वो जीना चाहती थी
वो खुशहाल जिंदगी चाहती थी
अम्मा-बाबा के सपने को पूरा करना चाहती थी ...........
अम्मा-बाबा ने साथ भी दिया
एक छोटे से शहर से डर-डर कर ही सही
पर भेजा था उसे इस मानव जंगल में
वो भी उनके अरमानो को पंख लगाने हेतु
फिजियोथेरपी की पढाई में अव्वल
आ करा आगे बढ़ना चाहती थी
वो जीना चाहती थी ......
वो जीते हुए पढना और बढ़ना चाहती थी
वो नभ को छूना चाहती थी
वो सिनेमा हाल से ही तो आयी थी उस समय
जब उसने परदे से मन में उतारा था सतरंगी सपना ....
वो खुश थी उस रात,
जब घर पहुँचने की जल्दी में चढ़ गए थी
सफ़ेद सुर्ख पब्लिक बस पर
वो तो बस जीना चाहती थी ....
उस सुर्ख सफ़ेद बस के अन्दर
एक जीने की चाह रखने वाली तरूणी के साथ
छह दरिंदो ने दिखाई हैवानियत
उसने झेला दरिंदगी का क्रूरतम तांडव
इंसानियत हुई शर्मसार
फिर भी, हर दर्द को सहते हुए पहुंची वो अस्पताल
तो उसने माँ को सिर्फ इतना कहा
माँ मैं जीना चाहती हूँ .........
तेरह दिन हो चुके थे
उस क्रूरतम दर्द के स्याह रात के बीते हुए
पर उसकी बोलती आँखे ....
जिसमे कभी माँ-बाबा-भाई का सपना बसता था
दर्द से कराहते हुए भी
उसने जीने का जज्बा नहीं छोड़ा
तीन-तीन ओपरेशन सहा,फिर भी
अस्पताल के आईसीयू से हर समय आवाज आती
वो जीना चाहती थी ...
अंततः ऊपर वाले ने ही दगा दे दिया
उस नवयुवती ने आखिर
अंतिम सांस लेकर विदा कर ही दिया ....
आखिर जिंदगी को हारना पड़ा
पर हमें याद रखना होगा
"वो जीना चाहती थी"
वो बेशक चली गयी पर,
अब भारत के हर आम नारी में उसको जीना होगा
हर भारतीय नारी को याद रखना होगा
वो जीना चाहती थी
वो तुम में जिन्दा है ...
__________________
आज सोलह दिसंबर है........!!
25 comments:
इस से ज्यादा दर्द नहीं हो सकता ...बेहद मार्मिक
उसके सपनों को तो हम पूरा नहीं कर सकते, मगर अब उसको इंसाफ दिलाना ही हर हिदुस्तानी का सपना होना चाहिए। ताकि उसकी आत्मा को वास्तविकता में शांति मिल सके। तभी शायद कुछ हद तक हम उसे यह एहसास दिला सके की इस दुनिया में इंसानियत अब भी ज़िंदा है।
भगवान उसके परिवार जानो को इस आसीम दुख को सहने की क्षमता प्रदान करे...
उफ़....
जितना दर्द उस नन्ही सि जान ने इन १०-१२ दिनों में झेल लिया ..उतना दर्द तो कई जिंदगियों के लिए भी बहुत ज्यादा है
क्या कहूँ...शब्दों से परे है उसका दर्द...मर्मस्पर्शी रचना !!
सामयिक ,सार्थक ,मार्मिक रचना .
मेरी नई पोस्ट : निर्भय ( दामिनी ) को श्रद्धांजलि
बहुत मार्मिक....
दर्द है कि कम होता नहीं.....
अनु
बेहद दुखद ! कल से जब से यह समाचार पढ़ा है मन विचलित है ! इन १०-१२ दिनों में शान्त सागर में वह सुनामी की उत्ताल तरंगें उठा गयी है ! दामिनी की यह कौंध सारी नारी शक्ति को चार्ज कर जाए तो उसका बलिदान सार्थक हो जाए ! ह्रदय से उस बच्ची को अनेकानेक श्रद्धांजलि !
अफ़सोस!! हमारी हार!! हम शर्मसार!!!
बहुत दुखद है यह सब ..कुछ भी कहना न जाने क्यूँ बेकार सा लगता है ...:(
आँखें नम हो आई ... बेहद मार्मिक ...
Jin jin Rashtrapatiyon ne balatkariyon ko maafee dee,un sabhee ko umraqaid honee chahiye..sab sse pahle Pratibha Patil...are kuchh to sharm,lihaz kiya hota!
बेहद मार्मिक....
बहुत दुखद और मार्मिक...
...जीने की इच्छा
न कर पाए पूरी
वो चली गयी,
पर अब तो जागो
रहें जिंदा दामिनी.
बेहद मार्मिक....मर्मस्पर्शी रचना !!
Haiwaniyat o darindgi ki inteha ho gai ,,
Banke beti janm lene ka afsos bahut hai :(
सच है, वह जीना चाहती थी...
मार्मिक !
haan wo jina chahti thi ... :'(
आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। नव वर्ष 2013 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। धन्यवाद सहित
हाँ.... और हम उसे जिंदा रखेंगे ....!
बलात्कार व हत्या रोकने के लिए समाज की सोच को बदलना बुनियादी शर्त है
दामिनी जैसे घिनौने अपराधों में सिर्फ़ नेता और पुलिस को दोष देकर समाज को निरपराध नहीं माना जा सकता। बलात्कार और हत्या हमारे समाज का कल्चर है, अब से नहीं है बल्कि शुरू से ही है। तब न तो नेता होते थे और न ही पुलिस। तब क्या कारण थे ?
इसी देश में औरत को विधवा हो जाने पर सती भी किया जाता था लेकिन अब नहीं किया जाता। इसका मतलब, जिस बात में समाज की सोच बदल गई, वह घिनौना अपराध भी बंद हो गया। बलात्कार और हत्या अभी तक जारी हैं तो इसका मतलब यह है कि इस संबंध में समाज की सोच नहीं बदली है।
दुनिया के तमाम देशों पर नज़र डालकर देखना चाहिए कि किस देश में बलात्कार और हत्या के जुर्म सबसे कम होते हैं ?
उस देश में कौन सी नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक और वैधानिक व्यवस्था काम करती है। उसके बारे में अपने देशवासियों को जागरूक करके हम अपने समाज की सोच बदल सकते हैं और उसे अपनाकर इन घिनौने अपराधों को रोका जा सकता है।
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.
काश वो जी सकती ......
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