धुंधलकी सुबह!!
बड़े शहर की बेगानी सुबह!!
नीले बादलो में धुल के गुब्बार वाली सुबह!
चिड़ियों की चहचहाट के बदले
नल में आने वाले पानी के बूंदों की टप टप
ने बताया की हो चुकी है सुबह....
झप्प से खुली आँख
पर मुर्गे के बांग के बदले
म्युनिसिपलिटी के स्वीपर के झारू की खर-खर...
कह उठी!! उठ जा ..........हो चुकी सुबह..
फिर से आँख मिंचा
कि दिखे कोई सुबह का सपना सुहाना
पर धप्प से दरवाजे पे कुछ पड़ने कि आयी आवाज
अरे रबर से बंधा पेपर का पुलंदा जो पड़ा था आ कर...
जो कह रही थी....बेबकुफ़! हो गयी सुबह...!
छत पे पानी की बाल्टी लेकर पहुंचा
तो प्रदूषित हवा में गमले के अध्-खिले फूल
पानी के उम्मीद में खिलने का कर रहे थे इंतज़ार
समझ में आ गया कि हो गयी है सुबह...
एक बड़े शहर कि
खिली हुई नहीं!! बल्कि धुन्धलकी सुबह !!
न कोई रूमानियत
न कोई सदाबहार ताजगी...
बस हर एक नए दिन में वही पुरानी सुबह
वही मशीनी व प्रदूषित दुनिया में जीते लोग....
और वही उनकी धुन्धलकी सुबह.......!!
66 comments:
itni sundar subah............bahut badhiya ...
वाह!
सुबह की दस्तक!
ताजा होता मस्तक!!
--
लिखो रचना,
पढ़ो पुस्तक!
--
यही तो आनन्द है सुबह का!
--
बहुत सुन्दर रचना!
गज़ब का चित्रण किया है सुबह का।
बहुत बढ़िया लिखा है सर!
सादर
@Thanx Aprajita....mere blog pe visit karne ke liye:)
@Dr. Shashtri...achchha laga...apne hame follow bhi kiya, aur comment bhi...bahut bahut thanx\1
@Vandana jee., yashwant...shukriya...
एकदम सुबह की तरह तारो तजा नज्म
बढ़िया लिखा है.
एक बड़े शहर कि
खिली हुई नहीं!!
बल्कि धुन्धलकी सुबह !!
न कोई रूमानियत न कोई सदाबहार ताजगी...
बस हर एक नए दिन में व
ही पुरानी सुबह
वही मशीनी व प्रदूषित दुनिया में जीते लोग....
और
ही उनकी धुन्धलकी सुबह.......!!
Waah mukesh sach me kmaal kar diya is baar tumne khule man se swekar kartna ise ...Bhut hi achha likha hai bhai tumne...mazaa agaya...kitna kareeb se dekhte ho tum cheezon ko yaar !
बड़े शहर की बेगानी सुबह ...
अभी शहर में बची हुई है कुछ ताजातरीन-सी सुबह ..नल की टप- टप के साथ चिड़ियों के कलरव, ताज़ा फूलों के साथ .. !
@shukriya Shikha...:)
@anand bhaiya tumne bahut ko bhut bana diya...ha ha ha ha...:! waise thanx!
@vani di...dhanyawad!
छोटे बड़े शहरों की सुबह ..शब्दों से हुई जीवंत...पर देखो न इंसानी फितरत.उम्मीदों का दामन कभी नहीं छुट पता...''तो प्रदूषित हवा में गमले के अध्-खिले फूल
पानी के उम्मीद में खिलने का कर रहे थे इंतज़ार''......इसी जिजीविषा को सलाम....सार्थक लेखन में प्रचलित शब्दों को ख़ास बना देने की कुवत आप में है.जैसे.''झारू की खर-खर''..''धप्प से ''.''बेबकुफ़''..सुबह का चित्र आपकी रचना पढने के साथ साथ ही आँखों के सामने..जीवंत होता गया....इसके लिए आपको बधाई.....
BAHUT BADHIYA..AB ROJ SUBAH YE BATE YAD AAYEGI...
wah mukesh ji .....to yaha hai aapka kavita sagar.......bahut sahi ho aap...is dhundalki subah ke baare me......kahan dikta hai hai wo neela aasmaan.....kahan chiriya ki chichi...na koi murga hai jo ban de.....ye to ab lagta apni duniya se pare hai....jo sach hai wo aapne bahut suner tarike se vyakt kiya........
प्रदूषण ने न सिर्फ़ हमारी सुबह बल्कि हमारी ज़िन्दगी के हर पहलु को धुंधला कर दिया है। समय रहते हमें चेत जाना चाहिए। कविता कुछ उन्हीं बातों का इशारा कर रही है।
@anjana di...!! sach kahun to mujhe ye bhi nahi pata ki meree kavita kabhi sarthak hoti hai, ya kuchh shabd jo aapne ullekhit kiya hai, wo khuchh khas banane layak hai...:)
achchha lagta hai jab koi iss tarah bariki se kuchh kahta hai:) thanx!
बड़े शहर की सुबह का क्या खूब चित्र खींचा है आपने अपनी इस रचना में...वाह...बधाई स्वीकारें
नीरज
शहे की सुबह का सटीक चित्रण
बेमिसाल चित्रण..... सच में शहरों की सुबह का पता कुछ यूँ ही चलता है.....
bhut hi khubsurat subah aur rachna...
सुबह का मनमोहक चित्रण !
सुबह शब्द में ही ताजगी है।
एक बड़े शहर की सुबह...
सुन्दर रचना.
ख़ूबसूरत शब्दचित्र!!
sahi kaha mukesh ji ''vahi purani subah.''
बहुत खूबसूरती से आपने सुबह का चित्रण किया है! इस लाजवाब और उम्दा रचना के लिए बधाई!
beautiful description of morning !!
I am sure every one will agree with me that noting in this world can beat the freshness and enjoyment of morning.
bahut sateek vishleshan shahri-subah ka .badhai
yah aaj ki subah ka shai chitran badai
नई सुबह ....धुंधली सुबह ....
बडे शहर कि ये तस्वीर ...एक दम सच
नया अन्दज़ा ...हर कोई नहीं सोच सकता
बहुत खूब...
बहुत ही अच्छा खाका खींचा है आपने सुबह का ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
@नीता....धन्यवाद्!
@रिया...सच ही तो कहा मैंने...इस बड़े शहर में सूरज भी तो सही तरीके से नहीं निकलता है..
@शुक्रिया मनोज सर....आपके शब्द सर आँखों पर..
@नीरज जी, ऋचा, संगीता दी, डॉ. मोनिका, सुषमा, अरुण जी...बहुत बहुत धन्यवाद्.
बहुत खूब .. पर बड़े बड़े शहरों में सुबह होती रहे तो भी खुशकिस्मती है ...
अच्छा व्यंग है ...
बस हर एक नए दिन में वही पुरानी सुबह
वही मशीनी व प्रदूषित दुनिया में जीते लोग....
और वही उनकी धुन्धलकी सुबह......
बहुत अच्छा चित्रण हैं आजकल की शहरी जिंदगी की फिलोसफी का
बस हर एक नए दिन में वही पुरानी सुबह
वही मशीनी व प्रदूषित दुनिया में जीते लोग....
और वही उनकी धुन्धलकी सुबह......
बहुत अच्छा चित्रण हैं आजकल की शहरी जिंदगी की फिलोसफी का
@शुक्रिया प्रवीण जी, समीर भैया!!
@बड़े भैया नमस्कार.....:)
@धन्यवाद् शालिनी....
@thanx Jyoti.......
patton per padi os si rachna
शहर की सुबह ... एकदम सजीव चित्र उकेर दिया..
छत पे पानी की बाल्टी लेकर पहुंचा
तो प्रदूषित हवा में गमले के अध्-खिले फूल
पानी के उम्मीद में खिलने का कर रहे थे इंतज़ार
समझ में आ गया कि हो गयी है सुबह...
सजीव चित्रण....बेहतरीन कविता...
ये दौड़ती हुई दुनिया है दोस्त यहाँ रात कब गुजरती है और सुबह कब हो जाती है पता ही नहीं चलता , बस धुल से भरी दुनिया रह गई है जिनको समय - समय में झाड़ते रहना जरूरी भी है |
बहुत सुन्दर रचना |
bade shahron ki subah aisi hi hoti hai, phir laayen kahan se vo saph suthari subah sab kuchh to dhundhala gaya hai. hamen shahar ka jeevan bhi chahie aur gaanv jaise subah to bhai kaise nibhe ker ber ka sang.
सुबह वाकई ऐसी ही होने लगी है ........
बहुत ही बढ़िया,वाह,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
न कोई रूमानियत
न कोई सदाबहार ताजगी...
बस हर एक नए दिन में वही पुरानी सुबहवही मशीनी व प्रदूषित दुनिया में जीते लोग.
...और वही उनकी
धुन्धलकी सुबह.......!!
बड़े शहरों की सुबह का बखूबी चित्रण किया है आपने .....आपका आभार
विचार अच्छे हैं और भाव भी। भाषा पर मेहनत जरूरी है। अन्यथा सुबह धुंधली ही रहेगी।
बहुत बढ़िया...
एक बड़े शहर कि
खिली हुई नहीं!! बल्कि धुन्धलकी सुबह !!
न कोई रूमानियत
न कोई सदाबहार ताजगी...
बस हर एक नए दिन में वही पुरानी सुबह
वही मशीनी व प्रदूषित दुनिया में जीते लोग....
और वही उनकी धुन्धलकी सुबह.......!!
magar taazgi har subah me hoti hai
mukesh ji
dilli ki subah ka aapne axhrashah sahi mulaunkan kiya hai .yah dilli nahi balki sbhi bade shahro ki aam baat hai .
ek sa ruteen vahi jaldi jaldi meteo ki raftaar ki tarah teji se bhagte haue log .fir raat gaye ghar aane par past halaat.
badi hi khoobsuratise sachchai ko bayan kiya hai aapne .lagta jaise khud hi sab dekh-kar rahi hun.
bahut hi sateek chitran---
bahut bahut badhai
dhanyvaad
poonam
by email:
Rekha Maitra
show details Jun 7 (2 days ago)
धुन्धलकी सुबह पढ़ते पढ़ते पाठक जा पहुँचता है ऐसे किसी महा नगर में जहाँ जीवन ही गायब है ! अच्छा लिखते हैं ! बधाई स्वीकारें !
हाँ, गाँवों में होने वाली को ताज़ी सुबह कहाँ देखने को मिलती है अब.. बड़े शहरों की ऊँची मंजिलों से चीखती, तड़पती हुई सुबह ही देखने को मिलती है अब बस..
सुन्दर रचना...
बहुत सुन्दर ,,,
सादर
तृप्ती
Purani subah me tazagi dhundhati rachana...aankhe khuli rah gayi...
hmmmmmmmmmm delhi ki subah nazar aayee aapki rachna mein. par apni subah wahi ho jo bachpan se jite rahe aur ab soch mein wahi ho. bahut achhi tarah aapne likha hai, badhai Mukesh.
बहुत सुन्दर रचना है
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
धुंधलकी सुबह!!बड़े शहर की बेगानी सुबह!!नीले बादलो में धुल के गुब्बार वाली सुबह!चिड़ियों की चहचहाट के बदले नल में आने वाले पानी के बूंदों की टप टपने बताया की हो चुकी है सुबह
........सुबह का बखूबी चित्रण किया है आपने
बेहतरीन कविता.....
कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
जब कभी दिल्ली आती हूंम तो मुझे भी इस कविता जैसा एहसास होता है हमारे छोटे से शहर मे सुबह का आनन्द ही कुछ और होता है। च्छी रचना। बधाई।
mukesh ji bahut hi sunder chitran kiya hai shahri subah ki .......
धुंधलकी सुबह!!
बड़े शहर की बेगानी सुबह!!
नीले बादलो में धुल के गुब्बार वाली सुबह!
चिड़ियों की चहचहाट के बदले
नल में आने वाले पानी के बूंदों की टप टप
ने बताया की हो चुकी है सुबह....
और शहरों में कुछ ऐसी ही सुबह होती है...!
बड़े शहर की सुबह..अलसाई हुई..धुंधली ही होती है..
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-06-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!
एक बड़े शहर कि
खिली हुई नहीं!! बल्कि धुन्धलकी सुबह !!
न कोई रूमानियत
न कोई सदाबहार ताजगी...
बस हर एक नए दिन में वही पुरानी सुबह
वही मशीनी व प्रदूषित दुनिया में जीते लोग....
और वही उनकी धुन्धलकी सुबह.......!!
शहर के प्रदुषण की और इंगित करती हुई बेमिसाल रचना
बधाई स्वीकारें /
please visit my blog.thanks
pradooshan par sateek pratikriya karti vicharneey rachna.
कुछ नया क्यूं नहीं लिखा जा रहा है भाई?
arre sameer bhaiya..apne kaha hai to kuchh karna parega:)
ek bade shahar ki subah to esi hi hoti hai mukesh...begani si. haan aapane kavita ka chitran bahut sundar kiya hai...badhai...
thanx sunita......:)
धुंधलकी सुबह!!बड़े शहर की बेगानी सुबह!!
नीले बादलो में धुल के गुब्बार वाली सुबह!
चिड़ियों की चहचहाट के बदले नल में आने वाले पानी के बूंदों की टप टपने बताया की हो चुकी है सुबह....
वाह बहुत सुन्दर कटाक्ष :)
अभी भी जहन में वो बीते दिनों कि याद थी |
चिड़ियों कि चहचहाहट और मुर्गों कि बांग थी |
माँ के नरम हाथों कि मीठी सी याद थाप थी |
इसलिए ये गुजरते वक्त में भी साडी यादे साथ थी |
बहुत खूबसूरत रचना |
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