कागज में कलम घसीटी..
कि अनायास ही ..
कलम से मुड़ा तुड़ा सा
एक शब्द
उकेरित हो उठा...
अनायास ही वो याद !
चेहरे पे एक हलकी सी
ला गयी..सिहरन....
अनायास ही लगा
एक तरुणी......
जो सामने है बैठी..
और एक दम से
कह उठी......
कैसे हो????
अनायास ही उमड़
आई कुछ स्मृतियाँ..
नदियों के लहरों
के उद्वेग की तरह...
जो अनायास
की कह उठी..
"आखिर
भूल ही गए न..."
पर फिर भी
अनायास ही
चेहरे पे आ ही गयी
एक मुस्कराहट
जो धीरे से चेहरे से
गुजरती हुई
कानों में कह गयी...
जो होता है
अच्छा होता है !
और वही
शायद
मंजूरे खुदा होता है.....!!!!!!