँ ?
हर बार रह जाते हैं, थरथरा कर
बोल ही नहीं पाते कुछ
सब कुछ तो बदल गया
.
पर पता नही क्यूं
तुमने जो लगाया था
मेहँदी का पेड़
उसके पत्ते आज भी
लाल कर देते हैं हथेली...
आज भी...!!
wah!!! कुछ रंग ऐसे होते हैं जो कभी नही जाते ............ और मेहंदी का रंग जिन्दगी भर की यादे बनकर महकता हैं ................एक उम्दा सशक्त कविता आपकी
ये तो सच्चाई है की पैड पोधे अपने छूने वाले को अपनी खुशबू से तरोताज़ा कर देते है आपने अपनी कविता में इसी भाव को स्थान देकर ब्लॉग जगत को भी तारो ताज़ा कर दिया.
अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं
prem rang ko bade hi sundar bhav me dala hai daa aapne...
अनुराग के रस रंग से सिंचित बहुत ही सुकुमार एवं सार्थक प्रस्तुति ! बधाई स्वीकार करें !
पर पता नही क्यूं
तुमने जो लगाया था
मेहँदी का पेड़
उसके पत्ते आज भी
लाल कर देते हैं हथेली...
आज भी...!!
क्योंकि प्रेम का रंग है वो:)
प्रेम शास्वत है
वाह ... बहुत ही बढिया।
बहुत सुन्दर प्रेम रंग में रंगी,मेहंदी रंग में सजी
सुन्दर रचना....
:-)
"मेरे शब्द"... उनको तो, क्या हो गया,
कैसे बताऊँ ?
हर बार रह जाते हैं, थरथरा कर
बोल ही नहीं पाते कुछ
सब कुछ तो बदल गया....बहुत सुन्दर लगी यह पंक्तियाँ ...बढ़िया है ....प्रेम रंग में रंग रे मनवा ..कुछ ऐसा एहसास हुआ पढ़ते हुए ..
बहुत सुन्दर रचना .... मौन प्रतीक्षा की आकुलता को समेटे!
मेहंदी के रंग में रंगे हर शब्द में प्रेम की अनुभूति है. बधाई
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
वाह......
मेहंदी का रंग भी पक्का...खुशबु भी वैसी ही.....
कुछ तो है जो कभी बदलता नहीं....
अनु
मेहँदी का पेड़ है...लाली और खुश्बु नहीं जाने वाली
खूबसूरत प्रस्तुति!!
बहुत खूब :)
मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है...
mymaahi.blogspot.in
शानदार!!
आज 06-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
.... आज की वार्ता में ... उधार की ज़िंदगी ...... फिर एक चौराहा ...........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
बहुत जानदार !
मेंहदी के पेडो़
को किसी ने
क्यों नहीं सिखाया
होगा समय के साथ
अपने आप को भी
बदल ले जाना
लाल रंग को कुछ
हल्का करते हुऎ
भूरा हो जाना !
rachna bahut acchi hai....sab badal jata hai....fir bhi kuch reh jata hai
aas-pas kitni hi baaten kar lene ke baad man ki baat ko u kah dena bhi ek kala hai. alag andaaz.
प्रेम रंग चोखा होए ...
प्यार का एहसास लिए हुए इंतज़ार के साथ ..बहुत खूब
"मेरे शब्द"... उनको तो, क्या हो गया,
कैसे बताऊँ ?
हर बार रह जाते हैं, थरथरा कर
बोल ही नहीं पाते कुछ
सब कुछ तो बदल गया....बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
waah mukesh bahut khoob ......sundar abhivyakti
कोमल और रंगभरी रचना..
तुमने जो नीला कोट दिया था
वो अभी भी बक्से में पड़ा है
आई ही नहीं इत्ती सर्दी..
मेघों वाले बादल भी
बस... गड गडा कर उड़ जाते हैं
शायद उन्हें भी लगता है-
क्यूं बरसे जिंदगी भर ?...........
बहुत ख़ूबसूरती से आपने किसी भी वस्तु के हमेशा न रहने वाले आस्तित्व के बारे में लिखा ...सुंदर
वाह मुकेशजी ...जैसे दिल हथेली पर रखकर आगे कर दिया ..देखो ...क्या हाल कर दिया इसका .......बहुत सुन्दर !!!
waah....behad khoobsurat kavita hai mukesh bhaai!!
बहुत खूबसूरत रचना...हार्दिक बधाई...।
प्रियंका
सुंदर और गहरे भाव ...
बहुत अच्छी लगी रचना ...!!
वाह...अद्भुत रचना है आपकी...भावपूर्ण.....बधाई
नीरज
आज की पोस्ट पढकर तो अनायास ही मुहं से निकला वाह क्या लिखा है सच में मज़ा आ गया बहुत सुन्दर रचना |
sab kuch badal jata hai ..par kuchh phir bhi rah jata hai
bahut hi hirdaysprshi rachna..
पर पता नही क्यूं
तुमने जो लगाया था
मेहँदी का पेड़
उसके पत्ते आज भी
लाल कर देते हैं हथेली...
आज भी...!!
....लाज़वाब! बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना..
कविता तो अच्छी है मगर मुकेश ने कैसे लिखी , यही सोच रही हूँ :)
बहुत सुंदर रचना..दिल को छूने वाली..
बहुत सुंदर भावभीनी रचना मेहंदी के बहुत खूबसूरत रंग है कविता में
बेहद जज़्बाती नज़म है...
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