कभी निहारना
मेरे घर से तुम्हारे घर तक
पहुंचने वाले रास्ते को
रास्ते में है एक पेड़
पेड़ पर बंधा मिलेगा
मन्नत का धागा
धागे का ललछौं रोली सा रंग
है रंग मेरे प्रेम का
बेशक जिंदगियां जी रही हैं
कठिनतम दौर में
विषाणु तैर रहे हवाओं में
फिर भी, लॉकडाउन के गलियारे में
जब भी चाहो मेरी उपस्थिति
बांध लेना उसी मौली को
कह देना धीमे से
"लव यू" - संस्कृत में
शायद प्रेम में बहती ये आवाज
शिवाले से आती
ॐ की प्रतिध्वनि सी हो
जो प्रस्फुटित हो
धतूरे के खिलने से
या आक के फूल के
बैगनी रंग में लिपटे अहसास तले
जिस कारण
शायद शिवलिंग से
छिटके एक बेलपत्र
जिस के तीन पत्तों में से
एक पर हो मेरा नाम
बाकी दो है न सिर्फ तुम्हारे खातिर
आखिर
तभी तो महसूस पाता हूँ कि
तुम चंदा सी छमकती हो
जटाओं के बाएं उपरले सिरे पर
मेरे चंदा
कल फिर उसी रास्ते से जाते हुए
तुम्हारे घर की सांकल को
हल्के तीन आवाज से बता दूंगा
कि हूँ तुम्हारे इर्द गिर्द
बेशक दूर-दूर पास-पास
के इस खेल में
समझते रहना
तुम प्रेम में हो, और मैं
मैं तो प्रेम समझता ही नहीं।
समझी न ! बकलोल !!
2 comments:
प्रेम के भी अनेक रंग । मन्नत के धागे में लिपटा प्रेम और शिवालय से आता ॐ का स्वर दोनों ही भावपूर्ण । चंदा सी चमकती कर लीजिए ।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।।
good artyicle ji achha laga
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