जिंदगी की राहें

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Monday, June 23, 2008

~:वक्त:~


छिछोरापन, आवारागर्दी, उद्दंडता...
यही तो करने लगे हैं,
आज के कुछ युवा
साथियों! इन्हें समझाने को वक्त आ चूका है...........

दे रहा, आम आदमी को मूक दर्द
जब आवाज दर दर
अब भी, अगर हम सब चुप रहे
तो आने वाला वक्त क्या कहेगा.......

खुशियों, उल्लासो को बेरहमी से
बदहवासी व शोक मैं बदला जा रहा है
फिर भी हम नहीं बदल पाए तो
बदलते वक्त को आशियाना क्या कहेगा.........
समय की तकदीर
सिर्फ कलम से लिखी जा नहीं सकती
साथियों! बदलते वक्त को
सँवारने का वक्त आ चूका है..........

7 comments:

रश्मि प्रभा... said...

समय की तकदीर
सिर्फ कलम से लिखी जा नहीं सकती......
बहुत सच्चाई है इस कविता में,आह्वान समय की मांग है,
कलम की ताकत कुछ तो रंग लाएगी ही.
बहुत बढिया लिखा है.......

एहसास said...

bhaeeyaji.....bahut achee hai...ab aap kahenge kami bataao.....bataao kaise kuch kahoon....jo hai nahee use kaise kahoon...aur jo dil chahta hai use aap kehne nahi dete.....gahre arthon ka sateek chitran....(ab gussa mat kijiyega...plz)
haan kaveeta main thoda kharapan hai...kaavy ras ki madhurta kam par vishay ki maang ke saath pura nyay kiya hai aapne.....

....Ehsaas!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

dhanyawad!!

Unknown said...

koshish achchhi

save our future said...

makan majdoor banakar deta hai , use ghar banate hai ham aapni bhawna se aapne sanskar se ghar k sath hamari bahut si yaden jud jati hai ,bacchon k paida hone ki kilkari,bujurgon k marne kagam bahin ki bidai aor bhi bahut si yaden jo ek makan ko khushnuma ghar banati hai

Shikha said...

bahut khoobsurat rachna hai :)

Gaurav Baranwal said...

Sir .........aapne sahi kaha.