मृत्यु कभी कठिन नहीं होती
होती है कठिनतम वो सोच
कि कहीं मर गया तो ?
इस 'तो' में समाहित है न, कितना दर्द।
महसूस कर पाया पिछले सप्ताह।
हमने सुना है, कोई, कभी
मरा था, सामान्य बुखार से ही
पर वो मरा भी तो निश्चिंतता के साथ
क्योंकि उसे था विश्वास
अंतिम पलों तक कि
बुखार तो बस परेशान ही करेगा
पर, मृत्यु आई चुपके से, उसका वरण करने
जाना कहाँ रुक पाया है कभी
अब बात करता हूँ मुद्दे की
आखिर एक सामान्य व्यक्ति
मुद्दे से इतर भटक के जाए क्यों कहीं
पिछले शनिच्चर की बात है
खूब कोशिश रहती है इन दिनों
इस कठिनतम दौर में
रहे कोशिश बचाव की
मास्क की, हैंड वाश की, सोशल डिस्टेंसिंग की
यहां तक कि सेल्फ एसेसमेंट और
'आरोग्य सेतु' एप के स्टेटस पर भी
रखी जाती है नजर।
हां तो इस बीते शनिच्चर ने रंग दिखाया
आरोग्य के हरे रंग के स्टेटस ने
परिवर्तित हो कर भूरे रंग में
तरेरते हुए आंख बस इतना बताया कि
"आपके संक्रमण का जोखिम उच्च है"
आप कोरोना संक्रमित के जद में आये
पिछले दिनों।
एप्प के बदलते रंग के साथ
बदलता चला गया चेहरे का रंग
गुलाबी, लाल और नीला
पहले मुस्कुराया, बेवकूफ कहीं का
फिर विस्मय के साथ सोचते हुए
हुआ चेहरा रक्तिम
कि कब कैसे क्यों कोई ऐसे पास आया
और फिर नीला हुआ माथा
उफ, अब कैसे, क्या करूँ
कितने प्रश्नों को समेटे रखते हैं हम
मुस्कुराहट उड़ी
उड़ गई नींद
मनोवैज्ञानिक तनाव को समेटे
कभी मुस्कुराए कभी आभासी रूप से
धुएं में उड़ाई परेशानी।
पर धड़कनों ने बताया अभी मरे नहीं
जीते रहो... दर्द को समेटे हुए।
ख़ुश भी हुए, बेशक थी हंसी खोखली
जब किसी ने कहा
ये ऐप है झूठा
कैसे बताएगा संक्रमण, सोचो जरा।
तब तब, बस कह पाए
कि तुम्हारे मुंह में घी शक्कर।
लेकिन कहाँ उतार पाए
डर का केंचुल।
हल्की खराश तक ने किया और परेशान
घण्टे दो घण्टे में
थर्मामीटर से मापते रहे तापमान
बेशक खुद में महसूसते रहे ताप
पर नहीं विस्तार पाता था पारा
चैन और बेचैनी से गुंथी रस्सी से
सी-सॉ करते
होते रहे हलकान।
एक ऑफिस मित्र ने दी सलाह
बता कर रखो अपनी
वो वसीयत, जिसमें है रजिस्टर्ड
ढेरों स्नेह और मंगलकामनाओं की थाती।
रह कर कमरे में आइसोलेट
जीते रहे, कुछ ऑक्सीजन
और मर जाने के बाद की कल्पनाओं को
एक मित्र ने आईक्यू आजमाया फिर बताया
संक्रमण का असर होता है
छठवें दिन।
समय बीता
हर नए दिन में नजर ठहरती
एप के रंग पर
पर, उसने तो जैसे कह दिया
मेरे वाला ब्राउन, है सबसे बेस्ट।
उफ सपने भी हो गए
धूल-धूसरित भूरे, बेशक थी चाहत
हरियाली की।
सप्ताह बीता ऐसा जैसे बीता एक जन्म
फिर वही, खुली नींद तो
सबसे पहले मन ने कहा, देखूं आरोग्य स्टेटस
पर एकाएक हुई गले में जलन
और सिहर गया पूरा बदन
आज तो असर ले ही आया कोरोना
उफ सवेरे सवेरे गर्म पानी का किया सेवन
चिंता की धनक तैर रही थी माथे पर
क्या करूँ, क्या न करूं
करते करते, चाहते न चाहते
खोल चुका था आरोग्य एप
इस्स, हरियर रंग की हुई फुहार
और बस .....
जिंदगी का मनोविज्ञान ऐसा
कि रंगों के परिवर्तन मात्र ने भर दी जिंदगी
सांसे हो गयी स्थिर
मन हो गया सतरंगी ....!
~मुकेश~
9 comments:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत खूब
अच्छी गवेषणा है।
डर के आगे जीत है
खौफ का मनोविज्ञान!😊
वाह
मनोविज्ञान का कितना महत्व है जीवन में ... कई बार जानते हुए भी एक डर किसी अंजान डर की राह में धकेल देता है
एप करोना समाज के हालात और भी बहुत कुछ जो हाथ में नहीं पर इंसान समझता है ये सब मेरे हाई हाथ में है ...
अच्छी रचना है बहुत ...
कोरोना के इस दौर में मनोवैज्ञानिक दबाव को बहुत सुन्दर तरीक़े से लिखा। बहुत भावपूर्ण रचना। बधाई।
आज सबका यही हाल है उसे बहुत खूब लिखा
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