जिंदगी की राहें

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Tuesday, October 31, 2017

~करेले~


हरी लताओं से लटके करेले
सुर्ख पीले फूलों के साथ
खूब चटकीले व गड्डमगड्ड सी सतह वाले
हरे-हरे करेले

दिखते तो हैं ऐसे,
जैसे कुछ लम्बे व कुछ गोल
दिवाली की रात को
अंधियारे को दूर करने के लिए
लटके हो तारों में
हरे-हरे खिलखिलाते
तारों से प्रस्फुटित प्रकाश!

पर,
मनभावन दिखने वाली
हर चमकती वस्तु
कहाँ होती है सुहानी
होंठो पर रखने भर से
शायद अन्दर का कड़वापन
दूर कर देने को रहती है
उतावली

नहीं कर पाते उदरस्थ
पर है याद कि अम्मा समझाती
पढ़े हो न
"निंदक नियरे राखिये
आँगन कुटीर छवाय
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय"

खाओ तो कड़वा
पर कड़वापन होता है
रक्त प्रवाह को सहज करने का
एक उपाय।
नमकीले पानी से धुलकर
इन्द्रधनुष दिखाना
है इसका सहज स्वाभाव
मने
हर कड़वेपन में होता है
जिंदगी जीने का सच्चा फलसफा !

भीतरी कड़वाहट को निगलना
फिर घोंटने का उतावलापन
है बड़ी समझ और हिम्मत का काम
तभी तो कहते हैं न
कभी अनजाने कभी जानबूझ कर
मज़बूरी का कड़वा घूँट
देता है सार्थक दिशा जीवन के प्रवाह का

~मुकेश~