जिंदगी की राहें

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Wednesday, July 25, 2012

"शब्दों के अरण्य में"






पिछले दिनों बहुत ही खुबसूरत साज-सज्जा के साथ मेरे प्रिय प्रकाशन संस्थान "हिंद-युग्म" से प्रकाशित व श्रीमती रश्मि प्रभा द्वारा सम्पादित, उनके नजरो में 60 श्रेष्ठ रचनाकारों की पुस्तक "शब्दों के अरण्य में" श्री शैलेश भारतवासी जी से प्राप्त हुई | इस पुस्तक का आवरण चित्र सुश्री अपराजिता कल्याणी ने बनाया है जो निसंदेह मनमोहक है, वो पहली नजर में पाठक को आकर्षित करती है | पुस्तक की साज-सज्जा व प्रिंटिंग के लिए एक बार फिर से शैलेश जी को 100 में से 110 नंबर दिए जा सकते हैं | हर रचनाकार की रचना के साथ एक बाक्स में उनका परिचय खुबसूरत  श्वेत-श्याम फोटो के साथ डालना मुझे बहुत भाया | अब मुद्दे पर आते हैं | वैसे तो मैं एक पाठक हूँ पर पर एक बार कोशिश करना चाहता हूँ, अपनी बातों को इस पुस्तक के लिए समीक्षात्मक दृष्टि से रख पाऊं | पूरी 60 रचनाओं के सम्बन्ध में कह पाना तो संभव नहीं है, पर कोशिश रहेगी, जिनको जानता हूँ या जिनकी रचना बहुत भायीउनके लिए कुछ अपने शब्द कह पाऊं |

रश्मि प्रभा "दी" ने शब्दों के जंगल से ढूंढ़ ढूंढ़ कर एक से बढ़ कर एक रचनाकार की रचना को शामिल किया है जो यह दर्शाता है कि कैसे दीदी इस हिंदी काव्य कि दुनिया में , इस शब्दों के अरण्य में जीती है, एक साथ 60 विभिन्न रचनाकारों को को एक पुस्तक में बांधना, यह रश्मि दी जैसी सबको स्वीकार्य दस्तखत द्वारा ही यह संभव है | और फिर इनमे खुद को पाना, मेरे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि हैहाँ तो मैं अब रचनाओं पर गौर फरमाना चाहता हूँ .............

"शिव रात्री के रोज
पत्ते और कच्चे फलों से 
विरक्त कर दिया गया
बेल का पेड़"
श्रीमती अंजू अनन्या जी (www.anjuananya.blogspot.in) का कविमन भगवान शिव कि आराधना के बदले बेल के पेड़ के लिए धड़क रहा है | यह सादगी एक कवि मन ही दिखा सकता है | बहुत ही प्यारी दिल को छूती रचना मुझे लगी |..

श्रीमती अनुलता राज नायर जी (www.allexpression.blogspot.in) ने सच व झूठ के बीच की रस्सा-कस्सी को शब्दों में बताते हुए कहती हैं ..........
"झूठ बड़ा चालबाज है 
वो सारे प्रपंच करता है
खुद को सच साबित करने में
सत्य निर्विकार होता है ...
उसे अपना भी पक्ष लेने कि आदत नहीं होती "

श्रीमती अपर्णा मनोज (www.manuparna.blogspot.in), कृष्णा के लिए "विष का रंग क्या तेरे वर्ण सा है कान्हा?' में कहती है ....कितना खुबसूरत भाव है...!
"महावर में डूबकर
मैं मीरा बनी थी
और तेरे युग को खिंच लाई थी
पुनश्च....."

श्री  अमरेन्द्र "अमर"  (amrendra-shukla.blogspot.in) अपने किताब के रुपहले पन्नो को शब्दों में ढालने कि कोशिश कर रहे हैं तो श्री अमित आनंद पाण्डेय (amitanand96115354.blogspot.inजो मेरे अनुज है, और जिन्हें मैं अपने बहुत करीब पाता हूँ, प्यारे से शब्दों में मर्यादा पुरुषोतम राम को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं, उनके बेटे लव-कुश के आक्रोश को शब्द देते हुए वो काहते हैं ....
"तुमने 
कौन सा कर्तव्यवहन किया
हमारे  लिए
क्या तुम्हारी अयोध्या में
सिर्फ जंगल ही शेष था 
हमारी प्रसव को ..."

श्री अश्वनी कुमार जी (www.dekhadekhi.blogspot.in) कि प्रेमिका सी कविता मुझे बेहद भायी और सच में ऐसा होता भी है, एक कवि मन के साथ रचना एकदम ऐसा ही खिलवाड़ करती है, प्यारी उच्छरिन्ख्ल  प्रेमिका की तरह |
"प्रेमिका सी कविता
कई दिनों बाद मिलो तो 
बात नहीं करती आसानी सी 
अनमनी सी रहती है 
रूठी......."


 पर्यावरण व पेड़ों  के दर्द को शब्दों में समेटने कि कोशिश कि है श्रीमती ऋता शेखर मधु जी (www.madhurgunjan.blogspot.in) ने, जो बेहतरीन लगा |
"देख विशाल वृक्षों की
कटी निर्जीव कतार
ब्रह्मा कर उठे अट्टहास
रे मनुष्य! मैंने तुझे बनाया
तेरी सुरक्षा के लिए पेड़ बनाये
पेड़ों का करके विनाश
क्यों कर रहा है
सृष्टि का महाविनाश!
पापी है तू, अभी भी संभल जा"

श्रीमती कविता रावत जी(www.kavitarawatbpl.in) हर घटना के पीछे के कारण को काव्यात्मक रूप देते हुए कहती हैं .
"यूँ तो अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
बात जब तेरी उठी
दर्द जब हो गए हरे
हो गए बयान निःशब्द
नयन ताकते रहे..."

श्री कैलाश शर्मा सर (www.sharmakailashc.blogspot.in) के बोलते शब्द दिल के अंतसः को छूते हैं |

श्रीमती गार्गी चौरसिया जी रिश्ते के अनमोलता को शब्द देते हुए कहती है 
"वो रिश्ता
उस जिस्मानी रिश्ते से
कहीं अधिक सगा होता है 
जो अनुभूति से बनता है ..."

युवा कवियत्री गार्गी मिश्रा (www.inkinmie.blogspot.in) के शब्दों के सोच कैसे चकमक करते हैं, देखिये...
"कल रात
खिड़की के बाहर देखा था 
स्ट्रीट लाइट के नीचे एक जुगनू कुछ सोच रहा था
माथे पर हाथ फेरते हुए
डायरी लिख रहा था शायद"
शब्द व सोच जब विस्तार पाते जाओ तो कविमन कुछ भी कर सकता है , ऐसा ही लगा ये उपर के शब्दों को पढ़ कर..., है न!

"ओ मृत प्राय पल" के द्वारा श्रीमती गीता पंडित जी (www.bhaavkalash.blogspot.in) में कहती हैं ...
".............
होना है तुम्हें फिनिक्स
ओ मृत प्राय पा
गाओ और बानो मेरी मुक्ति के देवदूत
मुझे जन्म लेना है आभी तुम्हारी राख से........."

डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र जी (www.bastarkiabhivyakti.blogspot.in) ने तो मोबाईल से आजिज होकर उसे नीम के ऊँची फुनगी पर ही टांग दिया और कहते हैं...
" ... कुछ व्यवधान तो आयेंगे, पर
दस साल पहले कि जिंदगी
जीने का मजा तो आयेगा.
...............................
तो आप कब टांग रहे हैं अपना मोबाईल"

उफ़!! कितना प्यार उधेला है डॉ. जैनी शबनम "दी" (www.lamhon-ka-safar.blogspot.inने इस रचना में...
"दर्द को खुद जीना और बात
एक बार तुम भी जी लो
मेरी जिंदगी
जी चाहता है 
तुम्हें श्राप दे ही दूँ.
"जा तुझे इश्क हो!"

डॉ निधि टंडन जी (www.zindaginaamaa.blogspot.in) व्यस्तताएं को शब्द देते हुए कहती हैं ………….
" सच है न...
प्यार में कभी कोई खाली नहीं होता 
प्यार हमेशा व्यस्त रहने का नाम है ..."

डॉ. प्रीत अरोड़ा जी (merisadhna.blogspot.in) डॉ मोनिका शर्मा जी (meri-parwaz.blogspot.in) दोनों ही बेटियां के दर्द को शब्द ढालने कि कोशिश कर रही है |
"कूड़ेदान में मिलती 
मासूम बेटियों के समाचार 
.....................
नहीं उतरती मन में सिहरन भी 
और न ही कांपती है हमारी आत्मा
बड़ा विशाल ह्रदय है हमारा..."
एक शशक्त चोट करती रचना है बेटियों के प्रति होते अत्याचार पर |

श्री दिगंबर नासवा सर (www.swapnmere.blogspot.in) के भाव भरे शब्द अच्छे लगते है, पढ़ते हुए...
"कहने  भर से क्या कोई अजनबी हो जाता है
उछाल मारते यादों के समंदर 
गहरी नमी छोड़ जाते हैं किनारे पर
वक्त के निशान भी तो
दरार छोड़ जाते हैं चेहरे पर"

पितृत्व समाज पर कुठाराघात करते हुए श्रीमती दीपिका रानी जी (www.ahilyaa.blogspot.in) का कहना है ..
"पति से बिछुड़ी औरत 
एक रद्दी किताब है 
जो पढ़ी जा चुकी है
एक - एक पन्ना
और फेंक दी गयी दुछत्ती पर....."
इस रचना ने सच में अन्दर तक हिला दिया ......

पेशे से उप-पुलिस अधीक्षक  सुश्री पल्लवी त्रिवेदी (www.kuchehsaas.blogspot.inका कवि मन इंसान कि मासूमियत खोने से बचाने कि कोशिश करते हुए कहती है 
"कल देखा
एक दादाजी को
पार्क वीरान होने के बाद
शाम के धुंधलके में
झुला झूलते............"

सुश्री बाबुशा कोहली (www.babusha.blogspot.in) एक दम नए बिम्ब "जूते" परा शब्द गढ़ते हुए कहती हैं ..
"घिसे तल्ले वाले जूते 
तुम तक पहुचने कि अनिवार्य शर्त थे
और मैं दिन रत पैदल चलती रही ."अलग अलग बिम्बों को लेकर उनके बोलते शब्द एकदम से ध्यान आकर्षित करते हैं | ऐसा मुझे लगता है ....

श्रीमती मीनाक्षी धन्वन्तरी (www.meenakshi-meenu.blogspot.in) एक महिला के व्यक्तित्वा को पढने कि कोशिश करती है और शब्द गढ़ते हुए कहती है ...
"किसी ने नहीं कहा था -
वह मानव के छल कपट से आहत है
किसी  ने नहीं कहा था -
वह प्रेम रस पीने को व्याकुल है ..."

श्रीमती मीनाक्षी स्वामी ((www.meenakshiswami.blogspot.in) ने भी रेल में बैठी स्त्री के पढने की कोशिश कर रही हैं |

इतने बड़े बड़े धुरंधरो के बीच मैंने  (www.jindagikeerahen.blogspot.in) भी "हाथ के लकीरों" को अपने शब्दों में पढने की कोशिश की है | उम्मिद्तः आप सब पसंद करेंगे ...|

अपने रचना के ठीक बाद रश्मि प्रभा "दी" (www.lifeteacheseverything.blogspot.in)को पढ़ कर मुझे खुद के काबिलियत पर फख्र होने लगता है | दीदी की रचना "तथावास्तु और सब ख़त्म" के लिए मेरे पास शब्द नहीं है |

श्रीमती रश्मि रविजा जी (www.rashmiravija.blogspot.in) जो एक बेहतरीन कथाकार हैंकविता में बहती हुई कहती हैं..
"सारे कम्बीनेशन सही हैं 
धूसर की साँझ
अँधेरा कमरा 
ये उदास मन
और काली काफी"
बड़ा अजीब लगता हैएक प्यारी सी हंसी के साथ लगे फोटो के साथ रश्मि जी बड़ी बखूबी के साथ उदासी का शब्द चित्रण कर रही हैं |

श्री राजेंद्र तेला जी (www.nirantarajmer.com) रूठे हुए नींद को बुलाने की कोशिश कर रहे हैं, कहते हैं....
"रात 
नींद को बुलाता रहा
करवटे बदलता रहा
पर नींद मानो 
रूठ कर बैठ गयी"

"ॐ" का उद्घोष करती श्रीमती लावण्या दीपक शाह जी (www.lavanyashah.com) कहती हैं.......
"उंगलियाँ छूती है तार को 
बजती महाध्वनी, आघोष
मृत्यु आह्वान का
शिथिल करों से , वही स्वर
उभरेगा बीती रात को.."

मेरी मित्र श्रीमती वंदना गुप्ता जी (www.vandana-zindagi.blogspot.in) स्त्री दर्द व उसके शोषण को शब्द देते हुए कहना चाहती हैं
"पूरा ब्रहामंड दर्शन किया तुमने
पर फिर भी न तुम्हारी कुत्सितता गयी
फिर भी अधूरी रही तुम्हारी खोज
और तुम उसी की चाह (?) में............"

श्रीमती वाणी शर्मा "दी" (www.teremeregeet.blogspot.in) स्त्री की सम्पूर्णता का अहसास अपनी रचना में कर रही हैं 
"मिचमिचाती अधमुंदी पलकों में
सपनीले मोती जगमगाए
मेरी सुनी गोद भरा आई
जब यह नन्ही कली मुस्कुराई "

श्री विजय कुमार सप्पत्ति जी (www.poemsofvijay.blogspot.in)अपनी माँ को शब्दों में तलाशते हुए कहते हैं -
"माँ को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा
वो हमेशा ही मेरे पास थी और है अब भी ...."

श्रीमती विभारानी श्रीवास्तव "दी" (www.vranishrivastava.blogspot.in)  शब्दों के सहारे जख्म कुरेदने की कोशिश करती है | दी अपने परिचय में भी कहती है मैं कवियत्री नहीं हूँ, बस अपना वजूद तलाश रही हूँ | बोलते शब्दों के साथ एक लड़की का दर्द दिखता है ........
"एक बेटी
जब अपने मायके को भरोसा दे
ससुराल में सबको अपना बनाते बनाते
परायी हो जाती है...."

श्रीमती शिखा वार्ष्णेय (www.shikhakriti.blogspot.co.uk), मेरी अभिन्न मित्र, ब्लाग जगत की बेहतरीन लेखिकाओं में से एक जो अपने जीवंत यात्रा वृतांत के लिए मशहूर है, ने कुछ सहेजे हुए पलों को शब्द में उतारते हुए कहती है.... कितने प्यारे से शब्द हैं, देखिये....
"रात के साये में कुछ पल
मन के किसी कोने में झिलमिलाते हैं
सुबह होते ही वो पल
कहीं खो से जाते हैं
कभी लिहाफ के अन्दर
कभी बाजु के तकिये पर...."

अब ये पढ़िए..................
"क्या छूकर किसी किताब या पन्ने को
या छोड़े गए ग्लास को
या फिर तुम्हारी किसी तस्वीर को
क्या कम लगेगी मुझे तुम्हारी कमी
क्या लगेगा जैसे मैंने छुआ हो तुम्हें
और तुमने भी बालों में मेरे उँगलियाँ फिराई हो जैसे............"
..... दिल को छूते हुए शब्द लगे न..!श्रीमती शेफाली गुप्ता जी (www.guptashaifali.blogspot.in) "उसकी" कमी कैसे कविता में खलती है, या जाता रही हैं, बहुत बेहतरीन भाव मुझे लगे....!

श्रीमती संगीता स्वरुप "दी" (www.geet7553.blogspot.in) भाव विभोर हो पूछ रही हैं किसे अर्पण करूँ...
"भाव सुमन लिए हुए
नैवेध दीप सजे हुए
प्रेम की पुष्पांजलि को
मैं किसे अर्पण करूँ?"

श्री सतीश सक्सेना सर (www.satish-saxena.blogspot.in), कुछ दिनों पहले ही इनकी काव्य संग्रा "मेरे गीत" का प्रकाशन हुआ है, ये माँ की याद में कहते हैं...
"हम जी न सकेंगे दुनिया में
माँ जन्मे कोख तुम्हारी से...."

श्री समीर लाल "भैया" (www.udantashtari.blogspot.in) अपनी घर की वापसी पर कहते हैं ......
"उम्र के इस पड़ाव पर आ
निकलता हूँ जिस शाम
मैं घर से अपने
सात समुन्दर पार आने को."

मेरे बड़े भैया श्री सलिल वर्मा (www.chalabihari.blogspot.in) जो ब्लॉग जगत में एक दम अलग हसमुख लेकिन बहुत ही संजीदा शख्स के रूप में जाने जाते हैं, एक भिखारी की एक्टिंग सवाल न कर उल्टा कहते हैं ....
"यदि एक्टिंग है तो अद्भुत है 
करोडो से कम अमिताभ भी नहीं लेता
इस एक्टिंग के
इस बेचारे ने तो करोडो का खजाना
कोडियों में माल बेचा है
तभी जनपथ पर बैठा भीख देखो मांगता है ...."

भगवान लक्ष्मण की माँ सुमित्रा के संताप/दर्द को शब्दों में उद्दृत करते हुए श्रीमती साधना वैध जी (www.sudhinama.blogspot.in) में कहती है ..
"नहीं समझ पाती जीजी
रक्ताश्रू तो मैंने भी
चौदह वर्ष तक तुमसे
कम नहीं बहाए...."

सदा के नाम से जाने जाने वाली ब्लॉगर सीमा सिंघल जी (www.sadalikhnablogspot.in) दर्द से सराबोर रचना में कहती है ....
"क्यूंकि जिंदगी का कोई सवाल नहीं था उससे"

श्रीमती सुनीता शानू "दी" (www.shanoospoem.blogspot.in) के "विचार" कविता में ऐसे बोलते हैं ..
"कभी कभी आत्मा के गर्भ में
रह जाते हैं कुछ अंश
दुखदायी अतीत में
जो उम्र के साथ साथ
फलते फूलते लिपटे रहते हैं "

सबसे अंत में जानी मानी कवियत्री श्रीमती हरकीरत हीर जी(www.harkirathaqeer.blogspot.in) की मोहब्बत से भरी रचना बोल उठती है ..............
"हाँ आज में
मोहब्बत की अदालत में खड़ी होकर
तुम्हें हर रिश्ते से मुक्त करती हूँ....." 

इस तरह एक से बढ़ कर एक मनको से पिरोकर बनाई गयी इस माला को यानि ये पुस्तक "शब्दों के अरण्य में" को हर हिंदी काव्य की समझ रखने वालो के बुक शेल्फ में जरुर होनी चाहिए , ऐसा मुझे लगता है |
100 पेज के इस पुस्तक का मूल्य 200/- और फ्लिप्कार्ट के साईट (http://www.flipkart.com/shabdon-ke-aranya-mein-938139413x/p/itmdbk4gfqzgg3zh?pid=9789381394137&ref=c2e6a587-a298-452c-bcb5-11f1e2b7b3d3)  पर भी उपलब्ध है ! आप इसे प्रकाशक/संपादिका से कह कर भी इसकी प्रति मंगवा सकते है !
प्रकाशक का पता है :
हिंद युग्म
1, जिया सराय
हौज़ खास, नई दिल्ली 
110016
(मोबाइल: 9873734046) 

आप सबका अभिन्न 
मुकेश कुमार सिन्हा 

37 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

chhote bhai kad badhaa kar bhaiyaa ban jaaoge .... :)

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... आपने तो पूरा परिचय दे दिया किताब का .. अभी तक हाथ नहीं आई पर इन्तेज़ार नहीं हो रहा ...

रंजू भाटिया said...

सबसे पहले तो बधाई ..बहुत अच्छे से आपने इस में प्रकाशित कविताओं और लिखने वालो के बारे में कहा ..इस संक्षिप्त जानकारी ने पुस्तक पढने की उत्सुकता जगा दी है..शैलेश जी से मिलेगी यह पुस्तक ?

रश्मि प्रभा... said...

मुकेश ... २००७ में बड़ी आजिजी से इसने कहा था - कविता का अ ब स .... मेरे पल्ले नहीं पड़ता ... फिर वह मुझे चुपचाप पढ़ने लगा , फिर एक दिन उसने कहा - तुम बहुत आगे जोगी दीदी .... आज शब्दों के इस अरण्य में उसके जीवन की अपनी राहें हैं और अपना नज़रिया ..... काव्य से काव्य-समीक्षा तक निःसंदेह उसने जीवन की राहों को ठोस बना लिया है .

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही प्यारा संकलन..

rashmi ravija said...

बड़ी मेहनत कर डाली...और बहुत ही खूबसूरती से सबकी कविताओं से परिचित करवाया...
पुस्तक तो मुझे भी मिल गयी है...पर अब तक सारी कविताएँ पढ़ नहीं पायी.
और अब तीन-चार तस्वीरें भेजी थीं....उनमे से उनलोगों को मेरी बत्तीसी दिखाती तस्वीर ही पसंद आई...
{पर वे भी क्या करते..सारी तस्वीरें...हंसती हुई ही थीं..:)}

Kailash Sharma said...

जितना सुन्दर संकलन उतनी ही सुन्दर और सार्थक परिचयात्मक समीक्षा..

शैलेश भारतवासी said...

पुस्तक flipkart से से ली जा सकती हैं।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया समीक्षा की है....
पुस्तक सच्ची बहुत प्यारी है...
मैं बहुत खुश हूँ अपनी रचना यहाँ पाकर...
आभार रश्मि दी का,शैलेश जी का और आपका.

सादर
अनु

shikha varshney said...

जय हो ..जय हो..
महोदय अब आप समीक्षक भी बन ही जाइये :) एक दृष्टि ही नहीं पूरी अच्छी खासी,सुन्दर समीक्षा कर डाली है.
बहुत शुक्रिया इतना मान देने का.:).
हमारी प्रति भी घर(भारत ) पहुँच गई है.जाकर देखते हैं .

Anupama Tripathi said...

bahut badhaaii ...is badhiyaa sankalan ke liye ...!!

Shalini kaushik said...

.बहुत सराहनीय प्रस्तुति.ब्लॉग जगत में ऐसी आती रहनी चाहिए.आभार हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सराहनीय प्रयास ...

Sadhana Vaid said...

'शब्दों के अरण्य में' प्रवेश कर रश्मिप्रभा जी ने जितने श्रम के साथ रचनाओं का चयन किया उनकी इतनी सुन्दर समीक्षा करके आपने उन रचनाओं और रचनाकारों की गरिमा को बढ़ा दिया ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका भी एवं रश्मिप्रभाजी का भी !

सदा said...

आपका यह प्रयास बेहद सराहनीय है ... जबरदस्‍त समीक्षात्‍मक प्रस्‍तुति ..आभार सहित बधाई

मुकेश कुमार सिन्हा said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/07/60-100-110-60-60.html

Satish Saxena said...

रश्मि प्रभा जी ने हिंदी के लिए जो कार्य किया है वह अविस्मरणीय रहेगा !
बढ़िया समीक्षा के लिए आभार मुकेश जी !

vandana gupta said...

निसंदेह बढ़िया संकलन और बढ़िया समीक्षा ………लाजवाब्। मिल गयी है मुझे भी अब देखती हूँ कब फ़ुर्सत मिलती है कुछ कहने की।

ऋता शेखर 'मधु' said...

सार्थक समीक्षा के लिए बधाई !!
आकर्षक मुखपृष्ठ के लिए अपराजिता कल्याणी जी को बधाई !!
रश्मिप्रभा दी की आभारी हूँ कि उन्होंने इस संकलन में मुझे स्थान दिया...प्रकाशन के लिए शैलेश जी का आभार !!
एक बात कहनी है...मेरे नाम में रीता की जगह ऋता कर दें|
मैं अपनी कविता की कुछ पंक्तियाँ दे रही हूँ...आप चाहें तो मेरे नाम के बाद टैग कर सकते हैं...आभार !!

देख विशाल वृक्षों की
कटी निर्जीव कतार
ब्रह्मा कर उठे अट्टहास
रे मनुष्य! मैंने तुझे बनाया
तेरी सुरक्षा के लिए पेड़ बनाये
पेड़ों का करके विनाश
क्यों कर रहा है
सृष्टि का महाविनाश!
पापी है तू, अभी भी संभल जा|

संध्या शर्मा said...

बहुत बढ़िया समीक्षा... शुक्रिया... रश्मि प्रभा जी एवं शैलेश भारतीय जी को आभार सहित बधाई... हमारी प्रति इस कमेन्ट के करने तक नहीं प्राप्त हुई है.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

इस संकलन में मैं भी सम्मिलित हूँ, ये मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है. बीहड़ जंगलों से ढूंढ कर रश्मि जी ने मेरी रचना को यहाँ स्थान दिया, ह्रदय से आभार. शैलेश जी ने बहुत कुशलता से प्रूफ रीडिंग कर इसका प्रकाशन किया है, धन्यवाद. बहुत रोचक तरीके ने आपने इस पुस्तक और कविता (सम्बंधित कवि) की समीक्षा की है, बधाई. इस पुस्तक में सम्मिलित सभी कवियों को बधाई और शुभकामनाएँ.

Archana Chaoji said...

बहुत बढ़िया संकलन...और समीक्षा भी...आभार

Anju (Anu) Chaudhary said...

आपके शब्दों में ...बहुत खूबसूरत समीक्षा ...

''शब्दों के अरण्य में ''...खूबसूरत काव्य संकलन ....बधाई आप सभी को ..

वाणी गीत said...

सिर्फ पाठक कहाँ , अब तो सिर्फ लेखक ही नहीं ,सम्पादक और समीक्षक भी हो गये हो !
अच्छी नजर डाली सभी कविताओं पर , अभी पूरा मैं भी नहीं पढ़ पाई , मगर इतने सारे नामचीनों में खुद को देखकर बहुत अच्छा लगा !
श्रेष्ठ आकलन!
रश्मिप्रभा जी , शैलेश जी के श्रम की प्रशंसा करनी होगी . आभार!
सभी कवि /कवयित्रियों को बहुत बधाई !

हरकीरत ' हीर' said...

शब्दों का अरण्य नहीं ये तो शब्दों का उपवन है .... !!

आपने इस उपवन के कुछ फूलों को पेश किया आभार ....!!

shashi purwar said...

mukesh bahut bahut badhai

Dr.J.P.Tiwari said...

'शब्दों के अरण्य में' घूमते, विचरण करते जो कुछ अनुभूत हुआ, वह इस समीक्षा यज्ञ में 'शब्द- समिधा' के रूप में मेरी भी कुछ आहुतियाँ. रश्मि जी का और शैलेश जी का आभार मेरी रचना को भी इस कृति में स्थान स्थान देने के लिए.


शब्द यदि,
शब्द बनकर
ही रह गए
अर्थ यदि,
अर्थ तक ही
सिमट गए

तो
सिसक उठेंगी,
संवेदनाएं हमारी.
फफक पड़ेंगी
ये वेदनाएं सारी.

इन शब्दों को
वेदनाओं -
संवेदनाओं के
भाव सागर में
बह जाने दो.

पहचान तो
उन्हें लेंगे ही,
अनुभूतियों को
पास तो आने दो.

इन
ध्वनिओं को,
अक्षरों को, वर्णों को
विकसित होने दो,
और खिलने दो.

परिपुष्ट
होने के लिए
उसे विचरने दो.
तन और मन
दोनों से ही स्पर्श
करना चाहता हूँ..

इन ध्वनियों को,
अर्थ - भावार्थों को.
मात्राओं-अनुनासिक
और अनुस्वारों को.

उनके संकेत
और प्रतीकों को,
उनके भाव भरे
लोक गीतों को,
उन्ही का एक
मधुर -मृदुल
सहचरी बनकर.

अब तक तो
जो कुछ भी जाना -
वह नैमिष्य के
अरण्य में जाना.

और आज..
परमाणुओं के
इस अरण्य में,
कुछ नहीं,
बहुत कुछ
ढूंढता हूँ मैं.

जिसे कहते हैं
अरण्य हम सब
चिदणुओं का
समूह है वह तो,
चिदणुओं की
इन गांठों को
अब खोलना
चाहता हूँ मैं.

शब्दों के अर्थ तक
सीमित न रह कर,
शब्दों की समग्रता
चाहता हूँ मैं.

अरण्यों से एक
अनुराग सा अब
हो गया है मुझे.


इन चिदणुओं
के साथ खूब
खेलना चाहता हूँ मैं.
और अब तो
शब्दों के अरण्यों में ही
बस जाना चाहता हूँ मैं.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Dr. Tiwari... Bahut behtareen shabd kahe aapne... dhanywad

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Jeasbe Gurjeet Singh ‎~
Waah ... Kya Samander hai ~!!~
Alfaazoan Ka~
27 July at 13:22 · Unlike · 3

Jeasbe Gurjeet Singh ‎:
mere alfazoan ko jyaada gehrayii tak mat lena ........
yeh tumhii se shuru .......tumhii pe khatm' ho jatey hain !
27 July at 13:24 · Unlike · 2

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Rajendra Tela शब्दों का अरण्य कहो ,शब्दों की वाटिका कहो या कोई और नाम दो,पर निश्चित ही पुस्तक विभिन्न रंगों ,सुगंधों से भरी हुयी है,उसका आनंद लेने के लिए इसे पढ़ना आवश्यक है ,संग्रहणीय प्रयोग माननीय रश्मी प्रभाजी का का व् हिंदी युग्म का
27 July at 13:25 · Unlike · 2

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Chanda Jaiswal वाह ... बहुद ही उत्तम लेखनी है सभी के ..... आभार आपका मुकेश जी इनको हमारी अंश-धारी बनाना
27 July at 13:41 · Unlike · 2

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Gunjan Shrivastava: bahut achchhee sameekshaa ...saree pustak kaa saar sankshep me....saath hee bharapoor rochak bhee..:))
27 July at 14:11 · Unlike · 1

Neelu Neelam: Aapne shailesh ji ko 100 main se 110 marks diya, shailesh ji aap badhaayi ke patra hai. Mukesh Kumar Sinha jin iss samiksha ke liye mera mann hai main aapko 100 main se 200 to kam se kam du hi..:))
27 July at 14:17 · Unlike · 2

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Neelima Sharma: BEHAD KHOOBSURATI SE AAPNE SAMEEKSHA KI HAI ........BAHUT UTSUKTA HAI AAP SABKA LIKHA PARNE KI ..HOPE JALD HI BOOK MERE HATHO MAI HOGI .....SHUBHKAMNAE
27 July at 16:59 · Unlike · 3

प्रियंका गुप्ता said...

खूबसूरत समीक्षा निःसन्देह किताब के प्रति उत्सुकता जगाती है...बधाई...।

प्रियंका गुप्ता said...

खूबसूरत समीक्षा निःसन्देह किताब के प्रति उत्सुकता जगाती है...बधाई...।

Sarika Mukesh said...

बहुत अच्छी समीक्षा!सभी लेखकों को बधाई!
आपको साधुवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बढिया समीक्षा
अब किताब पढने का मन है