जिंदगी की राहें

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Friday, October 21, 2011

पता नहीं क्यूं??




पता नहीं क्यूं??
अपने बच्चो को
सिखाता हूँ सच कहना..
पर कल ही..
उनसे झूठ कहलवाया
कह दो अंकल को
पापा ! घर पर नहीं हैं.........

पता नहीं क्यूं??
पति - पत्नी के रिश्तो पर..
मैं उससे रखता हूँ
उम्मीद - विश्वास कि.....
पर उस दिन ही
मेरी खुद नजर
नहीं बद-नजर..
थी एक लावण्या पर  ....

पता नहीं क्यूं??
माँ- पापा को रहती है
मुझ से उम्मीद..
और क्यूँ ना हो
मै हूँ उनका सपूत
पर कल ही मम्मी ने
फ़ोन पे कहा..कुछ ना उम्मीदी से
"भूल गया न तू!!"

पता नहीं क्यूं??
भ्रष्टाचार दूर करने के
मुद्दे पर, चढ़ जाती है
मेरी त्योरियां
पर पहचानता हूँ क्या
मैं खुद की ईमानदारी ?

पता नहीं क्यूं?
इतना सब हो कर भी
लगता है मुझे
एक आम इंसान
शायद होता है
मेरे जैसा ही ..
क्या ये सच है????

वक़्त के सांचे में
खुद को ढाल
अपनी ही कमजोरियों
के साथ
खुद को बेबस मान
हम को सबके साथ
बस यूँ ही जीना है  .....




52 comments:

सदा said...

सार्थक व सटीक लेखन ...।

kshama said...

Sahee kaha! Ham apne andar jhank ke nahee dekhte!

प्रवीण पाण्डेय said...

बस यूँ ही जीना, समझौतों के साथ।

Anonymous said...

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करती कविता के लिए बहुत बहुत बधाई !

shikha varshney said...

ये जीना भी कोई जीना है????
पर क्या करें यूँ ही जीना है ..
प्रभावशाली रचना.

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

ये जीना भी कोई जीना है????
पर क्या करें यूँ ही जीना है ..

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

ये जीना भी कोई जीना है????
पर क्या करें यूँ ही जीना है ..ekdam sahi.

Yashwant R. B. Mathur said...

वक़्त के सांचे में
खुद को ढाल
अपनी ही कमजोरियों
के साथ
खुद को बेबस मान
हम को सबके साथ
बस यूँ ही जीना है .....

बहुत सही बात कही है सर।

----
कल 22/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Pallavi saxena said...

यह जीवन है इस जीवन का यही है यही है रंग रूप ....स्म्झोते का दूसरा नाम ही जीवन है। सार्थक प्रस्तुति ...

Rajiv said...

आत्ममंथन से उपजा हुआ सच जिसे स्वीकार करना सहज नहीं होता क्योंकि अपने मन के भीतर झांकना आसन नहीं होता. बेहतरीन.बधाई.

अरुण चन्द्र रॉय said...

दोहरे होते चरित्र पर बहुत साफगोई से कविता कही गई है.. मुकेश जी काफी दिनों बाद लेकिन एक मुक्कमल कविता आई है आपकी ओर से !

vandana gupta said...

इंसान का असली चेहरा उतार दिया…………हम सभी दोहरा जीवन जीते हैं मगर खुद से नही भाग सकते मन के दर्पण मे सब सच दिख जाता है………………बेहतरीन अभिव्यक्ति।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

dhanyawad.....Sada, Kshama, Praveen jee, Usharai jee, :)

रश्मि प्रभा... said...

aadmi ! kahne karne sochne mein bada fark hota hai

रेखा said...

गहरी अभिव्यक्ति ...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

shukriya shika, neelima jee, !!
dhanyawad yashwant halchal me shamil karne ke liye:)

केवल राम said...

सच को सही ढंग से सामने लाया है आपने इस रचना के माध्यम से .....पता नहीं क्योँ ???

Cloud said...

sach hai ......:)) sunder hai .....:))

JAINA said...

Baithe-Baithe Jindgi Barbad Na Kijiye
Jindgi Milti Hai Kuchh Kar Dikhane K Liye
Roke Agar Aasman Tumhare Raste Ko
To Taiyar Ho Jao Aasman Jhukane K Liye.............esye zyada hum kya khye mukesh ji aap ki soch bhut achi hai ......

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Pallavi, achchha laga tumahre comments dekh kar:)
@Rajeev jee, shukriya......aapke comments hausla badhate hain:)

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...




पर पहचानता हूँ क्या मैं खुद की ईमानदारी ?
सच है मुकेश जी !
स्वयं का आकलन करके ही हम ईमानदार हो सकते हैं ।

अच्छी रचना के लिए आभार !


त्यौंहारों के इस सीजन सहित
आपको सपरिवार
दीपावली की बधाइयां !
शुभकामनाएं !
मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर सटीक !
कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !

anshumala said...

हा आम आदमी तो ऐसी ही होता है थोडा ईमानदार किन्तु ईमानदारी की पराकाष्ठ नहीं , थोडा सच्चा जिन्तु हरिश्चन्द्र जैसा नहीं , बेबस तो वो बिलकुल भी नहीं है हा न बदलने का बहाना कर खुद को बेबस कहे तो और बात है |

***Punam*** said...

सही कहा आपने अच्छी सीखें सिर्फ और सिर्फ दूसरों को देने के लिए होती हैं...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सार्थक लेखन ...
बहुत बधाई

विभूति" said...

सार्थक पोस्ट.....

Patali-The-Village said...

सार्थक व सटीक लेखन| धन्यवाद|

Kailash Sharma said...

वक़्त के सांचे में
खुद को ढाल
अपनी ही कमजोरियों
के साथ
खुद को बेबस मान
हम को सबके साथ
बस यूँ ही जीना है .....

बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति..

Sadhana Vaid said...

सशक्त एवं सार्थक रचना ! इसे पढ़ कर शायद सभी आत्मचिंतन करने लगें तो कुछ तो अच्छाई को बल मिलेगा ! बेहतरीन रचना !

ASHOK ARORA said...

अशोक अरोरा

आप की रचना..एक समीक्षात्मक रचना है और्..कटु सत्य को अभिव्यक्त करती है.....इस के लिये आप को साधुवाद...

मुझे नहीँ पता कि मैँ खुद कौन हूँ...
पर तेरा पता बताने चला हूँ मैँ....

ASHOK ARORA said...

अशोक अरोरा

आप की रचना..एक समीक्षात्मक रचना है और्..कटु सत्य को अभिव्यक्त करती है.....इस के लिये आप को साधुवाद...

मुझे नहीँ पता कि मैँ खुद कौन हूँ...
पर तेरा पता बताने चला हूँ मैँ....

ASHOK ARORA said...

अशोक अरोरा

आप की रचना..एक समीक्षात्मक रचना है और्..कटु सत्य को अभिव्यक्त करती है.....इस के लिये आप को साधुवाद...

मुझे नहीँ पता कि मैँ खुद कौन हूँ...
पर तेरा पता बताने चला हूँ मैँ....

दर्शन कौर धनोय said...

दोहराव आजकल हमारे जीवन का अंग बन गया हैं ....हम अंदर से कुछ और बाहर से कुछ दीखते हैं ...शायद इसी दोहरेपन को लोग जिन्दगी कहते हैं ! सशक्त कविता ...बधाई !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर रचना ......कुछ समझौते जीवन का हिस्सा बन ही जाते हैं......शुभकामनाएं

kavita verma said...

ye ulajhan ..shayad harinsan ki hai...bahut sundar..

सागर said...

bhaut hi khubsurat... happy diwali...

anilanjana said...

सीधी सच्ची बात...हमेशा की तरह ..उतनी ही सादगी से..''.क्या ये सच है????..हाँ ..एक आम आदमी का ..सोलह आने सच.....पर इसकी स्वीकारोक्ति ..जो कर सके..वो...''आम'' से अचानक..''ख़ास'' बनने की तरफ अग्रसर हो जाता है..और फिर जीना यूँही नहीं होगा..दिशा और दशा में..परिवर्तन अवश्यसंभावी है..शुभकामनायें .इस सहज अभिव्यक्ति के लिए बधाई...

Anju (Anu) Chaudhary said...

पता नहीं क्यूँ ????....इसका कोई जवाब क्यूँ नहीं ?

मन में उठी उथलपुथल को दर्शाती...बेहतरीन रचना

दिगम्बर नासवा said...

Bahut khoob ... sach kaha hai ... ham khud ko hi nahi sikha paate ... khud se nahi jeet paate ...
Lajawaab kavita ahi ...

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत सुंदर ,बधाई.

udaya veer singh said...

very fine creation with seer sense .... appreciable work you have done ..thanks .happy diwali to you and entire family.

નીતા કોટેચા said...

ye hi manvi ka man hai..kitna bhi savalo ke gere se nikalna chahe vo usime fasta jata hai..aur jidgi yu hi ek din katam ho jati hai...

Rohit Singh said...

सच और झूढ...अगली पीढ़ी को क्या समझाएं....खुद ही इस उलझन से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं. हम..अच्छा प्रश्न उठाती कविता..

निर्मला कपिला said...

पता नहीं क्यूं??
भ्रष्टाचार दूर करने के
मुद्दे पर, चढ़ जाती है
मेरी त्योरियां
पर पहचानता हूँ क्या
मैं खुद की ईमानदारी ?

बस यूँ ही चलती है ज़िन्दगी। सिर्फ दूसरों को कहते हैं खुद कुछ नही करते। बहुत सही और सार्थक अभिव्यक्ति है।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@धन्यवाद् अरुण जी... हाँ क्या कहेँ, शब्दों कि कमी हो गयी है
@शुक्रिया वंदना...:),
@डॉ. शास्त्री... शुक्रिया हौसलाफजाई के लिए..:)
@धन्यवाद रश्मि दी , रेखा, केवल जी व रिया

Mridula Ujjwal said...

jawab sab andar hi hain ki hum jaisa dikhate hain waise kyun nahi hain, kyun ye double standard hain....andar jhankna (self enquiry) zaroori hai....koi bhi transformation laane ke liye

Urmi said...

बहुत सुन्दर एवं सटीक लिखा है आपने! सार्थक रचना ! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@शुक्रिया जैना, अच्छे लगे आपके शब्द!
@बस कोशिश मात्र है राजेंद्र सर!
@धन्यवाद् संजय,
@ अंशुमाला जी, पूनम जी ....बिलकुल सही आपने समझा!
@सुषमा, पताली, कैलाश जी ...शुक्रिया

नीरज गोस्वामी said...

Behtariin Rachna hai Mukesh bhai...likhte rahen

Neeraj

डॉ. जेन्नी शबनम said...

ek aam insaan ka jivan aisa hin hota hai, bahut sundar rachna, badhai Mukesh.

आनंद said...

पता नहीं क्यूं?
इतना सब हो कर भी
लगता है मुझे
एक आम इंसान
शायद होता है
मेरे जैसा ही ..
क्या ये सच है????

हाँ भाई शतप्रतिशत सच है यह !

shubh said...

bahut sundar