जिंदगी की राहें

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Friday, August 26, 2022

ज़ख़्म


सहेजा हुआ है, मैंने ज़ख़्म अपना छिले हुए टखने और कोहनी बता रही मेरी गुस्ताखियाँ दिखते हैं उस पर रक्त के धब्बे जैसे गुलाब की सुर्ख़ पंखुड़ियां देह मेरी जैसे मिट्टी-उर्वरक अंकुरित होती रही उस पर कुछ मासूम यादें, हमने उसके माथे पर लगा दिया है काजल का टीका ओस के निर्मल अहसास सी, बलबलाई खून की एक बूँद मेरे ही सूखे घाव पर ओह, सुवासित हो गयी पीड़ा भी अपने दर्द में अपनी गरम फूंक से दे रहा सांत्वना कि वो याद करती होगी न पक्का-पक्का क्यारियों में बेशक न खिल पाये गुलाब आखिर कौन सींचे हर दिन, हर पल पर, तुम्हारा दिया ज़ख़्म तो स्मृतियों में रिसता रहेगा ताउम्र वैसे भी, कुरेदे हुए घाव दिख जाते हैं सुर्ख लाल किसी ने कहा भी, कैक्टस के फूल खिलखिलाते हैं रेगिस्तान में आखिर कुछ टीस जिगर में ख़ुश्बू जो भरती है जिंदगी तुम बस दर्द देती रहना बेइंतहा ! माय लॉर्ड दर्द, जिन्दा रहना और जख्म को सहेजे रखना, जिन्दादिली का सबूत है न ! ~मुकेश~