जिंदगी की राहें

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Tuesday, April 21, 2015

ढक्कन सीवर का ......



ढक्कन सीवर का
भीमकाय वजन के साथ
ढके रहता है, घोर अँधेरे में
अवशिष्ट ! बदबूदार !! उफ़ !!

जोर लगा के हाइशा !
खुलते ही, बलबलाते दिख पड़े
कीड़े-पिल्लू! मल-मूत्र!
फीता कृमि ! गोल कृमि आदि भी !!

रहो चिंतामुक्त !
नहीं बैठेगी मक्खियाँ नाक पर
आज फिर 'वो' उतर चुका है
अन्दर ! बेशक है खाली पेट
पर, देशी के दो घूँट के साथ
वो आज फिर लगा है काम पर !!

सेठ ! अमीर ! मेहनतकश ! किसान !
सभी अपने मेहनत का शेष
रखते हैं तिजोरी में !

एक लॉकर ये भी
शेष अवशेष का
कर रहा था, बेचारा हाथ साफ़
सडांध और दुर्गन्ध के बीच
चोरों की तरह, नशे के साथ
खाली पेट ! दर्दनाक !!

आखिर भूख मिटानी जरुरी है
है न !
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भूख बहुत कुछ करवाती है !!