हाँ, एलोवेरा के सिंदूरी फूल सी ही
लगती हो ‘तुम’
बिना भीगे प्यार
बिन खाद-दुलार
कंटीले से पौधे में भी
हरे-भरे अजब से माँसल
पत्तों के बीच
सहज सरल सम्मोहन संग
हर बार जब भी खिली खिली सी
दिखी तुम
औषधि सी तुम
हाँ ज़रा सी तुम
पुरअसर बेजोड़
दिलोदिमाग पर काबिज़
न जाने कब तक के लिए
शायद अब सांस भर
पकी उम्र की दरकार बन
लम्बे समयांतराल में
चमकती हो तुम .....!
सम-विषम परिस्थिति में
बिना जद्दोजहद
एलोवेरा को अपनी है कदर
इसलिये है अपनी फिकर
स्व को स्वीकार कर ही
संभव है परजन हिताय
ज़िंदगी के अभ्यारण्य में
एलोवेरा पुष्प सी प्रेरणा बन
अवतरित होती हो तुम
लम्बी छरहरी चमकीली, आल्हादित कर देने वाली
सिंदूरी रंग में सजी तुम
जीवन की चमक लिये
तुम हाँ तुम ही तो
एलोवेरा की फूल सी तुम
सुनो
यूँ तो हरवक्त नजर नहीं आती
पर, जब भी दिखती हो
छाई सी रहती हो दिलो दिमाग के गलियारे में
वैसे पता तो है ही तुम्हे
फिर भी सुनो
मैं चाहता हूँ
एलोवेरा तुम्हारा वर्चस्व बना रहे
पुष्पित हो
नसों से साँसों तक
दिलोँ से दिमाग़ तक
दुनिया से दुनियादारी तक
हर वक़्त हर जगह ......!!!
2 comments:
सटीक तुलना
मन में उतर जानेवाली, जीवन और जगत की कविता -बहुत अच्छी लगी !
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