जिंदगी की राहें

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Wednesday, October 16, 2013

प्रेम-कविता




प्रेम! प्यार! इस ठहरती-दौड़ती जिंदगी में कभी एक बार तो आए मानो सितंबर महीने के मेंगों शावर की तरह.. या सुनहली साँझ के चमचमाते सूरज की तरह.. या फिर ऐसे समझो, मन में कोई प्रेम-कविता पनपी..... या फिर! अचानक मूसलाधार बारिश रेनिंग कैट्स एंड डॉग्स... बरसे प्यार, सिर्फ प्यार अंदर तक की संवेदनाएं हो जाएँ गीली ऐसे जैसे सूखे बंजर विस्तार में एक दम से उग आए.. जंगली घास... लहलहाए...... फिर?... फिर क्या ? जिंदगी! जीवन! प्यार! खुशी! सब आपस में गड्मगड.. फिर, बस रच जाएगा एक सुंदर “प्रेम-गीत”! और तब.. तब क्या ? तब भी हवाएँ सूखे पत्तों को उड़ा ले जायेंगी तब भी भौरें करेंगे पुष्प निषेचन पहले के तरह ही पर, प्रेम-गीत वो प्रेममय हो जाएगा बस इतना सा ही अंतर.. इसीलिए तो बस प्रेम! जीवन में एक बार तो आए ... बस एक बार!!