जिंदगी की राहें

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Monday, November 30, 2015

प्रेम के वैज्ञानिक लक्षण



जड़त्व के नियम के अनुसार ही, वो रुकी थी, थमी थी,
निहार रही थी, बस स्टैंड के चारो और
था शायद इन्तजार बस का या किसी और का तो नहीं ?

जो भी हो,  बस आयी,  रुकी, फिर चली गयी
पर वो रुकी रही ... स्थिर !
यानि उसका अवस्था परिवर्तन हुआ नहीं !!

तभी, एकदम से सर्रर्र से रुकी बाइक
न्यूटन के गति के प्रथम नियम का हुआ असर
वो, बाइक पर चढ़ी, चालक के कमर में थी बाहें
और फिर दो मुस्कुराते शख्सियत फुर्र फुर्र !!

प्यार व आकर्षण का मिश्रित बल
होता है गजब के शक्तिसे भरपूर
इसलिए, दो विपरीत लिंगी मानवीय पिंड के बीच का संवेग परिवर्तन का  दर
होता  है, समानुपाती उस प्यार के जो  दोनों  के  बीच पनपता  है
प्यार की परकाष्ठा  क्या न करवाए !!
न्यूटन गति का द्वितीय नियम, प्यार पर भारी !!

प्रत्येक क्रिया के  बराबर और  विपरीत प्रतिक्रिया
तभी तो
मिलती नजरें, या बंद आँखों में सपनों का आकर्षण
दुसरे सुबह को फिर से करीबी के अहसास के साथ
पींगे बढाता प्यार
न्यूटन के तृतीय नियम के सार्थकता के साथ  !!

गति नियम के
एक - दो - तीन  करते  हुए  प्यार  की प्रगाढ़ता
जिंदगी में समाहित होती हुई
उत्प्लावित होता सम्बन्ध
विश्थापित होते प्यार की तरलता के बराबर !!

जीने लगते है आर्कीमिडिज के सिद्धांत के साथ
दो व्यक्ति
एक लड़का - एक लड़की !!



Thursday, November 19, 2015

दिवाली के दुसरे दिन

दिवाली के दुसरे दिन प्रदूषित आसमान

दिवाली  के दूसरे दिन की सुबह
अजीब सी निरुत्साहित करने वाली सुबह
चमकती रात के बाद बुझे-बुझे सूर्य के साथ
कुछ नहीं बुझी लड़ियों की दिखती ख़ामोशी
बुझ चुके दीपक,  और पिघली मोमबत्तियां
बिना चमक के हो चुकी होती है सुबह !!

चारो और फैले पटाखों के अवशिष्ट
रद्दी, चिन्दी चिन्दी हुए कागज़,
मिठाई के खाली  डब्बे
काले कार्बन से बनते बिगड़ते सांप
जो किसी बच्चे ने देर रात जला कर
फैलाया था प्रदूषण का भभका
लग रहा था डंसेगा, फैला रखा था फन !

ऊबता हुआ दिल, थका हुआ मन
मुंदी मुंदी आँखों से, जलते प्रदूषण के आसमान  में
ऊँघते चेहरे के साथ झांकता बालकनी से मैं
देखता दीवाली के दूसरे दिन अजीब सी सुबह !

कुछ छोटे छोटे बच्चे
ढूंढ रहे थे कूड़े में
तभी इस उदास सुबह  में दिखा मुझे
एक चंचल प्यारी सी मुस्कराहट
चहक कर चिल्लाया, अपने साथ वाले को उसने बुलाया
देख भाई - बम !
नहीं है इसमें पलीता, पर फूटने से बचा रह गया न !

सच में कुछ खुशियाँ बिना पलीते के पटाखे सी
मुस्कराहट भरती है
हाँ फिर जब वो बच्चा उसको फोड़ने की जुगत लगाएगा
तो वो हो जाएगी फुस्स !!

माँ लक्ष्मी को भी शायद नहीं लगता मनभावन
तभी तो ऐसे बच्चे के बीने-चुने हुए पटाखे भी
नहीं करते आवाज !!

काश बेशक दिवाली के दिन नहीं बिखरी खुशियाँ
हर जगह
पर काश !!
कुछ तो फैले ख़ुशी, हर नन्हे के मन में
अमीरी गरीबी से इतर !!

माँ !! या देवी सर्व भूतेषु !!
बस पटाखे की आवाज गौण कर, सिर्फ खुशियाँ की आवाजें भर दो
हर नन्हों के मन !!

इतनी सी उम्मीद !!

दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल 2015 के लिए चयनित मेरी कविता 

Sunday, November 1, 2015

सुनो!


सुनो !
ये सम्बोधन नही है
इसके या उसके लिए
समझ रहे न तुम !
ओ हेल्लो !!

तो सुनो न
सुन भी रहे हो
या सुनने का बस नाटक!

सुनो !
बेशक करो नाटक
या फिर
रचते रहो स्वांग!!

तुम्हारा
ये स्वांग ही
है बहुत
हम जैसे हारे हुए लोगो का
सम्पूर्ण सम्बल !!

तो बस !!
बेशक तुम मत करना पूरा
मत मानना
मेरी कोई भी बात !

पर मेरे
हर 'सुनो' सम्बोधन का
ध्यान मग्न हो
सुनने का स्वांग
तो रच ही सकते हो
है ना!

सुनो
सुन रहे हो न गिरिधर !!
बड़े नाटकबाज हो यार !!
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सुनो न !!!