प्रेम तो बस
डूबते हुए भी तैरते रहने का बहाना मात्र है
आखिर मर जाना कहाँ कोई पसन्द करता
इन दिनों...
....है न !
क्षणिका सा हो गया है, क्षणिक प्रेम
जब भी अच्छे से बात करती हो, हो जाता है
और फिर,
यूं डूबें कि तैर न पाएं
प्रेम में तेरे तर ही जाएं...
काश
ऐसी स्थिति माने
आगोश का सुख
फिर भरी आंखों को कौन निहारे
कभी सहमति हो शब्द भर की
और न चाहते हुए भी मर ही जाएं
भरी आंखों का वाचालपन शब्दों को मौन तो नहीं करता
वैसे भी एकतरफा आकर्षण ऐसे है
जैसे
भोर के साढ़े चार बजे
मिलेगी
मृत्यु दंड, पक्का पक्का !
सुना ही होगा न,
मुस्कराहट
जिंदगी की लड़ाई का सबसे कारगर हथियार है ।
3 comments:
बहुत सुन्दर
भरी आँखों का वाचालपन शब्दों को मौन तो नहीं करता...वाह...सुन्दर लेखन
मेरी रचनायें पढ़ें- कठपुतली
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