Tuesday, January 24, 2023
Friday, August 26, 2022
ज़ख़्म
सहेजा हुआ है, मैंने ज़ख़्म अपना छिले हुए टखने और कोहनी बता रही मेरी गुस्ताखियाँ दिखते हैं उस पर रक्त के धब्बे जैसे गुलाब की सुर्ख़ पंखुड़ियां देह मेरी जैसे मिट्टी-उर्वरक अंकुरित होती रही उस पर कुछ मासूम यादें, हमने उसके माथे पर लगा दिया है काजल का टीका ओस के निर्मल अहसास सी, बलबलाई खून की एक बूँद मेरे ही सूखे घाव पर ओह, सुवासित हो गयी पीड़ा भी अपने दर्द में अपनी गरम फूंक से दे रहा सांत्वना कि वो याद करती होगी न पक्का-पक्का क्यारियों में बेशक न खिल पाये गुलाब आखिर कौन सींचे हर दिन, हर पल पर, तुम्हारा दिया ज़ख़्म तो स्मृतियों में रिसता रहेगा ताउम्र वैसे भी, कुरेदे हुए घाव दिख जाते हैं सुर्ख लाल किसी ने कहा भी, कैक्टस के फूल खिलखिलाते हैं रेगिस्तान में आखिर कुछ टीस जिगर में ख़ुश्बू जो भरती है जिंदगी तुम बस दर्द देती रहना बेइंतहा ! माय लॉर्ड दर्द, जिन्दा रहना और जख्म को सहेजे रखना, जिन्दादिली का सबूत है न ! ~मुकेश~
Thursday, August 18, 2022
लिपस्टिक
Wednesday, April 6, 2022
हुकूमत
Sunday, February 27, 2022
बारूद और प्रेम
Thursday, February 3, 2022
मन्नत का धागा
Monday, January 10, 2022
... है न !
पहली कविता जब रश्मि दीदी केव वजह से एक साझा संग्रह में प्रकाशित हुई थी और उस अधपके प्रेम को इमरोज के हाथों विमोचित होते देखा था पर तब ये तक न पता था कि इमरोज़ क्यों पहचाने जाते हैं । यानी मैं ये इसलिए बताना चाहता हूँ कि पता चले उमर से इतर मेरा साहित्यिक सफर बेहद छोटा है । 😊
मैं मन से, वो नादान बालक जैसा हूँ जो हर बार कुछ भी नया कर पाने पर, पीठ पर स्नेह की थाप महसूसना चाहता है । ☺️ तभी तो जब पिछले दिनों अमिताभ बच्चन ने "है न" ट्वीट किया, तो मैंने सहेज लिया 😊
पहला कविता संग्रह "हमिंग बर्ड" हिन्द युग्म से ही प्रकाशित हुआ और उस समय दोस्तों ने उसे हाथों हाथ लिया । उस संग्रह से इतनी भर खुशी मिली कि 800 प्रतियों का पहला संस्करण खत्म होने के बाद, दूसरे संस्करण को छापा गया। 😊
इसके बाद "लाल फ्रॉक वाली लड़की" छोटी सी लप्रेक संग्रह को बोधि प्रकाशन ने प्रकाशित किया। डरते-डरते, जिसका प्रकाशन हुआ, उसको सराहना के शब्दों का अंबार मिला। ये कहना बेशक अतिशयोक्ति होगी पर ये सच है कि उन दिनों जारी बेस्ट सेलर लिस्ट्स में कइयों से बिक्री में ऊपर थी ये चहकती लड़की वाली किताब। अंततः नव भारत टाइम्स ने वर्ष की लिस्ट में इसको दर्ज भी किया 😊
तो करीबन तेरह वर्षों से कविताएँ लिख रहा हूँ और तीसरी किताब के प्रकाशन की बाट जोह रहा हूँ। सोचा था पुस्तक मेले में इसकी चहचहाट को सँजोउंगा । पर ऐसा लगता है जैसे समय ने सब कुछ को स्टेचू कह रखा हो । 😊
तो तकिया कलाम जैसे शब्द "... है न !" मेरे कविताओं में बराबर आते हैं, उसे ही शीर्षक बना कर हिन्द युग्म नया संग्रह ला रहा है। कवरपेज की पेंटिंग मित्र डॉ. अंजना टण्डन ने बनाई है, जो स्वयं में वरिष्ठ और समर्थ कवयित्री हैं । उनका स्नेह मेरे लिए आशीष जैसा ही है 😊
फिर से बता रहा हूँ, मेरी कविताओं में प्रेम होता है, होता है विज्ञान - भूगोल आदि आदि। और साथ मे होते हैं रिश्ते, स्नेह व प्यार। कवर को मेरे छोटे भाई से मित्र दिव्य ने देखते ही कहा - मैं देख पा रहा हूँ कि इस बार लाल फ्रॉक वाली लड़की बड़ी (mature) हो गयी है और हमिंग बर्ड पेड़ पर, अपने और साथियों के साथ आ गयी है (सामाजिक हो गयी है)। ... है न! 😊
तो
सपनों की सरजमीं है ये
और फिर, जिस पर
उम्मीदों का चद्दर ओढें
अहसासों के तकिये पर
लेटा हूँ मुंह ओंधे
बस इतना करना
मेरे बाएं काँधे पर हौले से थपकी देकर कहना
उम्मीदों की लकीरें चेहरे पर बेशक ज्यादा हैं
फिर भी, लिखते रहना
पढ़ेंगे हम ।
... है न ! #है_न । 😊💝