जिंदगी की राहें

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Saturday, August 11, 2012

मैया

























मैया !! मैं बड़ा हो गया हूँ.
इसलिए बता रहा हूँ
क्यूंकि तू तो बस
हर समय फिक्रमंद ही रहेगी....
.
याद है तुझे
मैं देगची में
तीन पाव दूध लेकर आया था
चमरू यादव के घर से
..... पर मैंने बताया नहीं था
कितना छलका था
लेकिन तेरी आँखे छलक गयी थी
तुमने बलिहारी ली थी
मेरे बड़े होने का...
.
एक और बात बताऊँ
जब तुमने कहा था
सत्यनारायण कथा है
..राजो महतो के दुकान से
गुड लाना आधा सेर...
लाने पर तुमने बलाएँ ली थी
बताया था पत्थर के भगवान को भी
गुड "मुक्कू" लाया है !!
पर तुम्हें कहाँ पता
मैं बहुत सारा गुड
खा चूका था रस्ते में
पर बड़ा तो हो गया हूँ न....!
मैया याद है ...
मेरी पहली सफारी सूट
बनाने के लिए तुमने
किया था झगडा, बाबा से
पुरे घर में सिर्फ
मैंने पहना था नया कपडा
उस शादी में...
पर मुझे तो तब भी बाबा ही बुरे लगे थे
उस दिन भी
आखिर बड़े होने पर फुल पेंट जरुरी है न...
.
मैया मैं जब भी
रोता, हँसता, जागता, उठता
खेलता पढता
तेरे गोद में सर रख देता
और तू गुस्से से कहती
कब बड़ा होगा रे.....
अब तू नहीं है !!!
पर मैं सच्ची में बड़ा हो गया...
मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????
(मैया बाबा... मेरे माँ-पापा नहीं मेरे दादा-दादी थे, और मुक्कू ..मैं !!!)
 



59 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

मन भर आया...
सुन्दर सी अभिव्यक्ति......

ऐसी रचना जब कोई "बेटा"(पुरुष) लिखता है तो बड़ा अच्छा लगता है...

अनु

रेखा श्रीवास्तव said...

बहुत भावपूर्ण रचना, जिसकी गोद में इंसान बड़ा होता है वही माँ है और वही पापा. बल्कि दादी को बेटे या ज्यादा पोते प्यारे होते हें. अंतर के सारे प्यार को शब्दों में ढाल दिया है.

Dimple Kapoor said...

sach mein parents ko bache hamesha chote lagte hain bt vo chahte hain ki vo jaldi se badhe ho jaye ....mera beta 9 saal ka hoga kuch dino mein bt jab vo muje bolta ki btao bazaar se kya karke laana to muje bhut acha lagta yeh dekh ke ki jiske liye sab karte the vo ab hamare liye karta :))

amrendra "amar" said...

behad marmsparshi rachna,
या मैं जब भी
रोता, हँसता, जागता, उठता
खेलता पढता
तेरे गोद में सर रख देता
और तू गुस्से से कहती
कब बड़ा होगा रे.....
अब तू नहीं है !!!
पर मैं सच्ची में बड़ा हो गया...
मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????
lagta hai jaise apni hi manosthiti ka varnan ker raha hun ..........jitni bhi tareef kerun sabdo me kam hi hai......badhai

रंजू भाटिया said...

बहुत ही मार्मिक कविता है ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ...

शिवम् मिश्रा said...

:)

विभा रानी श्रीवास्तव said...

एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????
isliye tum itane pyaare lagate ho babuaa .... :)

निवेदिता श्रीवास्तव said...

पता नहीं क्यों पर हम जितना बड़े होते जाते हैं मन से बच्चे होते जाते हैं .... बस मन भर आया ........

vandana gupta said...

बेहद भावप्रवण मुकेश

S.N SHUKLA said...

इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.

कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .

शिवम् मिश्रा said...

पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और आप सब की ओर से अमर शहीद खुदीराम बोस जी को शत शत नमन करते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन लगाई है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... और धोती पहनने लगे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत भावप्रद रचना...
मन को छु लेनेवाली...

Anju (Anu) Chaudhary said...

मुकेश तुम्हारी ''मैया '' को दिल से सलाम

ऐसे ही उन्हें अपनी यादों के करीब रखना :))

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

पूरा जीवन उतर आया और उतर आयीं सारी यादें.. उतर आया गुजारा ज़माना इस कविता में और बहा ले गया हर पाठक को अपने साथ!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हृदयस्पर्शी.....

Shalini kaushik said...

bahut sundar bhavabhivyakti..प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े

udaya veer singh said...

मार्मिक कविता ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ...

विभूति" said...

कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

Unknown said...

आपकी रचना ''मैया'' ने मुझे भाव- विभोर कर दिया!............माँ- बाबा को मेरा प्रणाम!!!!!!!!!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन भीग गया ..... माँ की स्मृतियाँ मन को कितना कोमल बना देती हैं ...

रश्मि प्रभा... said...

याद है तुझे
मैं देगची में
तीन पाव दूध लेकर आया था
चमरू यादव के घर से
..... पर मैंने बताया नहीं था
कितना छलका था
लेकिन तेरी आँखे छलक गयी थी
तुमने बलिहारी ली थी
मेरे बड़े होने का... एक दृश्य सजीव हो उठा ...
..........
एक और बात बताऊँ
जब तुमने कहा था
सत्यनारायण कथा है
..राजो महतो के दुकान से
गुड लाना आधा सेर...
लाने पर तुमने बलाएँ ली थी
बताया था पत्थर के भगवान को भी
गुड "मुक्कू" लाया है !!
पर तुम्हें कहाँ पता
मैं बहुत सारा गुड
खा चूका था रस्ते में
पर बड़ा तो हो गया हूँ न....!कितनी मासूमियत ...
..........
मैया मैं जब भी
रोता, हँसता, जागता, उठता
खेलता पढता
तेरे गोद में सर रख देता
और तू गुस्से से कहती
कब बड़ा होगा रे.....
अब तू नहीं है !!!
पर मैं सच्ची में बड़ा हो गया...
मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????........... हाँ अब मैं सच में बड़ा हो गया हूँ ......
बहुत बहुत प्यारी रचना दादी मैया आज भी बलिहारी हुई

प्रवीण पाण्डेय said...

मन के भावों की कोमलता भावों में उतर आयी है..

वाणी गीत said...

कुछ समान- सा लग रहा है , कभी मैं भी सोचती थी के काश मैं अपने पापा का पापा होती , या माँ की मां !
अनुभूतियाँ और संवेदनाएं कई बार एक जैसी ही हो जाती है !
बहुत बेहतरीन !

Yashwant R. B. Mathur said...

आज 13/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

सदा said...

मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????..........
भावविभोर करते शब्‍दों का संगम ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...आभार

Bhavna....The Feelings of Ur Heart said...

bahut khub .....very expressive poem....aapke itne umada khayalat bahut achhe lage :)


Mamta Bajpai said...

एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????
बहुत ही खूबसूरत रचना आभार

शिवनाथ कुमार said...

मर्मस्पर्शी, अंदर तक दिल को छूती हुई ..
साभार !

Ragini said...

अत्यंत मर्मस्पर्शी.......दिल भर आया...

Ragini said...

अत्यंत मर्मस्पर्शी.......दिल भर आया...

दिगम्बर नासवा said...

मार्मिक .. स्तब्ध कर जाती है रचना ..
भावपूर्ण रचना ...

संजय कुमार चौरसिया said...

सुन्दर सी अभिव्यक्ति

Vijay K Shrotryia said...

सुंदर अति सुंदर.....

विजय

डॉ. जेन्नी शबनम said...

कविता पढकर मन भावुक हो गया. कुछ यादें और अनुभव साझा होते हैं हम सभी के... विशेषकर बचपन और बचपन में की गई शैतानी.

बताया था पत्थर के भगवान को भी
गुड "मुक्कू" लाया है !!
पर तुम्हें कहाँ पता
मैं बहुत सारा गुड
खा चूका था रस्ते में
पर बड़ा तो हो गया हूँ न....!

बड़े होने के साथ ही कितना कुछ छूट जाता है न! बहुत सुन्दर रचना, शुभकामनाएँ.

सुनीता शानू said...

तुम सचमुच बड़े हो गये हो... बहुत सुंदर रचना।

Amit Anand said...

नतमस्तक !

दीपिका रानी said...

भावपूर्ण रचना..

Kailash Sharma said...

बेहद संवेदनशील मर्मस्पर्शी रचना... आँखें नम कर गई...

ऋता शेखर 'मधु' said...

मैं इस पोस्ट पर देर से पहुँची...
दादी के लिए इतनी सुंदर रचना...भाव विभौर कर दिया|

Saumya said...

bauhat hi komal rachna....dil bhar aaya!!

Anju said...

और तू गुस्से से कहती
कब बड़ा होगा रे.....
अब तू नहीं है !!!
पर मैं सच्ची में बड़ा हो गया...
मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????
........शब्द तो भाव में बह गए ...और जो कहना था ...वो आँख के आंसू कह गए .....मुकेश जी .../ममत्व तो बलिहारी जायेगा पर निशब्द ....ओह ...!!बस देख रही हूं ....इस मिलन को ...चार नदियां ..एक समंदर ...भावपूर्ण ही नही आत्मीय भी .....बधाई ...और ये स्नेह ये भाव प्रत्येक बच्चे के मन में हो ...ऐसी प्रार्थना परम पिता से .....

Dr.J.P.Tiwari said...

भोली-भली मासूमियत भरी सत्य वाणी में में कितनी सम्प्रेश्नियता होती है, उसका एक उद्धरण बन गया है भाव गीत. मुझे याद है माँ पर विचार करते समय मैंने बेटों को उलाहना दिया था की माँ ने इतनी लोरिया सुनाई, ... क्या कभी किसी बेटे ने भी लिखा है ऐसा भाव गीत जो माँ और केवल माँ को समर्पित हो, उसी तरह निश्छल और समर्पित...मुझे लगता मुझे वह उत्तर बहुत कुछ मिल गया है..... आभार.. माँ को भी मेरा नमन, प्रणाम.. माँ तो आखर माँ ही होती है... जो आनंद उस गोद में है और कहाँ? शायद इसी आनंद के लिए ईश्वर भी अवतरित होता है .. खुद नाचता है माँ को भी नाचता है..मारी शक्ति को एकबार पुनः नमन .. मै बहुत भाग्यशाली हूँ की मेरी माँ का गोद अब भी मेरे लिए सुलभ है.. अनपढ़ होकर भी मेरी जटिल समस्यायों का संधान वही बताती है आज भी...

प्रियंका गुप्ता said...

क्या कहूँ...बहुत मार्मिक प्रस्तुति...। यादें जब कलम से झरती हैं तो यूँ ही दिल में उतरती हैं...।
शुभकामनाएँ...।
प्रियंका गुप्ता

Saras said...

मुकेश ऐसी ही होती है माँ ...और ऐसी ही होतीं हैं उससे जुडी हर स्मृति जिसमें सिर्फ और सिर्फ प्यार होता है ..अथाह प्यार अपने बच्चों के लिए .....मन अभी भी दुखी है .....माँ को याद कर ....

Guzarish said...

maa ki khubsurat abhivyakti mukesh ji ,badhai

इन्दु पुरी said...

schchi kahun .....teri ab tk likhi kvitao me sbse alg sbse achchhi sbse pyari hai yh.... :) ab tk nhi bhoole maiya ko........ kismat wali hai maiya.pota ab tk yaad krta hai geet rchta hai unke liye :)

अज़ीज़ जौनपुरी said...

मन भर आया,सुन्दर मार्मिक कविता ,बेहतरीन अभिव्यक्ति

Ranjana verma said...

बेहतरीन !!दिल को छु गयी.. मन भर आया
मेरे ब्लाग साझा करें

Ranjana verma said...

बेहतरीन !!दिल को छु गयी.. मन भर आया
मेरे ब्लाग साझा करें

Ranjana verma said...

बेहतरीन !!दिल को छु गयी
मेरे ब्लाग साझा करें

Ranjana verma said...

बेहतरीन !!दिल को छु गयी
मेरे ब्लाग साझा करें

Aparna Bose said...

i am writing this comment with tears in my eyes.....really very poignant..
http://boseaparna.blogspot.in/

Aparna Bose said...

i am writing this comment with tears in my eyes...really very poignant...
http://boseaparna.blogspot.in/

Kailash Sharma said...

आँखें नम कर गयी...बहुत भावपूर्ण रचना..

मेरा मन पंछी सा said...

बेहद कोमल , ममस्पर्शी रचना...
लाजवाब...
:-)

Pallavi saxena said...

अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

इस्मत ज़ैदी said...

पर मैं सच्ची में बड़ा हो गया...
मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????

कुछ नहीं कह पाऊंगी बस इतना ही कि -

माँ की दुआएं, बाप का साया हो गर नसीब
हो ज़िंदगी बलाओं से रंज ओ मेहन से दूर

और दादा-दादी को तो पोते पोती,,नवासे-नवासी अपने बेटे-बेटी से ज़्यादा प्यारे होते हैं

Tamasha-E-Zindagi said...

जय हो भैया जी :)

Tamasha-E-Zindagi said...

जय हो भैया जी :)