जिंदगी की राहें

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Tuesday, April 21, 2015

ढक्कन सीवर का ......



ढक्कन सीवर का
भीमकाय वजन के साथ
ढके रहता है, घोर अँधेरे में
अवशिष्ट ! बदबूदार !! उफ़ !!

जोर लगा के हाइशा !
खुलते ही, बलबलाते दिख पड़े
कीड़े-पिल्लू! मल-मूत्र!
फीता कृमि ! गोल कृमि आदि भी !!

रहो चिंतामुक्त !
नहीं बैठेगी मक्खियाँ नाक पर
आज फिर 'वो' उतर चुका है
अन्दर ! बेशक है खाली पेट
पर, देशी के दो घूँट के साथ
वो आज फिर लगा है काम पर !!

सेठ ! अमीर ! मेहनतकश ! किसान !
सभी अपने मेहनत का शेष
रखते हैं तिजोरी में !

एक लॉकर ये भी
शेष अवशेष का
कर रहा था, बेचारा हाथ साफ़
सडांध और दुर्गन्ध के बीच
चोरों की तरह, नशे के साथ
खाली पेट ! दर्दनाक !!

आखिर भूख मिटानी जरुरी है
है न !
----------------
भूख बहुत कुछ करवाती है !!


8 comments:

shashi purwar said...

nice kavita..

कविता रावत said...

विचारणीय प्रस्तुति
कभी कभी इस टैंक से निकली गैस जानलेवा भी साबित हो जाती है लेकिन सच पेट की खातिर क्या क्या नहीं करना पड़ता है ....

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

विचारणीय प्रस्तुति एवमं प्रस्तुत कर्ता भी
सभी सुन्दर कविता रचित है आप के द्वारा ।

Daisy jaiswal said...

आखिर भूख मिटाना जरूरी है
भूख बहुत कुछ करती है .....

nayee dunia said...


सुन्दर... विचारणीय प्रस्तुति !

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

Unknown said...

anchuye vishay pr itni gahrai li hue rachna...wah