जवान हो रहा था बचपन
जब उसके
आँखों में
खिलने
लगे थे स्वप्न
वैसे तो
जिंदगी में
थी
खिलखिलाहट
मिला वो
प्यार व दुलार
जिसका था
वो हकदार
पर वो
सपना
जो उसने
आँखों
में था
संजोया...
वो
टिमटिमा रहा था
.
क्योंकि उस सपने
को
जहाँ था देखा
मन के उस झक्क सफ़ेद
कैनवेस में
भरने वाले
रंगों
में थी
चमचमाहट
की जरुरत
पर कुछ
जिम्मेवारियों ने
उधेर दी
थी रंगों की चमक
चहकता
दमकता सपना
थोड़ा
फीका होकर हुआ अपना....
.
सपनो की
जगमग बगिया
में
जैसे ही जिम्मेवारी की छाया
ने लिया
बसेरा...
सतरंगी
सपना
हुआ
धूमिल
पर कोई
नहीं.....
.
जो थी
मृग-तृष्णा
हम में
भी है 'दम'
कुछ जरुर
कर पाएंगे हम
वास्तविकता
के धरातल तले
जिम्मेवारी
के बोझ तले
बस उस से
थोड़े ही हैं कम....
आज कल
कभी कभी
आँखे हो
जाती है नम
जब बंद
आँखों के सामने
थिरक
जाती है...
वो
पुराने सपने का जखम...
.
लेकिन
फिर से चौंधियाने लगी है
वो नम
आँखे
क्योंकि
सुनहले सपने
फिर से
लगे झिलमिलाने
बस बदल
गए किरदार
पहले
होता था स्वयं
अब होते
हैं उसके पुत्र....
शायद कोई
तो हो
सपनो का तारणहार..........
उसको कर सके
गुलजार...........
होगा
न............???.
ऐसे ही .......... J कुछ भी J
62 comments:
हम में भी है 'दम'
कुछ जरुर कर पाएंगे हम
वास्तविकता के धरातल तले
जिम्मेवारी के बोझ तले
बस उस से थोड़े ही हैं कम....
आज कल कभी कभी
आँखे हो जाती है नम
जब बंद आँखों के सामने
थिरक जाती है...
वो पुराने सपने का जखम...
...
......मुकेश आम इन्सान की जमीनी वास्तविकताओं का मार्मिक कहूँ या भावुक चित्रण किया है आपने..बहुत प्यारी रचना इस लिए लगी क्यों की ये हम सबका सत्य है भाई ...जो तुमने अनायास ही कह दिया वो भी इतनी खूबसूरती से !!
hame pata tha...aap isme bhi kuchh badai karne layak dhundh hi loge..:)
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
very nice ..
Please visit my blog.
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Main bhi Anand ji ki baat se sehmat hoon bs wahi panktiyan mujhe achhi lagin jo Anand ne likhin..agar kavita thodi chhoti hoti to jyada achha hota.
Keep it up Mukesh ji..:)
Main bhi Anand ji ki baat se sehmat hoon bs wahi panktiyan mujhe achhi lagin jo Anand ne likhin..agar kavita thodi chhoti hoti to jyada achha hota.
Keep it up Mukesh ji..:)
जो थी मृग-तृष्णा
हम में भी है 'दम'
कुछ जरुर कर पाएंगे हम
वास्तविकता के धरातल तले
जिम्मेवारी के बोझ तले
बस उस से थोड़े ही हैं कम....
आज कल कभी कभी
आँखे हो जाती है नम
जब बंद आँखों के सामने
थिरक जाती है...
वो पुराने सपने का जखम...
... in panktiyon mein we yaaden hai jab suraj apni mutthi me lagta hai , per yatharth ke dharatal per image banane ki prakriya me bas nami rah jati hai ....
@सदा, हर्मन ... धन्यवाद्!!
@नीलम जी, हमें पता है, इस कविता में वैसा कुछ भी खास नहीं है....कोई नहीं...इसको भी झेल लो...:)
@रश्मि दी...हाँ बस सीधे साधे शब्दों में मैंने जो सोचा लिख दिया....:)
मुकेश भाई /
दायित्वनिर्वहन की बेजोड़ कविता ....
मुकेश जी
अच्छी कविता | मेरा मानना है जिम्मेदारियों को बोझ ना समझ कर जीवन के रास्तो का पड़ाव समझे बस अपना कर्तव्य कर्म समझे तो जीवन का कोई भी रंग ना फीका पड़ेगा ना कोई सपने आँखों से ओझल होंगे | जीवन हंसते हुए उन्ही रंगों के साथ पूरे होंगे |
प्रिय बंधुवर मुकेश कुमार सिन्हा जी
नमस्कार !
जिम्मेवारियों तले दबता सपना… रचना हर आम मध्यमवर्गीय की रचना है । बहुत ढंग से आपने बात कही है , बधाई !
लेकिन कहा है न …
कभी किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता …
… अब आपके अच्छे स्तरीय कवि बनने के दिन ज़्यादा दूर नहीं :)
"आत्ममुग्धता ही तो होती है गुणों की सबसे बड़ी अड़चन !" शुभकामनाएं !
>~*~मकरसंक्रांति की हार्दिक बधाई और
मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जो थी मृग-तृष्णा
हम में भी है 'दम'
कुछ जरुर कर पाएंगे हम
वास्तविकता के धरातल तले
जिम्मेवारी के बोझ तले
बस उस से थोड़े ही हैं कम
.
बहुत अच्छी पंक्तिया और पूरी कविता कि शानदार है
मुकेश जी जो कविता सीधे सादे शब्दों में दिल से लिखी जाती है वो सीधी दिल में समा जाती है...आपकी कविता को भी दिल तक पहुँचने में लम्बा रास्ता तलाशना नहीं पड़ा...बेहद नपे तुले शब्दों में आपने अपने मन की बात लिखी है...बधाई स्वीकारें...
नीरज
अपने बचपन कि तस्वीरे अब अपने बच्चों मै ही देखने को मिलती है दोस्त !
अपने बीते दिनों कि यादों को उन्ही मै देख कर ताज़ा कर लिया करो !
खुबसूरत एहसास !
@बब्बन सर, बेजोर तो नहीं है.........फिर भी धन्यवाद्...
@बहुत प्यारी बात कही आपने अंशुमाला जी..............शुक्रिया..
@राजेंद्र सर !!"आत्ममुग्धता ही तो होती है गुणों की सबसे बड़ी अड़चन !" इस बात के लिए क्या कहूँ, धन्यवाद्...:) बिलकुल सही..!!
मुकेश भाई, जीवन के यथार्थ को कविता में बडे सुंदर ढंग से पिरो दिया है। हार्दिक बधाई।
---------
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
एक फोन और सारी समस्याओं से मुक्ति।
भावना प्रधान अच्छी कविता
मन का आत्मविश्वास जब इस प्रकार व्यक्त होता है तो पढ़कर बहुत अच्छा लगता है।
@धन्यवाद् मासूम सर.............
@ जी नीरज सर, मेरे पास यही तो कठिनाई है...जायदा शब्द नहीं होते, कुछ कहने के लिये...धनयवाद:)
@वहीँ कर रहा हूँ मिनाक्षी.....शुक्रिया............")
@जाकिर भाई, कुंवर जी...........धन्यवाद्..ब्लॉग पे दुस्तक देने के लिए.............")
@प्रवीण भाई आपके पोस्ट मायने रखते हैं..............धन्यवाद...तहे दिल से...:)
खूबसूरत पंक्तियाँ !
बच्चों की आखों से सपने देखना , हम भारतीय अभिभावकों द्वारा ही हो सकता है। यही हमारी संस्कृति है ।
एक कशमकश को बहुत अच्छी तरह से पेश किया है आपने ।
अच्छी संभावनाएं हैं ।
आदरणीय मुकेश जी
आपकी कविता वर्तमान और भविष्य की दहलीज पर खड़े युबक की कविता है जिसने बहुत से सपने बुने हैं आपनी जिन्दगी में ..पर क्या हुआ उन सपनो का जो उसने बुने थे कल्पनाओं में ...बहुत सुंदर तरीके से भावों को अभिव्यक्त किया है आपने ....आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए
आपकी बात सही है आप खुद ही पहचान रहे हैं...स्तरीय कवि की पहचान क्या है ..इसके मायने क्या हैं ये अलग अलग तय होता है....कुछ अच्छा लिखने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है....इसलिए लिखते रहिए.....कभी विचार, कभी भाव तो कभी शब्द ..तो कभी सब कुछ मिल जाते हैं.....हां सपने अपनी आंखो में ताउम्र पलते रहने चाहिए मेरा तो यही मानना है...
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
सीधे सरल शब्दों में कही गयी एक साधारण जन के हृदय की बात .
प्रभावी अभिव्यक्ति.
bahot khub mukesh jee...
हम में भी है 'दम'
कुछ जरुर कर पाएंगे हम
वास्तविकता के धरातल तले
जिम्मेवारी के बोझ तले
बस उस से थोड़े ही हैं कम....
आज कल कभी कभी
आँखे हो जाती है नम
जब बंद आँखों के सामने
थिरक जाती है...
वो पुराने सपने का जखम...
mere blog per aane ke liye bahot bahot dhanyawaad.
सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति , अच्छा लगा बांच कर .
मुकेश भाई... अब तक की आपकी सबसे उत्कृष्ट रचना... ९०% देश को आपने अभिव्यक्त कर दिया है.. शुभकामना सहित...
इसमें अपना सत्य दिख रहा है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)
सहज सरल शब्दों में भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..मेरे ख्याल से यही सबसे सुन्दर कविता है .
बेहतर...
bhavpoorna abhivyakti ...dil ko chuti hui rachna
एक स्वप्न से अरम्भ होकर आपने स्वप्न की एक पूरी यात्रा को इस कविता में दर्शाया है, जो इस यात्रा में हर व्यक्ति के जीवन को छूती और प्रभावित करती है!!
यही स्वप्न जीवन को प्रवहमान बनाता है. यही मर गया तो जीवन ठहर जाएगा!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!
बहुत सुंदर रचना...भावों में पिरोए हुए सुंदर शब्द....
सही है सपना तो सपना होता है |यदि बोझ्ताले दब जाए तो नतीजा क्या होगा बहुत स्पष्ट है
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना
आशा
निसंदेह ।
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
आदरणीय मुकेश जी
नमस्कार !
सरल शब्दों में भावपूर्ण अभिव्यक्ति
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
प्रसंशनीय प्रस्तुति
बहुत ही सहजता से आपने आम आदमी के मन कीबात कह दी। अति सुन्दर प्रस्तुति।
जिंदगी की राहें- संवेदनशील मन को आंदोलित कर गयी।अभिव्यक्ति का स्वरूप मन को झकझोर गया।बहुत सुंदर पोस्ट।
mukesh ji
vastav me ham sabhi ke jivan me bitne wali in kalpnao ko aapne ek sarthak rup diya hai ya yun kahen ki sabki chahat ko aapne apni kamaal ki lekhni ke jariye panno par utaar kar badi khoob surati ke saath pesh kiya hai.bahut hi dil ko gahre chhuti aapki rachna samvedan sheel bhi hai.
badhai
poonam
यथार्थ को बयां करते प्रवाहमयी भाव.......सशक्त प्रस्तुति
क्योंकि सुनहले सपने
फिर से लगे झिलमिलाने
बस बदल गए किरदार...........
खुबसूरत एहसास !
लेकिन फिर से चौंधियाने लगी है
वो नम आँखे
क्योंकि सुनहले सपने
फिर से लगे झिलमिलाने
बस बदल गए किरदार
पहले होता था खुद
अब होते हैं मेरे पुत्र....
शायद कोई तो हो
मेरे सपनो का
तारणहार..
उसको कर सके
गुलजार...
होगा न...
अमीन ... ज़रूर पूरा होगा वो सपना ... जिसे कभी आपने देखा उसकी ताबीर आने वाली पीडी ज़रूर करेगी ...
बहुत खूब लिखा है ..
सपने देते है जीवन और फ़िर जीवन देता है सपने...
जीवन और सपने जन्म जन्म का साथ है। अच्छी रचना के लिये बधाई।
"आँखे हो जाती है नम
जब बंद आँखों के सामने
थिरक जाती है...
वो पुराने सपने का जखम..."
बहुत अच्छी पंक्तिया
भावमयी बहुत सुन्दर कविता
बधाई
आभार
जीवन के धुप छाँव में ऐसे ही आशा निराशा की छाया आती जाती रहती है...
सुन्दर लेखन के लिए शुभकामनाएं...
@धन्यवाद् मुक्ति..........
@आपके कमेन्ट सर आँखों पर दाराल साहब!!
@ केवल जी! हमने तो बस अपने सच को बुना है.........शुक्रिया...!!
@ रोहित (बोले तो बिंदास) ...बस अपने सपनो को शब्दों में पिरोया मात्र है दोस्त...!
@मनोज जी, अल्पना जी, अनुप्रिया, आशीष ............धन्यवाद् तहे दिल सी...:P
@अरुण जी, आप तो बस हर बार मेरी रचनाओं को सर्वाश्रेष्ट्र करार दे देते हो..........धन्यवाद्!
@मनोज, शिखा, रवि कुमार स्वर्णकार, गोपाल जी ...शुक्रिया...........
Mukesh ji,
Bhawnaaon ke sundar sapno ki samwahak hai aapki kavita.
Nischal abhivyakti hetu dhanyawaad.
जिम्मेदारियां ही तो चलने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं , ये कभी बोझ नहीं होतीं.
@धन्यवाद् बड़े भैया...(बिहारी बाबु)...आपके कहे वाक्य हमें हर वक़्त दिल से जुड़े लगते हैं....:)
@वीणा जी, आशा दी............तहे दिल से शुक्रिया...
@राजीव जी, पहली बार ब्लॉग पे आने के लिए धन्यवाद्...
@धन्यवाद संजय, वंदना जी, प्रेम सरोवर जी ....आपके शब्द...मेरे अहोभाग्य..:)
@पूनम जी (झरोखा ) मेरी रचना के संवेदनशीलता को सराहने के लिए क्या कहूँ....धन्यवाद्!!
@ डॉ. मोनिका, भाकुनी, ...धन्यवाद...
जो थी मृग-तृष्णा
हम में भी है 'दम'
कुछ जरुर कर पाएंगे हम
वास्तविकता के धरातल तले
जिम्मेवारी के बोझ तले
बस उस से थोड़े ही हैं कम....
आज कल कभी कभी
आँखे हो जाती है नम
जब बंद आँखों के सामने
थिरक जाती है...
वो पुराने सपने का जखम...
beautiful .....no words for it.
pichhle 10 dino se mera blog gayab ho gaya tha...isliye main kisi ko dhanyawad tak nahi kah paya...:(
@digambar sir...achchha laga aapka comment.
@archana jee, nirmala di, creative munch, ranjana jee...shukriya...
बहुत ही प्यारी रचना है...
शब्द, उनका इस्तेमाल, पंक्तियाँ, उनकी खूबसूरती, उनके भाव... वाह...
ज्ञानचंद जी.........शुक्रिया
कुंवर सर, ज्योति जी.....धन्यवाद्...
पूजा अच्छा लगा तुम्हारा कमेन्ट...!!
ये सपने ही तो हैं जिनकी वजह है इंसान के जीने की ........सपने जितने पले मन में ज़ीने की चाह भी बढती गयी .........
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
Rajni jee.........thanx!
bahut bahut sundar prastutee...........:)
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