ये डीटीसी के बस की सवारी
इससे तो थी अपनी यारी
हर सुबह कुछ किलोमीटर का सफर
कट जाता था, नहीं थी फिकर
जैसे सुबह 9 बजे का ऑफिस
11 बजे तक भी पहुँचने पर कहलाता गुड, नाइस!
तो बेशक घर से हर सुबह निकलते लेट
पर बस स्टैंड पर भी थोड़ा करते थे वेट
अरे, कुछ बालाओं को करना पड़ता था सी-ऑफ
ताकि कोई भगा न ले, न हो जाए इनका थेफ्ट
कुछ ऑटो से जाती, कुछ भरी हुई बस मे हो जाती सेट
हम आहें भरते, करते रह जाते दिस-देट
मेरी बोलती आंखे दूर से करती बाय-बाय
मन मे हुक सी होती, आखिर कब 'वी मेट'
लो जी आ ही गई हमारी भी ब्लू लाइन बस
जो एक और झुकी थी, क्योंकि थी ठसाठस
तो भी बहुत सारे यात्रीगण चढ़ रहे थे
पर, कुछ ही यात्री आगे बढ़ रहे थे
क्योंकि अधिकतर महिलाओं की सीट पर लद रहे थे
कंडक्टर से अपना पुराना दोस्ताना था
अतः सीट का जुगाड़ हर दिन उसे ही करवाना होता था
एक सज्जन ने अपने साथ बैठने को बुलाया उसको
तभी दूसरी खूबसूरत ने कहा जरा सा तो खिसको
एक लो कट नेक वाली महिला थी खड़ी
अंकलजी से रहा नहीं गया, उन्हे सीट देनी ही पड़ी
पान / तंबाकू खा कर कोई बाहर पीक फेंक रहा था
तो वहीँ स्टायलों डुड ने सिगरेट का छल्ला उड़ाया था
कोने मे बैठे उम्रदराज साहब ने शुरू कर दी बहस
यूं कि धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी भरी हुई बस
क्या चल पाएगी या गिर जाएगी सरकार
दूसरे ने पान चबाते हुए कहा
अब किसे सुननी है? हमारी क्या दरकार !
हमने भी आज फिर से याराना निभाया
बच्चू फिर आज गच्चा दे कर टिकट नहीं कटवाया
इस तरह इस बनते बिगड़ते बस के लोकतन्त्र में
हमने समय काटा, और पहुँच गए ऑफिस खेल खेल में
ये डीटीसी के बस की सवारी, इससे तो थी अपनी यारी।
~मुकेश~
40 comments:
जितना हास्य का मजा कविता पढ़ कर उठाया लेबल पढ़कर उससे भी ज्यादा मजा आया बस सवारी फुदकिया ,हाहाहा
bahut hi maja aaya is kavita ko padne mei ... navintam vishay
Rajesh jee wo tagging galat ho gaya tha :-D
he he he ... बढ़िया :)
बेहद मज़ेदार :)
वाह ... बहुत ही बढिया ।
इनसे सारी दुनिया हारी
....वाह!..बहुत ही मजेदार!
बहुत बढ़ियाँ....
रोचक...
:-)
बच्चू फिर आज गच्चा दे कर टिकट नहीं कटवाया
होशियार हो ,लेकिन बार-बार अच्छा नहीं होगा , अगली बार कटवाना .... :P
Barson poorv isme sawar hui the...badee mazedar rachana!
रोचक रचना .....:))
बहुत अच्छा चित्रण है , लेकिन कभी -कभी यह सफ़र भयावह भी हो जाता है महिलाओं के लिए
हमने भी आज फिर से याराना निभाया
बच्चू फिर आज गच्चा दे कर टिकट नहीं कटवाया
इस तरह इस बनते बिगड़ते बस के लोकतन्त्र में
हमने समय काटा, और पहुँच गए ऑफिस खेल खेल मे...
ये डी.टी.सी. के बस की सवारी
इससे तो थी अपनी यारी…………behadd rochak lagi aapki navintam kritii ..baadhaayi Mukesh babu..:)
sach may bahut maza aya padh kar ....bilkul lag sa naya sa aur bahut rochak
काफी बारीकी से लिखी है ये सवारी .... रोचक
पढ़ा हमने भी था देखा नहीं था..
पढ़ कर सवारी होने का एहसास हुआ
मानो कर रहे बस मैं सवारी भीड़ के साथ
एक दुसरे को दे कर घक्का मुक्की आगे बढ़ रहे
अपने स्टॉप पर उतरने की गुहार लगा रहे..
कुछ ऐसा आभास हुआ हमें भी ....
बहुत अच्छा लिखा आपने मुकेश भाई......
क्या बात है मुकेश जी ..अच्छा सफर करवाया डी.टी.सी. की बस में.......
बहुत खूब! क्या बात है जी!
:-)
बिना टिकट सवारी की और ऐलान भी कर दियाः)
मजेदार रचना है !!
बढि्या हास्य :)
Delhi ki bason ka sahi nakshaa khinchaa hai aapne ...sundar rachnaa best wishes....
:-)
good obesrvation and nice description...
anu
हमने भी आज फिर से याराना निभाया
बच्चू फिर आज गच्चा दे कर टिकट नहीं कटवाया
इस तरह इस बनते बिगड़ते बस के लोकतन्त्र में
हमने समय काटा, और पहुँच गए ऑफिस खेल खेल मे...
...वाह! बहुत रोचक प्रस्तुति..
bahut badhiya rachana aapki ....aisa laga jaise aapke saath bus ki sawari kar rahe hain :)
बस की सवारी का आँखों देखा रोचक विवरण ...
मगर टिकट तो कटवा ही लेना चाहिए !
वाह बहुत बढ़िया ....रोचक लगी यह रचना :)
वाह!बहुत सराहनीय प्रस्तुति
very true & interesting....good!
रोचक बयानगी :):)मजा आया पढ़ने में .
majedar sawari...
rochak vivran.....
बहुत अच्छी कविता .....
वाह बहुत खूब..इस सवारी ने तो गजब का हास्य पैदा किया है...सुन्दर रचना।।।
pata chala ki Govt Services Profitable kyu nahi ho pati.... ;) Aap jaise aur kitne hai sir ji....
Anyways Grt
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
पुराने दिनों की याद दिला दी....फोटो तो "२३४" का लग रहा है.
kya baat hai da... bahut hi mast rachna hai...
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