जिंदगी की राहें

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Wednesday, August 7, 2013

टाइम मशीन मे बंधती जिंदगी




लगता है !
फिर से हो जाऊंगा लेट
ऑफिस जाते समय
जूते के लेस को बांधते हुए
जब गई दीवाल घड़ी पर नजर
हर दिन, छोटी-मोटी वजह
और अंततः
ऑफिस एंट्री गेट पर लगी
पंचिंग मशीन पर रखी उंगली
बता ही देती थी
हो ही गए न, दस-बीस मिनट लेट!

कल तो पक्का
समय पर नहीं, समय से पहले पहुंचूंगा
दिया खुद को ढाढ़स
आधे घंटे पहले का लगाया एलार्म
श्रीमती जी को भी दी हिदायत
सुबह उठा भी समय से, जगा
फिर आँखों ने ली एक हल्की सी झपकी
जो बन गया खर्राटा
फिर वही ढाक के तीन पात
पंचिंग मशीन में दर्ज दस-बीस मिनट लेट !

टाइम मशीन में बंधती जिंदगी
हर सुबह लाती खुद पर खीज
हर नया दिन बदल जाता है कल में
आने वाला नया कल होगा न परफेक्ट
इसी सोच में कटती जा रही जिंदगी
इस्स! ये कल आएगा कब
काश मिल पाती
समय की स्वतन्त्रता
ताकि हर दिन खुद को न लगता
फिर से हो गए न दस-बीस मिनट लेट!