सुनो
सुन पा रहे हो न
उस घोड़े का हिनहिनाना !
क्या ये किसी
भयानक कालें बादलों का गरजना सा नहीं
ऐसा क्यों सुनायी दे रहा है
जैसे यंत्रणा का कारुण्य संगीत
सच ही तो सुना था
तस्वीरें बोलती है
तभी तो
लहू टपकते टांगो के साथ खड़ा चेतक
पूछ रहा
क्या मिल गया दर्द देने से तुम्हे
ऐसी अमानुषिक हवस, कि चला
दिया डंडा
बस, बिना सोचे,
बिना समझे
ढोते हुए तुम्हे ही,
थे इन्तजार में, पर
कोमल हरी घास नहीं
खुशियों की झंकार नहीं
दिया तो सिर्फ तिरस्कार
है तो अब बस अशेष करुणा, उम्मीद
!!
महसूसा है कभी तुमने
चांदनी रात में एकाएक चल पड़े आंधी
या शांत सागर के किनारे आयी एक सुनामी
या बवंडर ही, या
जैसे
प्लेटफोर्म पर धमकती ट्रेन ?
लगता नहीं तुम्हे
तुमने अपने पुण्य के बदले
बड़ी कर ली पाप की गठरी !
तभी तो
तृष्णाओं के इस अभ्यारण्य में,
तुमने
कठोरता की प्रतिमूर्ति बन
सहिष्णुता व प्रेम के बदले
रौंदते हुए जहाज के पतवार सरीखे
चला कर,
लो बह गयी जल घारा
प्रतिश्रुति के रूप में !
स्नेहिल प्रेम को त्याग कर
बन बैठे तुम तो
बदतमीज आक्टोपस!
प्रभुत्व की पराकाष्ठा
या प्रतिहिंसा की आग में
खुश हो न त्राहिमाम कर !!
खुश ही रहना !
चलो करो अभिनय
दिखाओ
खुशियों के दूत बनने का नाटक !
याद रखना,
नाटक एक निश्चित समयांतराल तक ही होती है
सुनो !! दुराचारी मानव !!
कटी टांगों से भी नहीं दे पाऊँगा श्राप
खुश रहना !!
पशु हूँ, पशु ही
रहूँगा !!
हो सके तो पश्चाताप के दो आंसू ही कर देना मुझे समर्पित
!!
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पिछले दिनों उतराखंड में एक विधायक ने एक घोड़े को डंडे से मार कर उसका
पैर तोड़ दिया, बस कुछ शब्द इस दर्द पर बन पड़े ........
शान-ए-भारत - 2016, करनाल |
4 comments:
संवेदनहींन समाज का चित्र उकेरा , सच है
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 24 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत गहरे भावो से अश्व का दर्द समेटा है आपने .बहुत सुंदर .
सामयिक प्रस्तुति
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