घर की सफाई
और फिर गलती से मिली
एक पुरानी संदुकची
था जंग लगा ताला
जिसकी चाभी हो गयी थी ग़ुम
और फिर गलती से मिली
एक पुरानी संदुकची
था जंग लगा ताला
जिसकी चाभी हो गयी थी ग़ुम
पड़ा हल्का सा हाथ
खुल गया ताला
एक दम से चलचित्र के भांति
आ गए सामने
वो दिन, वो अतीत
खुल गया ताला
एक दम से चलचित्र के भांति
आ गए सामने
वो दिन, वो अतीत
चाय का कप
कप के नीचे
छूती हुई दो उँगलियों का स्पर्श
दिए हुए उपन्यास के पन्ने
जिस पर बने होते थे
छोटे छोटे प्रेम के प्रतीक
या रखी होती थी
सुखी गुलाब की पंखुडियां
कप के नीचे
छूती हुई दो उँगलियों का स्पर्श
दिए हुए उपन्यास के पन्ने
जिस पर बने होते थे
छोटे छोटे प्रेम के प्रतीक
या रखी होती थी
सुखी गुलाब की पंखुडियां
झिलमिलाया एक
नाजुक फुल सा चेहरा
बारिश की बूंदों से भींगी लटें
और कुछ यादगार बीते लम्हें
और संदुकची में थे...
कुछ पीले हो चुके जर्द पन्ने,
पुरानी तस्वीरें, कुछ उपहार
नाजुक फुल सा चेहरा
बारिश की बूंदों से भींगी लटें
और कुछ यादगार बीते लम्हें
और संदुकची में थे...
कुछ पीले हो चुके जर्द पन्ने,
पुरानी तस्वीरें, कुछ उपहार
पन्नो में थे सहेजे हुए शब्द
जो कहना था उसे
पर कह नहीं पाया
या समझ लो
उस तक पहुँच नहीं पाया
ख़त की स्याही हो चुकी थी धुंधली
पर याद अभी भी ...
एक दम से हो चुकी थी चटख
जो कहना था उसे
पर कह नहीं पाया
या समझ लो
उस तक पहुँच नहीं पाया
ख़त की स्याही हो चुकी थी धुंधली
पर याद अभी भी ...
एक दम से हो चुकी थी चटख
पर सुनो तो
मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला
क्योंकि उन सहेजे यादों
को फिर से नहीं चाहता
अपने सामने देखना
मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला
क्योंकि उन सहेजे यादों
को फिर से नहीं चाहता
अपने सामने देखना
क्योंकि मैंने व उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न.................!!
~मुकेश~
84 comments:
इमोशनल कर गई कविता.. सदुक्ची के माध्यम से बढ़िया कविता आप कह गए हैं...
arun bhai...dhanyawadd....!! aajkal samay ki kami ke karan, kuchh ban nahi pa raha tha...fir bhi koshish ki hai...:)
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
बेहतरीन भावमय करते शब्द ...।
छूती हुई दो उँगलियों का स्पर्श
दिए हुए उपन्यास के पन्ने
जिस पर बने होते थे
छोटे छोटे प्रेम के प्रतिक
या रखे होते थे
सुखी गुलाब कि पंखुडियां
..
.. अद्भुत भाई
काफी इंतजार के बाद आई आपकी यह रचना मगर ...सहज पके सो मीठा होए ....अंत्यंत मधुर रचना ....ले गयी अतीत में ..
आप के पास जो संदूक है उअसको नमन भाई...यहाँ जो जन्मजात कंगाल हूँ कोई संदूक नही है कोई धरोहर नही है मेरे पास ....
मगर ये क्या भाई ...यह क्यूँ किया आपने
.............
पर सुनो तो
मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला
क्योंकि उन सहेजे यादों
को फिर से नहीं चाहता
अपने सामने देखना
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
अरे स्मृतियों की कीमत पर ये नयापन ???
ऐसी ही संदूकची हर जीवन में होती है बस उसमें होने वाले सामान में अंतर हो सकता है. कभी वो संदूकची सिर्फ मन के किसी कोने में अपनी संपत्ति समेटे अदृश्य सी छिपी रहती है. लेकिन होती जरूर है.
@dhanyawad Sada jee...
@oh anand bhaiya aap bhi na....puri samikshha kar daali aur sirf kavita ki khubi hi dekhi...:)
यादों की सन्दूकची तो शायद हर इन्सान ही सहेजता है मगर आपने अच्छा किया उसमे नया ताला लगा दिया आगे बढना ही जीवन है। शुभकामनायें।
Waaah.... bahut hi bhaawpurn hai yeh to...! Accha kiya naya taala laga diya, warna purani yaade nayi zindgi main jang laga deti hai..!
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न.................
बहुत सुंदर ...मुकेश भाई ...
अतीत तो अतीत है एक सपना होता है ....
जो सामने है वही सच अपना होता है ....!!!!
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ...!!
man ki gahraiyo tak chu gayi apki rachna...
सुनो तो
मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला
क्योंकि उन सहेजे यादों
को फिर से नहीं चाहता
अपने सामने देखना
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न.................बहुत ही सशक्त रचना है, नए कदम दृढ विश्वास
bahuuut khub...
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न.................
यथार्थ को कहती सुन्दर रचना ...
इन संदुक्चियों में ताला ही पड़ा रहे तो बेहतर....
अच्छे भाव!!
आदरणीय मुकेश जी
नमस्कार !
नए जीवन में सांस लेना ...
बेहतरीन भावमय करते शब्द ...।
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ
अतीत की कुछ पुरानी यादों में खो गये हम भी..बड़ी संजीदगी से आपने भावनाओं को व्यक्त किया है..एक उतम प्रस्तुति...भावप्रण।
बहुत ही खूबसूरत..एक एक शब्द भावनाओं में पका हुआ.
छूती हुई दो उँगलियों का स्पर्श
दिए हुए उपन्यास के पन्ने
जिस पर बने होते थे
छोटे छोटे प्रेम के प्रतिक
या रखे होते थे
सुखी गुलाब कि पंखुडियां
कितना सहज ...फिर भी अद्भुत.
वो अफसाना जिसे अन्जाम तक लाना न हो मुमकिन,
उसे इक खूबसूरत मोड देकर छोडना अच्छा!
पर सुनो तो
मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला
क्योंकि उन सहेजे यादों
को फिर से नहीं चाहता
अपने सामने देखना
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न.................
sahej kar rakhne se hi uski hifajat hogi ,sundar
बहुत बढ़िया लिखा है सर.
सादर
ये दिल की पुरानी संदुकची को बंद ही रहने दो दोस्त जब दिल करे खोल कर झांक लिया करो ये तो पुरानी यादों से भरी हुई लगती है देखो कही नज़र न लग जाये | सुन्दर एहसासों से सजी ये संदुकची |
सुन्दर रचना |
...आज काफी दिनों बाद आईने से बात की..
मैं मुस्कुराया तो शिकायत की उसने..
खुद तो झूट बोलते ही हो..मुझसे भी बुलवाते हो..!!!
और भी बहुत कुछ मिला होगा...कुछ ऐसा जिसे हम छीन सकते हैं और तुम छिपाना चाहते हों...
पुरानी संदुकची........यादो का एक आईना ...कुछ अपनी पुरानी सहेली सी है ये यादे ..जो साथ नहीं छोडती
बेहतरीन रचना, यादों की नदी में।
वाह यादो की संदूकची मे तो बहुत कुछ भरा पडा था और उसे खूबसूरती से सहेजा है।
@रेखा दी..मनन की संदुकची भी समझ सकती हो इसको...:)
@जी निर्मला दी...यही जरुरी होता है...
@शुक्रिया प्रीती.....अनुपमा, सुषमा !!
@धन्यवाद रश्मि दी, नीता जी, संगीता दी.., समीर भैया...
@संजय जी आप व्यस्त होने के बाद भी आये, यही बहुत है...
दोस्त कितनी तिजोरी / अलमारी / शोकेश आये पर वे सब इस संदुकची के आगे तुच्छ हैं ..
अनिल अत्तरी
आपकी कविता में कथ्य और संवेदना का सहकार है जो मन को भावुक कर गए।
नया ताला..! बहुत खूब।
sandookachi me band yaden...jeeevan ka ek jaroori hissa..bahut sunder bhav...
मुकेश जी,
आप इस कविता के द्वारा मुझे अपनी संदुकची तक ले गए और उसे खोल कर अतीत की यादों को आमने-सामने कर दिये| नया ताला तो लगाना ही पड़ेगा-
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न.................
बेहतरीन रचना| धन्यवाद.. :)
अच्छे भाव। सबको अपने लगेंगे।
यादों की संदुकची के ताले ज़रूरी हैं ... वरना हम चलना नहीं सीख पाएंगे , हर कदम पर आँखों के आगे धुंधलका होगा
उन दो उंगलियों का स्पर्श हर पंक्ति में स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है ....अच्छी प्रस्तुति ......आभार !
Beautiful creation!
मैंने और उसने सीख लिया है ...
नई उमंगों के साथ ...
नयी बहारों के साथ ...
फिर तो संदुकची में ताला ठीक ही लगाया ...
ऐसी ही एक संदुकची मेरे पास है भी है जंग लगी मगर उसे मैंने बहुत संभाले रखा है ! शुभकामनायें आपकी संवेदनाओं को !
@thanx Er. Satyam, Shika...jyoti jee, yashwant jee
@bas bade bhaiya aapki baat sir aankho par...
@meenakshi.....aapki baato ne khushi di......
@putul......aisa kya jhooth bol diya maine, jo aapko pata chal gaya:)
@anju......:)...rachna thik lagi ya nahi..
Bahut khoob ... beeti huyi baaten dil ko saalti hain ... par unme nai khushboo ateet ko madhur bana deti hai ...
मन भावुक हो उठा।धन्यवाद।
यादों की तिजोरी, भावों का खजाना.
जब ये जमाना पुराना हो जायेगा
तो फिर से खोलेगा कोई
उस संदुकची को
फिर से यादें बाहर को उमड़ेंगी
गर उन्हें सदा के लिए दफ़न न किया गया तो....
चखिए तीखा-तड़का
सीएम ऑफिस से शर्मा को फोन
sandukchi mein naya taala...kya baat hai, zindgi yun hin jina sikha deti hai. yaadon ko sahejna bhi aur use apne se door rakhna mumkin kaha hota chaahe kitna bhi bada tala laga diya jaaye. par achha hai ki samay ke sath vyawahaarik ban jaya jaaye. bahut achhi rachna, badhai Mukesh.
बेहतरीन रचना, यादों की नदी में।
पर सुनो तो
मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला
क्योंकि उन सहेजे यादों
को फिर से नहीं चाहता
अपने सामने देखना
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न.................
बहुत ही सुन्दर भाव है बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,
अक्षय-मन "!!♥๑۩۞۩๑मन-दर्पण๑۩۞۩๑♥!!" से
@प्रवीण भाई., वंदना जी ...आपका छोटा सा कमेन्ट भी मुझे ख़ुशी देता है
@अनिल सर, विष्णु सर आप हमारे ब्लॉग पे आये, ख़ुशी हुई..
@मनोज सर...आपका कमेन्ट सर आँखों पर...
@देवेन्द्र जी, कविता, हेमंत जी ...धन्यवाद्
@शुक्रिया निवेदिता...डॉ. दिव्या, वाणी जी...
@हा हा हा हा सही है सतीश सर...वैसे सबके पास होती है ऐसी संदुकची...
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न.................
इसी में समझदारी है.
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
पुरानी संदूकची में संजोई स्मृतियाँ बहुत लुभावनी लगीं ।लेकिन उनमें ताला क्यों लगा दिया…।खट्टी -मीठी यादों परक तत्वों के साथ वर्तमान में भी तो जीया जा सकता है। न जाने वे कब -कैसे -किस पल के लिए अमूल्य हो जायें ।
सुधा भार्गव
'मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला '
bahut achhe
@धन्यवाद् दिगंबर सर.., प्रेम सरोवर जी, राहुल सर, patali
@एम सिंह ...सही कहा आपने:)
@जेन्नी दी...आपके कमेन्ट हमें motivate करते हैं...
@शुक्रिया अक्षय,. रामपति जी,
@दिनेश जी...आपके कहते ही आपके ब्लॉग पे पहुच गया...:)
@सुधा जी....बहुत बहुत धयवाद...हमारे ब्लॉग पे आने के लिए..!
@मीनू जी..............धन्यवाद्
बहुत सुन्दर कविता ! कभी कभी पुरानी यादें दर्द बढ़ा जाती है ...
on email:
Sharmita:
really nice one!!!
sabke jeevan ka kabhi na kabhi, kahin na kahin ka satya hai ye...."aapne aaj sabko rulaya hoga; padhwakar apni rachna ateet mein pahuchaya hoga"....bhavpoorn marmik rachna...
firstly welcome and then thanx!!
Ragini!
waah! bahut khubsurati se aap ne ateet ke ahsaason ko prastut kiya hai.
aise ahsaas bhi kismat walon ko naseeb hote hain..sambhaale rakheeye yeh sandukchi...
many many thanx alpana jee.......
mukesh ji
bahut hi behatreen prastuti.yaade to peechha kabhi -bhi nahi chhodti hain fir bhi ham unko saheje rahte hain jo baad me sukh -dukh dono ka hi anubhav kara jaate hain
bahut hi bhavpravan prastuti
badhai
poonam
बेहद सुंदर और सार्थक कविता.. बधाई
मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला
झूठ........
सरासर झूठ ......
मुझे तो ताले की जगह छेद नज़र आ रहा है मुकेश जी ......
:))
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
यादों को समेट कर जीने की कला सिखाती भावभीनी कविता...
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
यादों को समेट कर जीने की कला सिखाती भावभीनी कविता...
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
......बहुत ही सशक्त रचना है
यादें - छूटे हुए पल, छूटते कहाँ हैं।
बहुत बढ़िया और दिल को छू गयी आपकी यह कविता.
सादर
mukesh ji...bahut der se sahi par durust aayi.....deri se aane ke liye kshma prarthi hun.....aapki sandukchi anmol hai...jeevan ke anupam bhavo ka khazana....badhayi aapko
mukesh ji
sach mai bahot hi suder rachna hai ye. dhanyawad ki aap ne itni sunder rachna hum sab ke bati. bas aise hi likhtay rahiye yahi shubkamna ...
Palak
nice..
मैंने फिर से उस संदुकची में
लगा दिया एक नया ताला
क्योंकि उन सहेजे यादों
को फिर से नहीं चाहता
अपने सामने देखना
क्योंकि मैंने और उसने
सीख लिया है
नए जीवन में सांस लेना ...
नए उमंगो और नए बहारो के साथ....
है न...................bahut khubsurat rachana hai aapki....dil ko chhu gai....or shayd aesi sandukachi har kisi na kisi ghr me to jarur hoti hai...jinme band kuchh sapne hote hai...kuchh umeeden hoti hai..kuchh pane ki kushi hoti hai..kuchh khone ke gum hote hai....jispe hum sab ek tala laga dete hai....
.बहुत ही सशक्त रचना
bahut hi badiya rachna...
yade kabhi khatm nahi hoti bas jarurat unhe jhaadne ponchhne ki hai ki wapis apne chatakh rang me aa jati hain.
kavita me samvedna aur halaato ka kathuraghat bimbit hota hai.
जितने लाइनों की ये कविता
इससे बढ़कर लाईने कमेंन्ट्स में
छा गई ये कविता
और छा गए आप
संदूकची खुली
और आपको मिला एक अकूत खजाना
यादों का
उसमें कुछ और जोड़ कर
बन्द कर दीजिये फिर से
आने वालों के लिये
सादर
purani sandukachi mein naya tala???....sath mein aur bhi kuchh rakha hoga na aapne???
बहुत ही उत्कृष्ट रचना ! हर शब्द साँस सी लेता हुआ और हर अहसास दिल को छूता हुआ ! बहुत सुन्दर !
पूरानी यादों को भूलकर नए जीवन
में खुश रहना ही जीवन है..
अति उत्तम अभिव्यक्ति....
:-)
यादों की सन्दूकची का ताला खोलते रहना चाहिए...। उनसे कई बार नई उर्जा, ज़िन्दगी जीने का नया उछाह मिलता है...।
अच्छी रचना...बधाई...।
प्रियंका गुप्ता
बहुत अच्छे अच्छे कमेन्ट्स मिले हैंः)
पुरानी संदूकची जिन्दगी का अहम हिस्सा होती है
उसपर नया ताला जड़ दिया...अच्छा किया...यादे सुरक्षित भी हैं...आगे बढ़ने का उमंग भी है...बहुत सुंदर !!
ये पुरानी यादें ही तो हमारे आज को खुशहाल रखती हैं मुकेश जी...
"वो भाग्यशाली हैं की ऐसी संदुक्नी है जिनके पास .... जो गुजरी यादों,बीते लम्हों को आज भी सहेजे हुए है....
दिल को छू जाने वाली ये रचना... उस संदुक्नी के चित्र को आँखों के सामने जीवंत कर देती है....
बहुत ही सुन्दरता से और कोमलता से बनायीं है ये आपने...
काश की ऐसी सदुक्नी मेर पास भी होती.... "
सादर
बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...
ह्रदय भी तो एक संदूकची है जिसमे समाया रहता है यादों का एक अपार भण्डार बहुत अच्छी लगी आपकी रचना
Post a Comment