छत की मुंडेर पर बैठा
निहार रहा था
सुबह का नीला आसमान
मन था उद्विग्न
चित था अशांत
....थी ढेरों परेशानियाँ
घेरे हुए थे लाखो प्रश्न
क्या करूँ, क्या न करूँ
कब करूँ, क्यूं करूँ
करूँ तो कैसे
ये, वो, जो, तो.............????
दिल में हुक सी उठी
निकली हलकी सी आवाज
कब तक
कब तक करूँ संघर्ष
कब तक गुजरूँ
इस संघर्ष की राह पर..
कब पहुचेंगे वहां
जहाँ तक है चाह......
कब इस विशाल
आकाश के
एक अंश
एक कतरे
......पर होगा
अपना हक़
कब होगा अपना
एक टुकड़ा आसमान
खुद का आसमान..
खुद का वजूद....................
तभी दिखा
एक उड़ता
फडफडाता हुआ
कबूतर.....
जो पास से उड़ कर
पहुँच गया बहुत दूर..
लगा जैसे
जहाँ चाह वहां राह...
जैसे सारा
जहाँ हो उसकी ...
बिना किसी सीमा के
अचानक
सुबह की तीखी होती धूप ने
लगाया सोच पर विराम
फिर शुरू होगया
रोज़ का खेला
वही पुराना झमेला
उतर आया में मुंडेर से
... झटक आया अपनी सोच
और ले आया साथ.
....कबूतर के ओट से
उमीदों भरा एक टुकड़ा आसमान!!
क्योंकि कबूतर के फडफाड़ते पंखो पर
उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
95 comments:
मुकेश ..तुम्हारी सोच को सलाम ..बहुत सटीक लेखन के लिए ...
मुट्ठी में बंद सपनो की खातिर
तुम चलते रहे ...
बिन परवाह के
अनवरत ........
कबूतर के ओट सेउमीदों भरा एक टुकड़ा आसमान!!क्योंकि कबूतर के फडफाड़ते पंखो परउम्मीदों कि ऊँची उड़ानमुझे दे गया अपने हिस्से का एक टुकड़ा आसमानआज खबाबों में.
शब्द भाव और चित्र...तीनों का अनूठा संगम है आपकी रचना...बहुत बहुत बधाई...
वाह ...बहुत ही बढि़या ।
वाह वाह ..आगाज़ और अंजाम दोनों बहुत बढ़िया हैं कविता के.और भाव जबर्दस्त्त.
ये प्रकृति ही हमें जीना सिखाती है.नित नए संघर्ष से जूझना सिखाती है.
बेहतरीन कविता.
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
....बहुत सार्थक सोच..सुन्दर और सशक्त प्रस्तुति..
झटक आया अपनी सोच
और ले आया साथ.
....कबूतर के ओट से
उमीदों भरा एक टुकड़ा आसमान!!
क्योंकि कबूतर के फडफाड़ते पंखो पर
उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान!!!!!!!!!!!!!!
speechless .. really speechless Mukesh ji... behadd umdaa..
आसमान पर स्थायी स्थान ढूढ़ने से कहां अच्छा है, सारे आसमान पर राज करना।
sakaratmak soch se bhari kavita .....badhai.
सोच की ऊंची उड़ान बेहतरीन काव्य बधाई
तभी दिखा
एक उड़ता
फडफडाता हुआ
कबूतर.....
जो पास से उड़ कर
पहुँच गया बहुत दूर..
लगा जैसे
जहाँ चाह वहां राह...
जैसे सारा
जहाँ हो उसकी ...
बिना किसी सीमा के
Umda panktiyan! Maza aa gaya rachana padhke!
अरे वाह उम्मीदो को आयाम देती सुन्दर सोच को दर्शाती एक सकारात्मक कविता के लिये बधाई…………हर किसी को उसके हिस्से का आसमान मिल ही जाता है बस चाह होनी चाहिये राह बन ही जाती हैं।
सपनो को जीने की चाह और उमंग लिए.....सुन्दर और भाव पूर्ण रचना ... मानव मन में बसे अरमान यूँ ही कविता के भाव लिए उमड़ पड़े तो सुन्दर सृजन स्वाभाविक है.... शुभकामनाएं मित्र!!!
वाह भईया क्या बात है ...बहुत खूब लिखा है आपने शब्द भाव का अनूठा संगम है आपकी इस रचना.... उम्मीद पर दुनिया कायम है वो कहते है न "रोशनी गर खुदा को हो मजूर आंधीयों में चिराग जलते हैं" और यदि यही हौंसला कायम रहे तो हर कोई पा सकता है अपने हिस्से का एक "टुकड़ा आसमान"
बहुत कूह ... इसी उम्मीद के दामन को नहीं छोडना चाहिए ... अपने हिस्से का आकाश मिल ही जाता है ...
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना....बधाई।
Sent at 4:04 PM on Wednesday
राजेश: विषय और आपकी कल्पना बहुत अच्छी है। लेकिन कविता में कसावट की जरूरत है। असल में कविता विधा किसी भी बात को बहुत ज्यादा खींचकर कहने की इजाजत नहीं देती। आप उसे जितना ज्यादा खींचेंगे उतनी ही वह बेअसर होती जाएगी। इसलिए आपकी इस कविता का केन्द्रीय भाव बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन उसे कसने का जरूरत है। साथ ही आपने कविता जिस तरह से सफेद बैकग्राउंड में लगाई है वह आंखों को चुभता है। फोटो भी ऊपर ही होना चाहिए था।
bh
ahv achhe hai.
bhav achha hai.
कब होगा अपना
एक टुकड़ा आसमान
खुद का आसमान..
खुद का वजूद....................
यह एक टुकड़ा क्या छत है या आकाश के नीचे मिला सुकून - किसी की आँखों में वजूद ...
सशक्त प्रस्तुति..
उमीदों भरा एक टुकड़ा आसमान!!
उम्मीद ही इंसान की वो आखरी जोत हैं जो सदैव जलती रहे तो मुठ्ठी में मानो आसमान आ गया हो - -जोत बुझी की सब कुछ स्वाह !
बहुत खुबसूरत नज्म हैं मुकेश ...
लाखो प्रश्नक्या करूँ, क्या न करूँकब करूँ, क्यूं करूँकरूँ तो कैसेये, वो, जो, तो.............????hum sab akshar in prashno me uljhe hue rehte hai..kitni sari dubidhaye man me leke jite hai roj...or roj ki wahi pareshani,wahi sangharsh..lagata hai mano zindgi yhi pe ruk gai hai....par umeedon ki nayi aash jo aapne apne rachna ke madhaym se hume dikhlaya hai na wo kabile tarif hai....कबूतर के फडफाड़ते पंखो परउम्मीदों कि ऊँची उड़ानमुझे दे गया अपने हिस्से का एक टुकड़ा आसमानआज खबाबों में..शायद कल होगा इरादों में......और फिर वजूद होगा मेरा....मेरे हिस्से का आसमान..ye line padh kar ek nayi umeed or ek naye haushle ka janm hua hai man me....ki kahi to kabhi to milegi hi apne hisse ki aasman.......bahut khubsurat rachna mukesh ji..bahut achhi lagi bahut bahut subhkamnae...
उमीदों भरा एक टुकड़ा आसमान!!शब्द भाव और चित्र...
मुझे दे गया मेरे हिसे का एक टुकड़ा आसमान ...बेहतरीन रचना मुकेश जी ..........
मुझे दे गया मेरे हिसे का एक टुकड़ा आसमान ...बेहतरीन रचना मुकेश जी ..........
bhut hi badhiya or aap ki soch bhi bhut achi hai
bahut khub mukeshji aapke soch bahut door tak jate aap kese oar bhi soch kar usko shabdo mai uttar sakte hai
bahut acchi kavita aur shandaar soch
kabootar ki udan ke bahane man ki udan...bahut door tak le gayee....
दिल में हुक सी उठी
निकली हलकी सी आवाज
कब तक
कब तक करूँ संघर्ष
कब तक गुजरूँ
इस संघर्ष की राह पर..
कब पहुचेंगे वहां
जहाँ तक है चाह......ये जिंदगी का संघर्ष है दोस्त अनवरत चलता ही रहता है इसका रुक जाना जीवन का रुक जाना होगा तो चलने दो बढ़ने दो अपनी मंजिल को खुद बखुद ये खोज लेगा | बहुत खूबसूरत रचना चित्र भी रचना का पूरा - पूरा साथ देती हुई |
चित्र और रचना का सुन्दर समावेश |
मुट्ठी में बंद सपनो की खातिर
तुम चलते रहे ...
बिन परवाह के
अनवरत ........
बेहतर सपनों की उडान......!
हरेक के हिस्से का आसमां मिल ही जाता है ..सुन्दर प्रस्तुति
खूबसूरत सोच और सुन्दर कविता मुकेश जी ..
Shweta Agarwal :
mera cmnt nahi post ho raha....
Kya hai zindgi....
Dekho to khwab hai zindgi....
Padho to kitab hai zindgi....
Suno to gyan hai zindgi....
Aur dekho toh ek badi Udaan hai zindgi.
Bahut hi badhiya tareek se aashayein wyakt ki gayi hain Mukeshji...bahut badhai.
क्योंकि कबूतर के फडफाड़ते पंखो पर
उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
...
एक ही कविता में निरर्थक से सार्थक का सफर तय कर लिया भाई तुमने ...वाह बहुत खूब !
ले आ गई.बाप रे लड़का है या आतंकवादी?हर बात पर धमकी देता है दुष्ट!
खुले आसमान के नीचे खड़ा था तभी तो कबूतर को पंख फ्द्फ्दाक्र उड़ते देख सका. कमरे में होता तो देख पाटा? हा हा हा आसमान उनका ..जिसने इसे पाने की ख्वाहिश की और अपने पंखो को फैलाकर आसमान की ऊंचाई ली और छू लेने के लिए प्रयास.गीता में कृष्ण ने स्पष्ट कहा तो है फल दूंगा.......... यकीन मानो वो देता है.आसमान को पाने के लिए कर्म किया है तो आसमान भी मिलेगा बाबु! अपनी मुट्ठी में भींच लेना अपने आसमान को और......सौंप देना अपने बच्चो के हाथ 'लो मेरे आसमान को जो तुम्हे सौंपता हूँ.अपने हिस्से का आसमान इसमें मिला देना.'
जियो और आसमान पाओ..अपने लिए...अपनों के लिए.
बात सिर्फ़ उस एक टुकड़े की ही है .... फ़िर उस एक टुकड़े को पूरा आसमान बनने में वक्त नहीं लगता ........ बहुत अच्छा लिखा :)
ख्वाइश, बेबसी, उम्मीद , और विश्वास के अंतर्द्वंद का सटीक चित्रण " इक टुकड़ा आसमान"
achhaa likhte ho
padh kar mazaa aayaa
shubhkaamnaayein
bahut hi sundar lekhni ...bahut bahut badhai...
मृदुला: mere hisse ka aasman
isi ki to talaash mein sab bhatak rahe hain, sab sangharsh kar rahe hain
aur aakhir mein reh jati hai apne hisse ki do gaz zameen bas
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..मुकेश
aap ka likha mujhe hamesha se achcha lagta hai aap meri frd list mai nhi they tab bhi .... is blogging ki duniya se aprichit hu mai .. par aap sabko dekh kar ek prerna milti hai k mai bhi bahut kuch kar sakti hu bas ek kabootar ki uran agar bharne ka housla agar mil jaye .......... or aapke is housle ko naman karti hu speechless post really . hats off buddy
♥
प्रिय बंधुवर मुकेश कुमार सिन्हा जी
सस्नेहाभिवादन !
मन में उतर जाने वाली कविता है …
उतर आया मैं मुंडेर से...
झटक आया अपनी सोच
और ले आया साथ.....कबूतर के ओट से
उमीदों भरा एक टुकड़ा आसमान!!
बहुत सुंदर ! सकारात्मक सोच के ऐसे सृजन की आवश्यकता है …
अपने हिस्से का एक टुकड़ा आसमान
आज खबाबों में..
शायद कल होगा इरादों में......
और फिर वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
सुंदर रचना के लिए आभार !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
क्योंकि कबूतर के फडफाड़ते पंखो पर
उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान!!!!!!!!!!!!!!
इसी एक टुकड़े का एहसास रह जाता है साथ...!!
वाह ! दिल को छु गई बहुत ही सुंदर रचना ...
बहुत खूब.... बढ़िया रचना...
सादर...
CHANDIDUTT: अच्छा है. बधाई. भाव सुंदर हैं। शिल्प पर थोड़े और काम की ज़रूरत लगती है। हालांकि शिल्प बड़ी चीज नहीं है। भाव ही आधार हैं। सुंदर लिख रहे हैं। मेरी बधाई और शुभकामनाएं स्वीकारें.
कमेंट्स पोस्ट नहीं हो रहे. कुछ तकनीकी दिक्कत है।
बहुत भावप्रणव रचना!
बहुत खूब सर!
सादर
वाह ....अति सुन्दर .
उम्मीदों की उड़ान हो तो संभावनाओं का पूरा आकाश समक्ष है!
बहुत खूब...
आभार...
कभी हमारे ब्लॉग पे भी आयें
mymaahi.blogspot.com
ये, वो, जो, तो.....fir wahi...aam se shabd...jo tumhari lekhni mein arthpurna ho jate hain.........ये, वो, जो, तो.jugat mein..ek tukda aasmaan...kabhi na kabhi mutthi mein aa hi jata hai...shubhkaamnayein....tumhare hisse ke tukde ke liye...aur..us aasmaan ki dhoop..aur barish ka hissa hum sab sada hi bane rahein..yahi kaamna hai..
behtreen rachna....
Mita Srivastava:
comment ni post ho raha bhaiya
mai aapko yahan hi bata deti hun
quality of life... bhautiktavad se aatmik darshan ki anoodi rachna hai... ye bahut hi khoobsoorat kavita hai
bahut khoob bhaiya....
क्योंकि कबूतर के फडफाड़ते पंखो पर
उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
aameen ..............sundar abhivaykti ..........
BEJOD RACHNA...BADHAI SWIIKAREN
NEERAJ
lajabaav rachana
खूबसूरत कविता मुकेश भाई... देर से पढ़ रहा हूं... लेकिन आपकी एक बेहतरीन कविता है यह...
मुखेश जी , आप के बारे में पढा ,और आप का लिखा भी पढा,इतने -इतने अनुभवी लोगों की टिप्पणियाँ भी पढ़ी ...मैं इन में अपने आप को कहीं खड़ा होने लायक नही पाता!
पर आप के प्यार ,मान-सम्मान के आगे आप का सिर्फ आभार प्रकट करता हूँ |
आप को अपना बचपन ,जवानी ,दोस्त वो अपना शहर याद आता है पढ़ कर जान कर सुकून मिला .और मुझे भावुक कर गया ....
"वो गल्लियाँ अभी तक हसीनों -जवां है
जहां मैंने अपनी ज़वानी लुटा दी ....
एक मुठी आसमान की सब को चाहत है ..मुझे भी ..अब भी !
खुश और स्वस्थ रहें !
शुभकामनाएँ!
उम्मीदों का दामन थामें आगे बढ़ते चलो सकारात्मक सोच के साथ...शुभकामनाएँ.
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
इतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
बहुत सार्थक शब्दचित्र प्रस्तुत किया है आपने!
Roli Bindal Lath कब होगा अपना
एक टुकड़ा आसमान
खुद का आसमान.......pooora asman aapki bahon me jab ummiden hon man me......
Yesterday at 10:30 · Like · 1
Alka Bhartiya वाह क्या बात है
Yesterday at 10:38 · Like
Alka Bhartiya मिला जाये गर सबको उसके हिस्से का असमान ना हो बदनाम येह धरती और ज़िंदगी ना लगे नाकाम
Yesterday at 10:38 · Like · 1
Kavita Rathi उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान....waah bahot hi sundar..
Yesterday at 13:10 · Unlike · 3
Chanda Jaiswal Mukesh jee .....उम्मीद ... बहुत ही सुन्दर वर्णन है ... उम्मीद पर हम बहुत कुछ कर जाते है ......
वादों से आगे बढ़कर
सिर्फ विश्वास जहां लिखा हो
शब्द हो न हो,
एहसास जहां लिखा हो
ऐसी वादियों में चलो तुम इस जहां से दूर .....
--------------------------------
Yesterday at 13:14 · Unlike · 2
Riya Love: har koi chahta hai ...ek muthi aasmaan ...har koi dhundgta hai ..ek muthi asmaan .....maine bhi chaah lia to kya gunah kia ....hain na mukesh ji .......acchi kavita hai maine padh li thi mili ke profile me ;)
3 hours ago · Unlike · 1
Amit Anand Pandey क्योंकि कबूतर के फडफाड़ते पंखो पर
उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान
sundar! bahut sundar dada!
15 minutes ago · Unlike · 1
bahut saarthak, aashaawadi aur sandeshprad rachna...
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
ज़िन्दगी की उड़ान को दर्शाती एक सशक्त रचना है..
कभी-कभी छोटे लोग (यहाँ पंछी) भी वो सिखा जाते हैं जिसकी ज़रा भी उम्मीद नहीं होती है..
एक टुकड़ा आसमां की चाहत .. और उम्मीद देती रचना ..बहुत सुन्दर ..
बहुत सुंदर
क्या कहने
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान
उम्मीद का दामन और
सपना पूरा होने की उम्मीद
कभी नहीं छोडनी चाहिये
विश्वास दिलाती रचना.... !!
Kadambari Goel Jain: atyant sundar.....bhaavpoorna lekhan....
'har koi chahta hai ek mutthi aasmaan.......' sach :)
Tuesday at 23:05 · Like
Modesty India: आसमान ने कब किसको दि है मर्जी की उडान
धायल परो से पूछो,कितने काटे है हवाओ में अबतक
Wednesday at 21:49 · Like
Putul Sharma: tumharaa aasmaan...kai roopon main tumhare saamne hai...saath hai...ab kuchh unke liye chhor do...jinke hisse...kuchh bhi nahi hai...
Yesterday at 10:24 · Like
Putul Sharma: ekaye saadhe sab sadhe...sab saadhe sab jaaye.....tumhare pass apnaa ek khilaa hua wajood hai....tumhare apne ..tumhare wajood ko dekh prafullit hain....naaj karte hain tumpar...aur tum saadhaarn maanw ki tarah...khud ko nahi pahchan paa rahe....
Yesterday at 10:26 · Like
Putul Sharma: man ko shant keejiye mahashay....udwign man....aapko kuchh likhne nahi degaa....
Yesterday at 10:27 · Like
Soma Shankhwar: bahut khoob
22 hours ago · Like
Soma Shankhwar: क्योंकि कबूतर के फडफाड़ते पंखो पर
उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान....
22 hours ago · Like
वाह क्या बात कह दी आपने .....ऐसे लगता है जैसे सबकी सोंच एक साथ जाकर आपके मन में कौंध गयी और निकल आया बाहर शब्दों का भंडार ........बेहतरीन मुकेश जी ...
बहुत सार्थक सोच..सुन्दर और सशक्त प्रस्तुति..
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
...बहुत सकारात्मक सोच...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
...बहुत सकारात्मक सोच...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
जहाँ चाह वहाँ राह-बस प्रेरणा की आवश्यकता होती है
बहुत सुन्दर रचना!!!
Harvinder Singh Rubal bahot hi umdaaaa....Mukesh ji....
sorry missed on reading this.... ~
कब इस विशाल
आकाश के
एक अंश
एक कतरे
......पर होगा
अपना हक़
कब होगा अपना
एक टुकड़ा आसमान
खुद का आसमान..
खुद का वजूद............lajawaab.... ~
11 December at 03:38 · Like
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 22 -12 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... क्या समझे ? नहीं समझे ? बुद्धू कहीं के ...!!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति लगी आपकी.
सार्थक और प्रेरक.
मेरे ब्लॉग पर आप आये,इसके लिए आभारी हूँ आपका.
आना जाना बनाये रखियेगा मुकेश जी.
आनेवाले नववर्ष के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
ye kavita Lokayat me publish hui hai...
http://lokayat.co.in/hin/index.php?option=com_content&view=article&id=180%3Ajanuary-1-15-2012
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.........बधाई।
उम्मीद को थाम के चलो, पंख तो परवाज भर ही लेंगे ...जमी का क्या आसमा भी अपना कर ही लेंगे ./बहुत अच्छी रचना बधाई
"कबूतर के फडफाड़ते पंखो पर
उम्मीदों कि ऊँची उड़ान
मुझे दे गया अपने हिस्से का
एक टुकड़ा आसमान
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान.."
aur kya chaahiye....
bas itna hi to....
Nice... Acha likha hai...
आज खबाबों में..
शायद कल
होगा इरादों में......
और फिर
वजूद होगा मेरा....
मेरे हिस्से का आसमान..
bahut saral bhasha aur sehaj bhaav me keh di aapne har aam insaan ki baat ...
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