जिंदगी की राहें

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Sunday, November 1, 2015

सुनो!


सुनो !
ये सम्बोधन नही है
इसके या उसके लिए
समझ रहे न तुम !
ओ हेल्लो !!

तो सुनो न
सुन भी रहे हो
या सुनने का बस नाटक!

सुनो !
बेशक करो नाटक
या फिर
रचते रहो स्वांग!!

तुम्हारा
ये स्वांग ही
है बहुत
हम जैसे हारे हुए लोगो का
सम्पूर्ण सम्बल !!

तो बस !!
बेशक तुम मत करना पूरा
मत मानना
मेरी कोई भी बात !

पर मेरे
हर 'सुनो' सम्बोधन का
ध्यान मग्न हो
सुनने का स्वांग
तो रच ही सकते हो
है ना!

सुनो
सुन रहे हो न गिरिधर !!
बड़े नाटकबाज हो यार !!
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सुनो न !!!