जो बनी थी, दूर करने के लिये अदावत!!
पर क्यूं फरियादी यहाँ सहता है जलालत!!!
क्यूं खून चूसते है, वकील जो करते हैं वकालत!!!!
अदालत का शांत कमरा
सन्तरी की तेज आवाज
बा-अदब बा-मुलायजा होशियार!
जज साहब पधार रहे हैं...
एक कटघरे में खड़ा फरियादी
भींगी आँखों में जिसकी है उम्मीद....!!
जज साहब की कड़क आवाज
आर्डर आर्डर!!!
जिसका अर्थ तथाकथित वकील समझता है
सच का कर दो "मर्डर"!!
काले लबादे में खड़ा वकील ...
अदब से...."माई लोर्ड"!!
दुसरे कटघरे में खड़ा ये मुजरिम
है बहुत बड़ा "फ्रॉड"!!
पर वो दे चूका है "रिवार्ड" !!
अत्तः दे दो इसको 'वेल' का "अवार्ड"!!
हाय रे न्याय का मंदिर!
तेरी अजब कहानी है
अपनी भूख मिटाने वाला
पांच - दस रूपये का चोर
हो जाता है अन्दर!!
और करोडो रूपये डकारने वाले
नेता....कहलाते हैं सिकंदर!!!
क्योंकि जज साहब के नजर में
वो होते हैं देश के जरुरत
देश के पालनहार..!!!!
यहाँ तक की अपनी अस्मत लुटा चुकी एक अबला
करती है रुदन चीत्कार..!
माई लोर्ड ! करें मेरे साथ न्याय
सामने खड़े व्यक्ति ने किया है बलात्कार!!
दानव रूपी वकील की ठहरती हुई आवाज
जो भूल चूका भारतीय संस्कार!!!
ऐसे ऐसे प्रश्नों की करता है बौछार!!!!
लगता है भरी सभा में फिर से
कईयों ने किया उस अबला का फिर से बलात्कार...!!!!!
फिर भी जब भी दिखती है
ढकी आँखों वाली न्याय के देवी की मूर्ति!
हर न्याय पसंद इंसान की उम्मीद...
कभी तो ये पट्टी हटेगी!
कभी तो न्याय का तराजू का पलड़ा होगा बराबर
कभी तो अमीरी गरीबी के न्याय में
नहीं होगी पैसे की दीवार...
कभी तो सबको मिलेगा न्याय
नहीं होगा अन्याय....
कभी तो ऐसा होगा...
कभी तो.............!!
56 comments:
जो भूल चूका भारतीय संस्कार!!!
ऐसे ऐसे प्रश्नों की करता है बौछार!!!!
लगता है भरी सभा में फिर से
कईयों ने किया उस अबला का फिर से बलात्कार...!!!!!
aapki inn panktiyon ne mere rongte khade kar diye..sach..aisa hi hota hai, aur dukh ki baat ye hain Mukesh ji ki aisa hi hota rahega...:(
न्यायपालिका के सजीब चित्रण.. मीडिया के साथ लोकतंत्र के इस खम्भे में भी घुन लग गया है... सुन्दर कविता है ...
हाय रे न्याय का मंदिर!
तेरी अजब कहानी है
अपनी भूख मिटाने वाला
पांच - दस रूपये का चोर
हो जाता है अन्दर!!
jab tak bhrst neta rahege aisa hi hoga karoro ka ghotala karne wale jail ke bahar or dus rupey wala chor andar hoga mukesh ji
न्याय पालिका को आपने बहुत सटीकता से पेश किया है ...आपका आभार मुकेश जी
आपका ब्लॉग मिल गया ...हार्दिक प्रसंता हुई ...शुक्रिया
कभी तो सबको मिलेगा न्याय
नहीं होगा अन्याय....
कभी तो ऐसा होगा...
कभी तो............wah.kitna achcha likhe hain.
बहुत सुन्दर चित्रित किया है आप ने, बहुत अच्छी प्रस्तुति
बहुत बहुत शुभकामना
@ जी नीलम जी, यही आज के अदालत की सच्चाई है.............!
@ अरुण सर...........कब ये खाभा सशक्त हो पायेगा?? यही सोचने की बात है...!
@धन्यवाद् ...सोमा, मृदुला जी, दीप जी...........
@केवल जी..............हाँ मेरा ब्लॉग फिर से अपने स्वरुप में आ गया
मुकेश जी ... आज तो आपके व्यंग की धार ने सच का चित्र खींच दिया आँखों के सामने ... बहुत कमाल का लिखा है .....
बहुत खूब मुकेश ...व्यंग बहुत अच्छा लिखते हो भाई मेरे ...इसी विधा में और कोशिश करो भाई...ज्यादा असरदार है और समाज के हित में भी है.!!
सबसे पहले ब्लॉग मिलने की बधाई ..
फिर न्याय पालिका का सटीक वर्णन करने की बधाई
और फिर प्रभावी रचना की बधाई..
हो गईं ३ बधाई
बधाई बधाई बधाई ...अब तो बधाई मानी ही जायेगी...
सार गर्भित रचना..न्याय ,न्यायलय और उसे जुड़े लावलश्कर के बाद ..न्याय की दैन्य स्थिति ..और फिर भी उम्मीद की जलती हुई लौ की .. सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई ..
एक कवि जिसकी रचनाएँ धीमे किन्तु निरंतर गति से परिपक्व हो रही हैं..उसकेलिए उसे दिल से दुआ . ..
shayad aanewali pidhi bhi yahi ummeed leker aaye ki kabhi to hoga nyaay !
बहुत अच्छे विषय को लेकर कलम चलाई है भाई, बधाई और फिर बधाई...........
जहाँ अदालतें खामोश रहती हैं और न्याय बिका करता है तो फिर खरीदेगा तो वही हो जो ताकतवर होगा. कमजोर को न्याय मिलना असंभव है. ददीलें वकील को गरीब को तोड़ देती हैं और फिर गरीब का वकील भी तो कमजोर ही होगा तभी तो उसका मामला देखेगा. पैसे वाले तो पहले ही खरीद लिए जाते हैं. न कभी न्याय के देवी के आँखों कि पट्टी हटेगी और न गरीब को न्याय मिलेगा.
बहुत मार्मिक अभ्व्यक्ति .ऐसे vakeelon v न्यायधीशों को तो दण्डित किया hi jana chahiye jo न्याय प्रकिर्या का मजाक उड़ाते है .
मुकेश भाई
आपकी अदालत ने मुझे महाभारत के उस अदालत के सामने ला खड़ा किया है जहाँ सारे न्यायवादी,महा-न्यायवादी और न्यायविद की उपस्थिति में जो एक बार हुआ,आज बार-बार और लगातार हो रहा .औरतों की कौन कहे यहाँ तो न्याय का ही रोज चीर-हरण और बलात्कार हो रहा है.दर्शक दीर्घा में बैठे लोग मूक दर्शक बनकर चुप-चाप यह घिनौना खेल देख रहे हैं क्योंकि वे भेड़ से भी बदतर और अत्यंत डरे हुए जीव है.बेहद संजीदा कर देनेवाली रचना.
बहुत ही सटीक चित्रण आज की न्याय व्यवस्था का..बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
न्याय की प्रतीक्षा, न जाने कब से।
सटीक चित्रण आज की न्याय व्यवस्था का, निशब्द हूँ मैं ......
अदालतों में लम्बित मुकदमे और उनकी सुनवाई में लगने वाला समय.. न्याय की गुहार लगाकर मर जाते इंसान!! अच्छा चित्रण!
न्याय की इससे अच्छी परिभाषा और क्या होगी....
कि जुर्म कोई करे पर फांसी किसी दूसरे को ही होगी !!
आज भी भरी सभा में नारी की इज्ज़त उतारी जाती है
फर्क सिर्फ इतना है कि न्याय करने वाला खुद तमाशबीन होता है...!!
न्याय प्रक्रिया में देर लगने से कहीं निराशा तो कहीं आक्रोश बढ़ रहा है।
सत्य वचन !
मुझे भी बहुत हंसी आती है जब पढ़ती हूँ की १५००-२००० आदि रिश्वत लेते रंगे हाथों पकडे गए ...बेचारे जेल की हवा खाते हैं ....लाखों करोडो डकार जाने वाले सीना ठोक कर लेते हैं , और विधायक मंत्री पद पाते हैं !
ये अँधा कानून है !
मुकेश जी ,
न्याय पालिका को आपने बहुत सटीकता से पेश किया है .आपका आभार !
आज की न्याय व्यवस्था मे मौजूद विसंगतियों की सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
जो भी कहा बिल्कुल सच कहा !
बहुत खूबसूरती हर पहलु को सामने रखने का खुबसूरत अंदाज़ !
फिर भी जब भी दिखती है
ढकी आँखों वाली न्याय के देवी की मूर्ति!
हर न्याय पसंद इंसान की उम्मीद...
कभी तो ये पट्टी हटेगी!
कभी तो न्याय का तराजू का पलड़ा होगा बराबर
कभी तो अमीरी गरीबी के न्याय में
नहीं होगी पैसे की दीवार...
कभी तो सबको मिलेगा न्याय
नहीं होगा अन्याय....
कभी तो ऐसा होगा...
aaj samjh aur nazar dono badal gayi hai ,isliye patti baandh ke maun hai kyonki wo majboor hai ,sundar rachna hai .
@दिगंबर सर, आनंद भैया...कोशिश जारी है, बस आप लोगो का motivation मिलता रहे..:)
@तीन बधाई फिर तो जबाब में एक शुक्रिया तो बनता है...शिखा..:)
@अंजना दी, रश्मि दी!, आपके कमेंट्स मेरे लिए चवनप्राश का काम करते हैं...:डी
@रेखा दी...पता नहीं कब हमारे देश का ये स्तम्भ शाशाक्त बन पायेगा...!
@धन्यवाद् शालिनी जी.......
sunder panktiyo ne man moh liya.......
नजाने कब खुलेगी ये पट्टी ......
न्यायपालिका के संबंध में आपका पोस्ट अच्छा लगा।
सत्यमेव जयते ही तो कानून का मुख्य स्तंभ है।हमें न्यायपालिका पर विश्वास रखना चाहिए।धन्यवाद।
@ राजीव सर, आपके कमेन्ट सच में दिल को छूते हैं, सच कहा आपने...
@धन्यवाद् कैलाश सर, प्रवीण जी, सुनील सर..
@ बड़े. भैया.(बिहारी बाबु) देखिये न कब अदालत में एक जल्द से जल्द न्याय मिल पायेगा..:)
@ जी पूनम जी...........यही तो विडम्बना हो गयी है...
चक्रब्यूह हैं अदालते
जहाँ आदमी
बन जाता है घनचक्कर
चक्की मिलने से पहले ही
पीस लेता है चप्प्लों से
दो चार मन आटा
जीवंत और सटीक चित्रण आज के हालातों और हमारी न्यायिक व्यवस्था का ......
हाय रे न्याय का मंदिर!
तेरी अजब कहानी है
अपनी भूख मिटाने वाला
पांच - दस रूपये का चोर
हो जाता है अन्दर!!
.
yahee raajniti hai
पांच - दस रूपये का चोर
हो जाता है अन्दर!!
और करोडो रूपये डकारने वाले
नेता....कहलाते हैं सिकंदर!!!
बहुत सही ... सार्थक रचना
यथार्थ प्रस्तुत किया है
आपकी तरह हम भी उम्मीद ही करते हैं
कभी तो ये पट्टी हटेगी!
कभी तो न्याय का तराजू का पलड़ा होगा बराबर
आभार
बहुत सुन्दर चित्रित किया है आप ने, बहुत अच्छी प्रस्तुति
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
@धन्यवाद् डॉ. दिव्या...:) (zeal ), इन्द्रनील जी
@हाँ वाणी जी, अब देखिये न पता नहीं कब ये अँधा कानून अपनी पट्टी हटा पायेगी...
@शुक्रिया सुनील गज्जनी जी,
@धन्यवाद् डोरोथी.........बहुत दिनों बाद आप दिखीं:)
@ आपके कमेंट्स के लिए शुख्रिया मीनाक्षी , ज्योति जी.........:)
आह!...झझकोर दिया ...व्यंग बहुत अच्छा ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .अच्छा लगा....
bahut sundar kvita he --sachmuch vkil hote hi he khun chusane ke lia. ek sundar kvita ke liae aabhar !
faulty judicial system ....murders..many of people...by hearts....or in real life also..good post /
आज के हालात पर करारा व्यंग्य !
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं !
कविता की व्यथा को महसूस करने के बावजूद, न्यायपालिका के प्रति मेरे मन में सम्मान है.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
@अमरेन्द्र जी, पहली बार हमारे ब्लॉग पे आने के लिए दिल से स्वागत है..
@ हरकीरत जी, यही तो इंतज़ार है........:)
@प्रेम सरोवर जी..................कब तक बिस्वास रखें.....?
@बिलकुल सही कहा ललित सर आपने.........:)
@डॉ. मोनिका धन्यवाद्.........
वाह ! सटीक सचिव चित्रण प्रस्तुत किया है मुकेश भाई ।
जब मैँ आपकी रचना को पढ़ रहा था ,
सामने मेरे टीवी पर चित्रण चल रहा था ।
मैँ कंफ्युज था ये टीवी है या मेरा मानसिक पटल है ,
पढ़ते पढ़ते जब रचना समाप्त हुई ।
मुझे अहसास हुआ ये तो मनोज सिंहा जी की कविता का सजीव चित्रण है ।
बहुत ही लाजबाव कविता है । इसकी सटीकता , व्यंग्यता और प्रभाविता का कोई जबाव नहीँ है । आभार !
" देखे थे जो मैँने ख्याब...........गजल "
by email:
Sharmita:
amazing !!!!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
न्याय तो अब अन्याय का पर्यायवाची लगने लगा है.
वास्तव में न्याय तो कहीं दिखता ही नहीं.
@धन्यवाद् मासूम सर,
@अल्पना जी (creative munch ) हमें तो पता ही नहीं था की ये आपका ब्लॉग है.....धन्यवाद्!
@क्या संजय जी, इस बार आप बहुत देर से आया,............कोई नाराजगी..:प
@शुक्रिया अमृता.., दर्शन जी ..आपके शब्दों के लिया..:)
@thanx babban सर!
@ज्ञानचंद जी, राहुल सर, डोरोथी....आप का आगमन ख़ुशी देता है...:)
@डॉ. अशोक....मनोज सिन्हा नहीं सर मुकेश सिन्हा..........आप तो नाम ही भूल गए:)
@धन्यवाद् शर्मिता, वंदना जी, परमजीत सर, कुंवर सर.............बहुत बहुत शुक्रिया.......:)
वाकई बढ़िया
kaanun ki devi ke aankhon me patti bandhi hai ........jab ye patti khul jayegi ummeed shayd kabul ho jaye .......bahut sarthk rachna di hai aapne ....
manoj da...dhanyawad..
rajni jee...bilkul sahi kaha aapne...lekin ye intzaar kab tak?
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