जिंदगी की राहें

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Wednesday, June 1, 2011

धुंधलकी सुबह!!


















धुंधलकी सुबह!!
बड़े शहर की बेगानी सुबह!!
नीले बादलो में धुल के गुब्बार वाली सुबह!
चिड़ियों की चहचहाट के बदले 
नल में आने वाले पानी के बूंदों की टप टप
ने बताया की हो चुकी है सुबह....

झप्प से खुली आँख
पर मुर्गे के बांग के बदले
म्युनिसिपलिटी के स्वीपर के झारू की खर-खर...
कह उठी!! उठ जा ..........हो चुकी सुबह..

फिर से आँख मिंचा
कि दिखे कोई सुबह का सपना सुहाना
पर धप्प से दरवाजे पे कुछ पड़ने कि आयी आवाज
अरे रबर से बंधा पेपर का पुलंदा जो पड़ा था आ कर...
जो कह रही थी....बेबकुफ़! हो गयी सुबह...!

छत पे पानी की बाल्टी लेकर पहुंचा 
तो प्रदूषित हवा में गमले के अध्-खिले फूल 
पानी के उम्मीद में खिलने का कर रहे थे इंतज़ार
समझ में आ गया कि हो गयी है सुबह...

एक बड़े शहर कि
खिली हुई नहीं!! बल्कि धुन्धलकी सुबह !!
न कोई रूमानियत 
न कोई सदाबहार ताजगी...
बस हर एक नए दिन में वही पुरानी सुबह
वही मशीनी व प्रदूषित दुनिया में जीते लोग....
और वही उनकी धुन्धलकी सुबह.......!!