क्या नहीं लगता ?
मशीनी जिंदगी के बीच रोबोटिक शख्सियत से बन चुके हैं हम
शारीरिक श्रम या दौड़ने-कूदने के बदले टीएमटी मशीन पर
जबरदस्ती की दौड़ लगा कर
मोटापे/ डायबिटीज/बीपी से लड़ने की सौगंध खाते हैं हम !!
विटामिन्स/कैल्शियम/आयरन की अजीब अजीब सी गोलियों से
संतुलित भोजन का अॉप्शन ढूंढने लगे हैं हम
यहाँ तक कि अपने अन्दर की उत्तेजना भी
वियाग्रा की गोली गटक कर मापने लगे हैं हम
सुबह थायराइड की गोली, फिर नाश्ते के बाद बीपी
सोडियम रहित नमक, ओर्गेनिक आटा या दाल
हर पल स्वस्थ रहने की ललक के साथ टिके रहने लगे हैं हम
नींद नहीं आती तो क्या हुआ, काले चश्मे से बंद कर आँखों के
काले कोर्निया को सुलाने की बेवक्त कोशिश करने लगे हैं हम
अगर वक़्त और खुदा ने मान लिया हमारा कहना
तो, सपने भी सीडी पर लोड कर, देख लिया करेंगे हम
कैसी कैसी मृग तृष्णा सी जी रहें हम
बस जिए जा रहे हैं, हम
जीने की तरकीब ढूंढें जा रहे हैं हम !!
मेरे द्वारा सह सम्पादित संग्रह 100 कदम, प्रतिभागी रचनाकारा के हाथों में |
3 comments:
बहुत सुंदर
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-10-2016) के चर्चा मंच "जय जय हे जगदम्बे" (चर्चा अंक-2489) पर भी होगी!
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
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