“कुत्ते के दुम हो तुम”, कभी सीधी नहीं हो सकते !!
उफ ! हर दिन अपने लिए अँग्रेजी के शिक्षक से ये वक्तव्य सुन कर थेथर से हो गए थे । कितना बुरा सा लगता था, अँग्रेजी के शिक्षक हो कर भी उनसे हिन्दी में कुछ सुनना पड़ता था। काश ! अँग्रेजी में ही कोई खतरनाक सी गाली देते जिससे कि हम अपनी मैया को भी शान से बता पाते। ताकि मैया भी बिना सोचे हुए कह देती, वाह !! अब लग रहा है तुम्हें ट्यूशन पर भेजने से पैसा व्यर्थ नहीं जा रहा है। पर स्साला ! कुत्ते का दुम !! कितना शौक से मैया अँग्रेजी ट्यूशन पर भेजने के लिए बाबा से लड़ी थी, फिर पर्मिशन मिला था, ताकि ग्रामर ठीक होने के बाद मैं भी बाबा के तरह अँग्रेजी में फूँ फाँ कर पाऊँगा। पर अपन तो “माय नेम इस ..........” और “आई एम एट इयर्स ओल्ड” से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे थे।
एक दिन तो हमने सर को प्यार से समझाने कि कोशिश भी कि, सर मैं तो ईडियट, नॉनसेन्स जैसा कुछ हूँ, ये कुत्ते का दुम तो वो शिवम हो सकता है । पर काहे समझेंगे सर!! उनको तो बस जब तब मैं ही कुत्ते के दुम जैसा टेढ़ा दिखता था।
आखिर एक दिन ट्यूशन से लौटते हुए अपने अजीज मित्र शिवम को बोला – यार, एक काम करें, आज ट्राय मारें ??
शिवम – अबे, कईसन ट्राय मारेगा ?
यार! ये मास्साब रोज हमको कुत्ते का दुम कहते हैं, जो सीधा नहीं हो सकता। स्साला ! हाथी, घोडा, बाघ, शेर ... इतना सारा जानवर है, उनसे तुलना करते तो खुशी भी हो, कुत्ता तक भी गिरा कर लाते तो भी खुद को समझा लेते, इस्स, उस मुड़े, पीछे से जुड़े “दुम” जैसा बना दिया इस मुए सर ने ।
“आज ट्राय करते हैं, क्या कुत्ते का दुम सीधा हो सकता है या नहीं।“
शिवम ठहरा मेरा मित्र, बड़ी मासूमियत से मुंडी हिलाते हुए मुस्कुरा दिया। उसे लगा मैं बेवकूफ, खुद मे बदलाव लाने के लिए कोई गूढ मंत्र उससे शेयर करने वाला हूँ। हाय! इस मासूमियत पर कौन न मर जाए, तभी तो मेरे जैसे मंद बुद्धि ने ढूंढ कर एक दोस्त रखा था, जो मेरी हर बकलोली पर मुसकुराता और मैं उसकी सहमति समझता। वैसे बाद में उसको भी समझ में आ गया था कि मेरी खोपड़ी मे क्या चल रही है।
हम दोनों ने अपने घर के बाहर ही एक बिलबिलाते हुए पिल्ले को पकड़ा, उसके दुम को पकड़ कर सीधी की और चीख पड़े, लो हो गई सीधी, ये मारा पापड़ वाले को, स्साल ये मास्टर साब ही बुरबक हैं। उफ! पर जैसे ही पिल्ले को जमीन पर उतारा वो तो फिर से टेढ़ी की टेढ़ी, गोल घूम गई। हाय मर जावां !!
अब तो कोई जुगाड़ लगाना पड़ेगा, शिवम ने सुझाया, इसकी पुंछ को एक छोटे से खपची से बांध देते हैं, कुछ दिन मे सीधी हो जाएगी, देखा नहीं था वो भैया को, जो हाथ मूड गया था, तो खपची से बांधे थे।
बेचारा पिल्ला !! सर के बोले गए “कुत्ते के दुम” के वजह से शहीद होने वाला था। हमने दो पतली छोटी बांस की खपची में उसके दुम को दबा कर, बड़े प्यार से मानवता और दयालुता दिखाते हुए ऊन से बांध दिया, ताकि दर्द कम हो। बंधने के बाद, वो कू-कु करता हुआ ओझल हो गया, हमने भी खुद को समझाया, कुछ घंटो का दर्द है, अब इतना तो दर्द उसको सहना चाहिए, आखिर मेरे इज्जत का सवाल है। उसकी दुम सीधी हो कर रहेगी, फिर सर को कहेंगे, अँग्रेजी मे गालियां दिया कीजिये।
हाय वो रब्बा। एक आध घंटे के बाद ही वो पिल्ला फिर से दिखा, पर खपची निकल चुकी थी, कैसे क्यों निकली, ये तो जांच का विषय था। और दुम – उफ!! मेरी तरह टेढ़ी की टेढ़ी।
तो अंततः हमने खुद को समझाया! सर ही सही थे, फिर रंजन भी तो बोल उठा – तू सच मे कुत्ते का दुम है। टेढ़े का टेढ़ा। पर “टेढ़ा है पर मेरा है”, ये भी तो एक एड-लाइन है।
तो जैसे मास्साब, रंजन, मैया सब झेलते रहे मुझे, आप भी झेलिए ........ !! बेशक जो भी कह दीजिये !!
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लीजिये झेलिए, और हाँ, पक्का पक्का बताइये कइसन लगा :) :)
9 comments:
तू सच मे कुत्ते का दुम है। टेढ़े का टेढ़ा। पर “टेढ़ा है पर मेरा है”, ये भी तो एक एड-लाइन है...bahut sunder dhang se bachho ki bholepan ko ukera hai bahut sunder
तू सच मे कुत्ते का दुम है। टेढ़े का टेढ़ा। पर “टेढ़ा है पर मेरा है”, ये भी तो एक एड-लाइन है...bahut sunder dhang se bachho ki bholepan ko ukera hai bahut sunder
:) मुहावरों को कोई यूँ भी आजमाता है ?
अच्छा हास्य लिखा
oh,ye kam to humlog bhi kiye the....aah maza aa gaya,kitna pyara likhe....
UFF itni shaitaaniyaan :)) ham to seedhe saadhe bachhe they bachpan mein :) achha likhne lage ho gadhy bhi
हा हा हा हा....सुन्दर, कितनी यादें एक साथ जिन्दा कर दिया आपने, धन्यवाद.
हा हा हा हा हा ......मुहावरों का सही इस्तेमाल
बढ़िया व्यंग्य।
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