हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही तुम्हें क्यूँ लोग
इतने विशेषणों से करते हैं संबोधित
इतने अलंकारो, उपमाओं से करते हैं सुसज्जित
असम्मानीय शब्दों से करते हैं विभूषित.!!
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही लोग क्यूं
कहते हैं...
भ्रष्टाचार हमारे देश को घुन की
तरह खा गया
और फिर कहतेहैं
"भ्रष्टाचार को भागना होगा.
देश को बचाना होगा.........."
ऐवेंइ ही लोग क्यूं
कहते हैं...
भ्रष्टाचार हमारे देश को घुन की
तरह खा गया
और फिर कहतेहैं
"भ्रष्टाचार को भागना होगा.
देश को बचाना होगा.........."
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही लोग क्यूं
क्यूं पिछले दिनों
अन्ना के बूढ़े कंधो का सहारा लेकर
बाब रामदेव की ओट से कहते हैं..
भ्रष्टाचारी को दे दो फांसी ....
ऐवेंइ ही लोग क्यूं
क्यूं पिछले दिनों
अन्ना के बूढ़े कंधो का सहारा लेकर
बाब रामदेव की ओट से कहते हैं..
भ्रष्टाचारी को दे दो फांसी ....
उड़ा दो इन सबको को ....
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही तू इस कलियुग में
ऐवेंइ ही तू इस कलियुग में
कब तक लेता रहेगा अवतार
कभी तेलगी तो कभी बंगारू
कभी राजा तो कभी कलमाड़ी
तो कभी कोड़ा .....
हर दिन एक नए रूप में
होते रहेंगे दर्शन बारम्बार...
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ एक आम भारतवासी क्यूँ
अपने बारे में सिधान्तवादी
होने की पाल रखी है
ग़लतफ़हमी...
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही क्यूं इतना कोसने पे भी
तुम बिन बेमानी हो गया है जीवन
जैसे ऑक्सीजन बिन लेना साँस.
ऐवेंइ ही क्यूं इतना कोसने पे भी
तुम बिन बेमानी हो गया है जीवन
जैसे ऑक्सीजन बिन लेना साँस.
हमारे खून में प्रवाहित हो गया है तू
ऐसा लगने लगा है.....
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही तेरे विरूद्ध झंडा उठा कर
ऐवेंइ ही तेरे विरूद्ध झंडा उठा कर
तेरा कर रहे हैं महिमा मंडन
अगर तुम्हें भागना है
जड़ से उखाड़ना है
तो हमें अपने अन्दर झांकना होगा
तू जो हम में बैठा है.
उसे भागना होगा...
उसे भागना होगा...
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही....................
ऐवेंइ ही....................
67 comments:
ham sudharenge jag sudhrega
एक समसामयिक विषय पर अच्छी कविता है यह.. व्यंग्य के पुट के साथ साथ गंभीरता भी है कविता में .. भ्रष्टाचार के विभिन्न आयामों को भी आपने छुआ है... एक बढ़िया कविता के लिए बधाई... सुन्दर !
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही तेरे विरूद्ध झंडा उठा करतेरा कर रहे हैं महिमा मंडनअगर तुम्हें भागना हैजड़ से उखाड़ना हैतो हमें अपने अन्दर झांकना होगातू जो हम में बैठा है.उसे भागना होगा...उसे भागना होगा...
bahut khub....aaj ke waqt ka sach
तू जो हममे बैठा है
उसे भागना होगा ...
................यथार्थ को अभिव्यक्ति देती विचारणीय रचना
भ्रष्टाचार से पहले हम स्वयं मुक्त हों , फिर औरों की बातें करें
अगर तुम्हें भागना है
जड़ से उखाड़ना है
तो हमें अपने अन्दर झांकना होगा
तू जो हम में बैठा है.
उसे भागना होगा...
उसे भागना होगा...
yahi zaruri hai
Deepak jee dhanyawad, hamare blog pe aane ke liye..
Arun jee...sach me apka comment sir aankho par...
Anju...thanx
Surendra jee...dhanyawad..
Rashmidi shukri........
ये भ्रष्टाचारी इन चंद लोगों में ही नहीं बैठा है , भाई ये तो हर गली और कूचे में खड़ा है और रह देख रहा है कि कब मौका मिले और कैसे मौका मिले. हमें तो सिर्फ अपने को सुधारना होगा हर कोई अपने अन्दर झांक कर सुधार जाए तो फिर ये भ्रष्टाचारी बचेगा ही कहाँ?
तू जो हममे बैठा है
उसे भागना होगा ...
एक सच ... कहती बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
शानदार व्यंग्य्……………।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
Behad achhee rachana....aisahee hamara parivesh ho gaya hai! Sach!
haan rekha di...isse bhagane ke liye apne andar se isse bhagana hoga...:)
Sada jee, Kshama jee....shukriya...
Vandana jee....charcha manch me shamil karne ke liye tahe dil se shukhriya...
बढ़िया व्यंग के साथ सटीक रचना.
thanx shikha........
सिन्हा जी ने आमंत्रित किया और हम आ गए अपनी दुनाली के साथ-
आपकी पोस्ट बहुत सुन्दर लगी.. मेरी दुनाली से रहा नहीं गया.. इसलिए एकाध फायर कर लेने दो...
हटा दो
या लटका दो
इन भ्रष्टाचारियों को
बिना कुछ पूछे
बिना कुछ सुने
बिना अदालत
बिना सुनवाई
गर ये पूछें
तो कह दें
बस
ऐवेंई..........
आदरणीय सिन्हा जी
नमस्कार !
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही लोग क्यूं
कहते हैं...
भ्रष्टाचार हमारे देश को घुन की
तरह खा गया
...समसामयिक विषय पर बढ़िया व्यंग के साथ सटीक रचना
अंतर्मन की बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति है...पहले स्वयं को मुक्त करें फिर पडोसी को देखें ! हार्दिक शुभकामनायें !
तू जो हममे बैठा है
उसे भागना होगा ...
ज़रुरत है अपने अन्दर झांकने की..
पर क्या किया जाए
कोई देखता ही नहीं..
उंगली सामने की तरफ उठा देते हैं सब...
!
बिलकुल भगाना होगा कविता के माध्यम से अच्छा संदेश दिया है। मैने आपसे कहा था कि जब पोस्ट लिखें मुझे मेल कर दें उसी का इन्तजार कर रही थी। भूल कैसे सकती हूं म इतना सम्मान दिया उसके लिये आभारी हूँ। धन्यवाद।
अच्छे विषय को चुना वाह क्या बात है आपने अंदाज में सच्चाई वयां कर दी, बधाई.....
कितने विशेषण लगा लिये जायें, स्तुति पूरी नहीं होगी।
bahut achchi hai.yadi background badal den to achcha rahega,padhne men kathinayee ho rahi thi.anytha na len.
बहुत अच्छी बात लिए रचना ....बदलाव की शुरुआत खुद से ही हो....
ऐसे लोंग ऐंवेई पिअदा होते हैं और मर जाते हैं.. इतिहास उनको हाशिए पर भी नहीं स्थान देता..
बहुत जबरदस्त....क्या बात है.
सटीक और सार्थक रचना ... सब खुद ही पालते हैं इस भ्रष्टाचार को और नारा लगाते हैं कि भगाना होगा ...
बिल्कुल ठीक कहा ... अपने अंदर झाँकना होगा ... दिल से भागना होगा ... अच्छी व्यंगात्मक रचना ... .....
nice.
MUKESH JI SALAM HEIN AAPKO
MAGAR AAPKI RACHNA KYA SUDHAR LAA PAYENGI
YEH HUMSABKEY SHBDO KA BHRAM HEIN
YHAN KUCH NAHI HONGA
AAP OR HUM SAB YAHI DEKHTEY HUEY CHALEY JAYENGEY!!!
YEH MERI PRITKIRYA HEIN
AAP KI AAP JANOO!!SRY AGAR KUCH GALAT BOLA TO.....
वाह भ्रष्टाचारी!
एक सच कहती बेहतरीन अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
हे भ्रष्टाचारी !!ऐवेंइ ही तुम्हें क्यूँ लोगइतने विशेषणों से करते हैं संबोधितइतने अलंकारो, उपमाओं से करते हैं सुसज्जितअसम्मानीय शब्दों से करते हैं विभूषित.!!भ्रष्टाचार का नशा इतना समा गया है की अगर भ्रष्टाचारी भ्रष्ट आचरण ना करे तो ज़िंदा ही ना बचे,जिस तरह नशा करने वाला ब्यक्ति नशे का आदि होता है .इसी तरह उपर से नीचे तक यह नशा हमारे देश मैं फेल गया है,इससे निजात पाना मुश्किल ही है.आपकी बहुत सुंदर रचना इस पर ब्यंग करती हुई/बधाई आपको
plase visit my blog and leave the comments.thanks
बहुत खूब
ऐवेंई ही आपने इतना अच्छा लिख दिया ..:-)
@ धन्यवाद् सिंह साहब.....आप मेरे एक आवाज पे आ गए...:)
@शुक्रिया संजय भाई......
@सतीश सर.....आप आये बहार आयी:)
@सची कहा न मैंने पूनम जी...:)
@अरे निर्मला दी आप तो बस आशीष देते रहो..:)
sateek avum samyik rachana.
bhrasht karne wala bhee rishvat dene wala bhee utanaa hee jimmedar hai mahoul ko dushit karne me.
भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ाई ‘मैं’ से शुरु होती है।
रचना समय की मांग है।
अपने आप से लड़ना है...खुद पर जीत हासिल कर ली तो भ्रष्ट्राचार भी दूर हो जाएगा...अपने आप पर ही प्रहार है जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है .
सहमत हूँ...हम बदलें , युग बदलेगा ...
यदि हम सब खुद में झांक लें तो किसी भी बुराई को कोई ठौर नहीं मिलेगी !
यथार्थ को अभिव्यक्ति देती सटीक रचना,हार्दिक शुभकामनायें !
आदरणीय सिन्हा जी
नमस्कार !
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही लोग क्यूं
कहते हैं...
भ्रष्टाचार हमारे देश को घुन की
तरह खा गया
...समसामयिक विषय पर बढ़िया व्यंग के साथ सटीक रचना
एक सच कहती बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
"तो हमें अपने अन्दर झांकना होगा
तू जो हम में बैठा है.
उसे भागना होगा..."
अब समय आ गया है जब मुट्ठीभर लोगों के कारण अपनी और अपने देश की छवि को दागदार होते देखना जनमानस के लिए असहनीय हो चुका है.उसी आक्रोश से उपजी आपकी यह रचना अत्यंत सामयिक एवं विचारों को उद्वेलित करनेवाली है.
@सुनील सर आपको आभार...हमारे ब्लॉग पे आने के लिए..
@जी प्रवीण जी...........:)
@धन्यवाद् मृदुला जी...........:)
@डॉ. मोनिका दिल से शुक्रिया...
@बड़े भैया....धन्यवाद्...
ऐवेंइ ही तेरे विरूद्ध झंडा उठा करतेरा कर रहे हैं महिमा मंडनअगर तुम्हें भागना हैजड़ से उखाड़ना हैतो हमें अपने अन्दर झांकना होगातू जो हम में बैठा है.उसे भागना होगा...उसे भागना होगा...
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही....................
भ्रष्टाचारियो पर अच्छा व्यंग है --कविता मै अपना आक्रोश निकाल दिया आपने --पर हम कुछ नही कर सकते ---जब तक सारे भष्टाचारी खुद यह न समझे की क्या गलत है और क्या सही !
आप ऐवेंइ इन भ्रष्टाचारियों के चक्कर में क्यु पड़े हो दोस्त जी ये तो समाज के रग - रग में बसा है थोडा समय तो इसे बदलने में देना ही होगा |
सुन्दर रचना सारे भावों का समावेश |
किसी बिंदु को नहीं छोड़ा है ..खूब खबर ली है भ्रष्टाचारियों की ..अच्छा लगा ..
a very grave issue and now it feels like it has encoded in our genes, getting rid of it is very laborious work.
ऐवेंइ एक आम भारतवासी क्यूँ
अपने बारे में सिधान्तवादी
होने की पाल रखी है
ग़लतफ़हमी...
sabhi aam aur khaas bhartiye khud ko siddhantwaadi mante hain fir ye bhrashtaachaari kaun? maze ki baat hai ki sabhi ek dusre ko bharashtaachaari batate. ky akiya jaaye...aiwei sabhi hain...
bahut khoob likha bhaai, badhai.
व्यंग के साथ सटीक रचना......सफ़र में रहने के कारण ब्लॉग से दूर रही .....
भ्रष्टा चारियो को हीरो हम ही बनाते है !बहुत ही सुन्दर
@शुक्रिया समीर भैया..., संगीता दी, दिगंबर सर, डॉ. दिव्या.......
@ प्रतिक्रिया गलत नहीं होती डेजी जी..........:)
@धन्यवाद् शास्त्री जी.........patali
@प्रेरणा जी...आपके ब्लॉग पे गया था....और पढा भी, फोलो भी किया...:)
@ सवाई सिंह जी, निवेदिता जी, सरला दी...धन्यवाद...
एक बढ़िया कविता के लिए बधाई... सुन्दर !
सच्चाई को आपने बड़े सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई!
@धन्यवाद् मनोज सर,
@मिनाक्षी जी...बस कोशिश की है, आपने सराहा अच्छा लगा...
@वाणी दी...समय की मांग तो यही है, खुद को बदलने की....धन्यवाद्..
@रविन्द्र सर...आप मेरे ब्लॉग पे आये, मन खुश हुआ..........
@शुक्रिया नीलम ज ई....
bahut khoob bhrashtachari jo har jagah moujud hai....aur uske na rahne se hone vala khali pan ....sateek hai..
जन-मानस में अलख जगाने से पहले....अपने गिरहबान में झांकना ..सबसे पहला कदम होगा..बिलकुल सही कहा तुमने..भ्रस्टाचार के इस वृक्ष को अगर जुड़ से उखाड़ना है..तो पानी की जगह अपने अपने हिस्से का मट्ठा उसपे डालना होगा ..
ऐवेंइ..ये शब्द...खुद में कितना समर्थ है ये बताने के लिए की...we r taking things for granted..व्यंग लिखने में तुम माहिर होते जा रहे हो मुकेश..इस विषय पे तुम्हारा अधिकार है...ये आम से दीखते शब्द..तुम्हारी लेखनी में ख़ास बन जाते हैं...
mukesh ji
pahle hi itni sundar v behtreen rachna ke liye aapko badhai de rahi hun.
sach! bahut hi sach likha hai aapne .aapki kavita ki antim panktiyon ne bilkul sahi visleshhan kiya hai.
हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही तेरे विरूद्ध झंडा उठा कर
तेरा कर रहे हैं महिमा मंडन
अगर तुम्हें भागना है
जड़ से उखाड़ना है
तो हमें अपने अन्दर झांकना होगा
तू जो हम में बैठा है.
उसे भागना होगा...
उसे भागना होगा...
हे भ्रष्टाचारी !!
bahut hi behatreen v sandeshatmakta se bhari prastuti
bahut bahut badhai
poonam
क्यूं पिछले दिनों
अन्ना के बूढ़े कंधो का सहारा लेकर
बाब रामदेव की ओट से कहते हैं..
भ्रष्टाचारी को दे दो फांसी ....उड़ा दो इन सबको को ....
हे भ्रष्टाचारी !!
बढ़िया व्यंग के साथ सटीक रचना.
वास्तव में हम भ्रष्टाचार में सने हुए हैं |
es kavita ko padkar bhi na chete to???????
@राजीव जी, बहुत सही कहा आपने......
@@धन्यवाद् दर्शन जी....आपकी उपस्थिति अच्छी लगी...:)
@शुक्रिया मीनाक्षी...अमृता जी,
@ Thanx ज्योति
@जेन्नी दी...आपके कमेन्ट ख़ुशी देते हैं....
@रजनी जी धन्यवाद्......
@शुक्रिया Shaw sir
@धन्यवाद शिवा, बबली जी...
@...बहुत बहुत शुक्रिया कविता जी.
@अंजना दी....!हाँ दी....यही तो जरुरी है..हम सब की आदत है न...बस दुसरो को कुछ भी कह डालो पर अपने गिरेबान में झांकते नहीं...
अच्छा लगता है...जब आप मेरे कविताओं पे इतना सोच के कमेन्ट करते हो...:)
@पूनम जी....आपने हमारे पोस्ट को अच्छा कहा....धन्यवाद्.
@महेश्वरी जी...पहली बार आयी...ख़ुशी हुई.....
@शुक्रिया हेम जी, पवन जी..........:)
बहुत बढ़िया रचना!
वर्तमान में बहुत ही प्रासंगिक है!
--
भ्रष्टाचारियों की भगाइए!
भ्रष्टाचार खुद ही खत्म हो जाएगा!
अगर तुम्हें भागना हैजड़ से उखाड़ना हैतो हमें अपने अन्दर झांकना होगातू जो हम में बैठा है.उसे भागना होगा...उसे भागना होगा... badi sateek rachna. saadar
waaaaaaaaaaah mere bhai jete raho.....karara vyang likha hai is baar aapne wwah
अगर तुम्हें भागना है
जड़ से उखाड़ना है
तो हमें अपने अन्दर झांकना होगा
तू जो हम में बैठा है.
...उसे भागना होगा...
उसे भागना होगा......seedh marm par prahar kiya hai bhai ne...siddhant wadi hone se kuchh nahi hone wala .....bakhiya udhed ke rakh diya hai bhai tumne ham logon ki thanks !
@bahut bahut dhanyawad Dr. shashtri sir....aapne yahan aa kar hame krighya kiya...:)
@thanx anjana
@anand bhaiya...late se hi sahi par aap aaye, achchha laga.....
Bahut sundar prastuti mukesh ji.. aabhar..
hum se desh chal raha hai lekin hum dusro ko kyu doshi mante ho kyu ki hum humare liye kuch aacha nahi chahte hai jab khud ki kuch karne ki tyari hi nahi to kisi ko kya kuch bol ke hone wala nahi
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