बारिश होने वाली हो और न हो
ऐसे ही थे तुम.............!!
बस भिगो देते थे, उम्मीद जता कर !!
याद है, कैसे गच्चा देती थी
जबरदस्ती के बड़े बड़े वादे कर के
कल आउंगी न, फ़लाने समय पर, फलाने टॉकीज़ के पास रहना
पर आने पर लेना टिकट !
बेशक हम इन्तजार का दम भरते हुए देखते थे
टिकट खिड़की पर हाउस फुल का बोर्ड लग जाना !!
मोबाइल का 'म' भी तो नहीं था जो
हर कुछ पल बाद पूछ बैठता कहाँ पहुंची हो ?
एवें, बस मनोमन सोचता हुआ टॉकीज़ के साथ
पिछली सड़क पर, सिगरेट फूंकता, बिना फ़िल्टर वाली
शायद कैप्सटन या होती नंबर टेन !
आखिर तुम्हारे ना आने या देर से आने के कारण, होती तलब
पर, पैसे भी तो बचाने होते, टिकट के लिए !!
नखरे भी तो कम नहीं थे
पता होता, बालकनी या डीसी से कम पर मानोगी नहीं
ऊपर से जबरदस्ती के कोहनी से मारती वो अलग
कह ही देती, साइड का सीट नहीं ले सकते थे क्या ?
खुद की गरीबी का जनाजा निकालने का जो
पाला हुआ था शौक मैंने !!
छोटा शहर, इत्ते सारे पिकनिक स्पॉट
पर तुम्हे तो बस बैठना होता
किसी रेस्टोरेंट के कुर्सी पर, वो भी थम्स अप के बोतल के साथ
हर एक बार, थोडा सा पीकर
करती आँखे लाल, और फिर गोल मुंह बना कर
इसस, कितना धुंआ निकलता है !!
हुंह, मुझे तो वही लास्ट का चौथाई मिलता
गरीबी का इश्क, ऐसा ही होता है जनाब !!
कॉलेज बंक, लोगो के देखने का डर
ऐसे भी छोटे शहर की गलियां होती ही ऐसी
जैसे हर गली हो सहोदर बहन !!
किसी भी गली से निकलो, कोई भी कह देगी, कैसे हो भैया ?
ऊपर से तुम, तुम्हारी उम्मीद और तुमसे प्यार !!
सब नाटक !!
मॉनसून में भी बहुतों बार
नहीं होती है बारिश, बस दिख जाते हैं मेघ.........
तुम भी तो थी ऐसी !!
कोई नहीं !! अभी भी भीगने का अहसास !! अच्छा लगता है
कल बिना बात की बदली थी बनियान!!
तुम्हारी स्मृतियों ने भिगोया था, समझे न !!
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मेघ की रिमझिम फुहारों सी थी तुम
अल्हड, मस्त, खूबसूरत व चंचल !!
3 comments:
pyar se bhara atit,jb yad aata hai bin fuharon ke bhingo jata....sundar or sachhi si abhiwyakti...
एकदम सटीक लिखा मुकेश जी ... हमिंगबर्ड आज मिला , अधोपन्त पढ़ गया , अच्छा लिखते है आप एकदम पास से छूता हुआ , भोगा हुआ सा प्रतीत होता है पढ़ते हुयी। छोटे छोटे बिंबों का इस्तेमाल आपकी अदा है। शुभकामनायें
हमिंग बर्ड को देर से पढ़ा लिखा हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ
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