जिंदगी की राहें

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Monday, May 31, 2010

सड़क पे बचपन

तपती गर्मी
दौड़ती सड़क
भागती मेरी
कार एकाएक सिग्नल हुआ लाल
चर्र्र्रर.......... ब्रेक
थम गयी कार
जेब्रा क्रोशिंग से ठीक पहले......!!
.
"सारे सपने कहीं खो गए,
हाय ! हम क्या से क्या हो गए...."
सुरीली गमगीन आवाज
में था खोया
तभी था कोई जो
खिड़की पर हाथ हिलाते हुए चिल्लाया
"बाबूजी! ले लो
ये नीली चमकीली कलम"
नहीं!!! - मैंने कहा!
.
झुलसती गर्मी में
था वो फटेहाल
उम्र...?????
शायद आठ साल,
लेकिन फिर भी
तपती गर्मी में कांपती आवाज
"बाबूजी! ले लो न"
"एक के साथ, एक मुफ्त है!!"
ओह! रहने दे यार!!
क्यूं करता है बेहाल॥
.
मुफ्त! मुफ्त!! मुफ्त!!!
इस छोटे से शब्द में
मुझे दिखी एक चमक!!
वो छोरा जा ही रहा था
चिल्लाया मैं
दिखा जल्दी
सिग्नल होने वाली है!
और फिर उसे पकडाया
दस का नोट
थी मेरे हाथों में दो कलम!!
.
सिग्नल हुई हरी
गियर बदली
निकल गया सर्रर्रर!!
पर उस छोटे से वक़्त का
किया मैंने आत्म-मंथन!!!!!!
उस छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी..............................








63 comments:

रश्मि प्रभा... said...

छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी..............................
wahi to shabd bankar hamare paas hain

Taarkeshwar Giri said...

Bechare bacche

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Thanx Rashmi di.........thanx Tarkeshwar jee!!

श्रद्धा जैन said...

bahut gahri baat sochi hai...

chhote bachhe ka bachpan bhi man ko dravit nahi kar saka ... muft ka lalach laga ...

Anonymous said...

bahut dukh hua sadak par yeh bachpan dekhkar....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मुकेस बाबू , महानगर इस तरह के टॉमी फैगिन से भरा हुआ है जो ई बच्चा सब से अईसा काम करवाता है...लेकिन असली टॉमी फैगिन त हम लोग हैं... बहुत मर्मिक बात कहे हैं आप...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

dhanyawad Shraddha jee!!

Thanx Sekhar!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कम से कम आत्म मंथन कर उस बचपन के बारे में सोचा ....एक संवेदनशील रचना

Alpana Verma said...

आत्ममंथन को भावाभिव्यक्ति मिली और एक कविता बनी एक संदेस सब तक पहुंचा .
गरीब बच्चे जल्दी बड़े हो जाते हैं.बचपन कहाँ रह जाताहै वे खुद भी नहीं जानते.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

E guru Rajeev jee,,, bahut bahut dhanyawad..aapke subhekshaa ke liye..........agar jarurat padegi to aapke pass pahuchunga...:)

दिलीप said...

maarmik rachna

DAISY ki batey DIL sein said...

जो दिल को छु जाएँ वो आप ही कलम सें उकेर सकते हैं मुकेश जी
आपको और आपकी कलम को सलाम हैं!!!

Unknown said...

zara sochiye to kaisa jeevan hum jeete hai jahan sukh-sadhan ki kami prateet hote hi ek doosre par dosharopan karne lagte hai,charcha karte hai.afsos jatate hai ...par kathachit aisa kuch bhi nahi karte jo kisi ke jeevan mai parivartan laaye ....aapki rachna hume to filhal uska hi ahsaas karati hai ki hum sadhan ke itne adheen hai ki huem uski kami to mehssos karte hi hai apitu shikayat bhi ..lekin jab hamare samaj ke aise bachpan ka roop aaata hai to u sab ke honth khud hi sil jaate aur jyada hua to kuch samvednayein prakt kar dete hai ....dil ko to aapki rachna chooti hai lekin hai to hum bhi usi bheed ka hissa jo karte to kuch bhi nahi ....sirf laalach aur laach ke siwa kuch bhi nahi ...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Bihari babu sahiye kah rahe hain, aap.........dhanyawad!!

Unknown said...

bahut achchi kavita hai

Dr.R.Ramkumar said...

उस छोटे से वक़्त का किया मैंने
आत्म-मंथन!!!!!!
छोटे बच्चे
बचपन से बड़ा
"मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी उस गरम तपिश में,
उसके जीने की कोशिश..........

अच्छा चिन्तन

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Sangeeta Di aur Alpana jee ko kottisah dhanyawad.....:)

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! बढ़िया प्रस्तुती!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

thanx Dilip jee


itni badi baat, kaise kah di aapne, Daizy jee.......thanx!!

shikha varshney said...

छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी.
kaash dekh pate ham.
sanvedansheel rachna

adhuri baaten¤¤~~ said...

आत्ममंथन बेहद जरुरी है, और आत्ममंथन के पश्चात उस विषय पर एक सकारात्मक कदम उठाना उससे भी जरुरी! आपने बच्चे की कलम खरीद कर उसकी क्षणिक मदद तो कर दी, किन्तु मुझे सिकवा है उन माता पिता और हमारी सरकार से, जो इन बच्चों को तपती-झुलसती गर्मी और कड़ाके की ठण्ड में भी भगवन भरोस खुले आश्मान के तले इस कदर भटकने छोड़ देते हैं!



बहुत ही भावपूर्ण और संवेदनशील रचना!











अमित~~

अमिताभ मीत said...

कमाल !! बेहतरीन बात कही है इस पोस्ट में ..... ये सोच .... क्या कहूं ?

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Haan Dipti!! pata nahi, kab desh sudhrega........kab ham bhi sudhrenge........!! dhanyawad!!

संजय भास्‍कर said...

बचपन कहाँ रह जाताहै वे खुद भी नहीं जानते.

संजय भास्‍कर said...

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

Unknown said...

lovey poem Mukesh bhaiya........when i read this poem the picture of many children working hard came on my mind.......beautiful feeling v beautiful description would like to read more
charu

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Thanx Rooma

Thanx Dr. R. kumar!!

रेखा श्रीवास्तव said...

तुम्हारी कविता गहरे तक छू गयी. बहुत सुन्दर बात कही.
अगर इसी तरह से आत्ममंथन हर व्यक्ति करे तो इस समाज की और देश की दशा कुछ और ही होगी. ये बचपन को खो रहा है, उसके लिए हालत जिम्मेदार हैं लेकिन कहीं न कहीं हम भी तो हैं न. ये बचपन ज्यादा वन्दनीय है अपने लाचार माँ-बाप के लिए लू भरी दोपहर में बेच रहा है. कम से कम अपराध में तो लिप्त नहीं है.

Prem Prakash said...

अभिव्यलती सचमुच संवेदनशील है
मेरे विचार से मार्मिक विषयों पे लिखना सरल नहीं होता पर आपका सम्प्रेषण सचमुच असाधारण है

अरुणेश मिश्र said...

संवेदनशील रचना । यही देश है ।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Babli jee dhanyawad!! Sikha! thanx....for ur comment!


Haan doctor, sayad dhire dhire.......hamare desh me bal-majdoori kam ho, aur fir wo bhi apne bachpan ko jee saken!

Anonymous said...

उस छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी..............................

किसने कहा नही दिखी? उसके जीने की कोशिश भी ..........और तुम्हारा इतना कोमल मन भी. दोनों को गरमी की तपिश में देखा मैंने.उस बच्चे को सूरज की गरमी की तपिश में और रचनाकार को मानवता,भावुकता,भावनाओं की तपिश में. वो झुलस रहा था .
रचनाकार ! तुम पिघल पिघल कर बह रहे थे,ये पिघलन ही तो है जो मानवता और सभ्यताओ की पोषक है.
युग बदल गए पर इसी पिघलन ने प्यार बन कर दुनिया के इस पौधे को जिन्दा रखा हुआ है.
कभी का सूख चूका होता ये कभी का अब तक.
इस नमी को पाया मैंने तुम्हारी रचना मैं इसीलिए अंतिम कुछ पंक्तियां तुम्हारी ईमानदार अभिव्यक्ति को तो दर्शाती ही है,'छू गई' मुझे.

prithwipal rawat said...

Bahut acchi Rachna hai ji!

वाणी गीत said...

असमय बड़ा होता बचपन भीतर तक कचोटता है और कविता बनकर उतरता है ...!!

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

उस छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी........
mukesh ji manv man aaj lalach,kubhavna aur aage badhne ki hodh ne sari naitikta aur manviya baton par swarth ki ek parat chadha di hai jisse hum bhi achhute nahi rahe, bas yahi karan hai hamen kuchh bhi dikh kar dikhai nahi deta ya hum jankar bhi samjh nahi pate.badhai itne samajikta se puran rachna dene ke liye.

Rajiv said...

क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी..
Mukesh jee,hakikat ko shareer dena aur un marmik palon ko usmein sametkar sahej lena behad akarshak hai.

सुनील गज्जाणी said...

अहसास हुआ कि आसमान में उड़ते हुए आदमी को अचानक से धरती पे पटक दिया हो .सिन्हा साब ने बहुत ही खूबसूरती से यथार्थ को सिग्नल पे ला दिया एक ना समाज बच्चे को एक के साथ के मुफ्त बेचते चीज लिए , नन्हा बछा और मुफ्त दोनों एक प्रशन छोड़ देते है ,
साधुवाद आप का और रश्मि दीदी को भी जिन के कारण उम्दा रचना पढने को मिली .
आभार

अरुण चन्द्र रॉय said...

sunder rachna ! sochne par majboor kar gai

मुकेश कुमार सिन्हा said...

धन्यवाद् अमिताभ जी!!

संजय जी, ये तो आपका बड़प्पन है जो आपने ऐसी बात कही.......धन्यवाद् !

रेखा दी!! आपके शब्द हमें aur लिखने के लिए प्रेरित करेंगे.........:)

प्रेम प्रकाश (संवित जी) :डी धन्यवाद सरकार.........

ρяєєтii said...

Yeh "Aatma-MAntha" har koi karne lage to koi baccha sadak per apna bachpan na bitaye... behtarin lafz...! Keep it Up Dost MAma...!

Dr. Rajendra said...

gareebi ka ahsas hame manwata ki taraf le jayega. ahsas karne ke sath ahsas karwana bhi jaroori hai .tabhi sab sambedansheel honge

संत शर्मा said...

पर उस छोटे से वक़्त का
किया मैंने आत्म-मंथन!!!!!!
उस छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी..............................

Sundar aatmmanthan karti rachna.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

अरुणेश जी, धन्यवाद्!

इंदु दी!! आपके इस अभिव्यक्ति से मेरे अन्दर एक ख़ुशी का झोंका सा आ रहा है!! क्या वास्तव में में अपने अभिव्यक्तियों को दर्शाने समय इमानदार हूँ.......अगर ऐसा थोरा भी है.......तो मेरा कविता या तुकबंदी जोड़ना सफल हो गया.......:)

vandana gupta said...

kya kahun.........sach aatm manthan ki sabhi ko jaroorat hoti hai..........sirf apna swarth hi nahi dekhna chahiye.........bahut sundar sandesh diyahai.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

उस छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश.....
..ऐसी घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं..इन्हें देखने कल लिए संवेदनशील होना पहली शर्त है. देख कर दूसरों को भी संवेदनशील लोने के लिए मजबूर कर देना यही कवि कर्म है. इस दृष्टि से आप सफल है.
..बधाई.

कविता रावत said...

छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश
में, उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी..............................
savedan se paripurn rachna...
Sach mein jahan kahin chalte sadak par bachpan yun bikhara milta hai to man udign ho uthta hai, aur wah yun hi gahri vyatha mein sabdon ke madhyam se tadaf bankar foot padhte hain...

Sumit Pratap Singh said...

बहुत अच्छे...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Very Very Thanx Charu! for wonderful words....:)

धन्यवाद् "पIति नेह भरी" व "वाणी गीत"

आपके अर्थपूर्ण शब्दों के लिए धन्यवाद् ...रजनी जी !!

geet said...

mukesh hi
tum hamesh kuch alag sochte ho or jab apne kalpna ko shabdo mai likhte ho tu vo bahut hi achche hote hai ek vastvik ghatna ko bahut achche tarah kavya mai likha hai. tumhare sabhi kavita kuch na kahte hue bhi bahut kuch kah jate hai or dil ko chu jate hai

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत संवेदनशील रचना.... आप निःशब्द कर देते हैं.....

मुकेश कुमार सिन्हा said...

शुक्रिया राजीव जी!!

सुनील भाई साब !! हमने तो कोशिश मात्र की है.....पर आपके कमेंट्स देख कर अच्चा लगा....वैसे ये सच है..........हमने अपने सच को बस कवता रूप दिया है.............धन्यवाद्!!


तहे दिल से शुक्रिया अरुण जी!!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

mukesh ji,
behad bhaawpurn aur aatmchintan keliye prerit karti rachna hai. inlogon ko dekhkar inki dasha se jyada apna fayada dikh jaana, yahi samaaj ka sach hai. aur aashcharya ye ki inse kuchh khareedna kanoonan mana hai lekin mandir ke raaste mein bheekh dena jayaz hai, jabki ye garmi mein kamse kam imaandaari se kaam to kar rahe. par kya kaha jaye hamari hin maansikta aisi hai ki...
bahut achhi aur samvedansheel rachna, badhai.

Vivek Jain said...

waah! jajbaaton ko kya khob dikhaya hai.
vivj2000.blogspot.com

Neelam said...

Sach mukesh jee uske jeene ki koshish hum main se shayad koi bhi nahi dekh paata.
behadd umda rachna ke liye badhai sweekar karen.

Unknown said...

achchhi rachna!

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Apanatva said...

anatarmathan aur imaandaree se usakee abhivykti sahaj nahee hai...ise kshmata ko naman.........

Gaurav Baranwal said...

Sir aap ki rachna bahut achchhi hai.
May ak bat kahna chahuga GIRI ne uase bechara kaha "wo bechara nahi bole to uske pas khane ke liye chara hai." UNDRSEND

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

अजित वडनेरकर said...

बहुत अच्छी रचना।
यह संवेदनशीलता सभी में हो...और इस पर अमल भी हो..

Himanshu Mohan said...

अच्छी संवेदनशील रचना

मुकेश कुमार सिन्हा said...

अरुण जी, प्रीति, डॉ. राजेंद्र, संत जी,.............आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद्!!........आपके शब्द मेरे लिए धरोहर रहेंगे.........:)

Saras said...

हम में से ऐसे कितने हैं जिनके मन में यह सवाल उठता है ..
जिस दिन इस सवाल का जवाब मिल जायेगा ..उस जैसे तमाम बच्चों का बचपन यूँ झुलसने से बच जायेगा