जिंदगी की राहें

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Wednesday, April 25, 2018

चश्मे की डंडियाँ


तुम और मैं
चश्मे की दो डंडियाँ
निश्चित दूरी पर
खड़े, थोड़े आगे से झुके भी !
जैसे स्पाइनल कोर्ड में हो कोई खिंचाव
कभी कभी तो झुकाव अत्यधिक
यानी एक दूसरे को हलके से छूते हुए
सो जाते हैं पसर कर
यानी उम्रदराज हो चले हम दोनों
है न सही
चश्मे के लेंस हैं बाइफोकल !
कनकेव व कन्वेक्स दोनों का तालमेल
यानि लेंस के थोड़े नीचे से देखो तो होते हैं हम करीब
और फिर ऊपर से थोडा दूर
है न एक दम सच .....
सच्ची में बोलो तो
तुम दूर हो या हो पास ?
ये भी तो सच
एक ही जिंदगी जैसी नाक पर
दोनों टिके हैं
बैलेंस बना कर ...... !
बहुत हुआ चश्मा वश्मा !
जिंदगी इत्ती भी बड़ी नहीं
जल्दी ही ताबूत से चश्मे के डब्बे में
बंद हो जायेंगे दोनों .......
पैक्ड !! अगले जन्म
इन दोनों डंडियों के बीच कोई दूरी न रहे
बस इतना ध्यान रखना !!
सुन रहे हो न
तुम बायीं डंडी मैं दायीं
अब लड़ो मत
तुम ही दायीं
~मुकेश~
(ये कविता हिंदी अकादमी, दिल्ली के पत्रिका 'इन्द्रप्रस्थ भारती' में प्रकाशित हुई है )

Saturday, April 14, 2018

मेरा दो कमरे का घर


प्रकाशित 

हुआ कुछ ऐसा कि
शहरी जंगल में बसा मेरा दो कमरे का घर
घर की छोटी सी  छत
वहीँ कोने में कुछ गमले
थोड़ी सी हरियाली
थोड़ी रंगीन पंखुरियां
खिलते फूलों व अधखिली कलियों की खुश्बू
एक दिन, अनायास गलती से, गुलाब के गमले में
छितर गईं थीं कुछ पंखुरियां,
फिजां भी महकती
वाह! क्या अहसास और कैसी थी ताजगी !!

साथ ही, कुछ और भी हुआ ऐसा कि
एक प्यारी सतरंगी तितली
जिसका लार्वा बेशक पनपा था
गाँवों के गलियारे में
पर, भटक कर, छमक कर,
धुएं के दावानल में बहकर
पहुंचा
शहर की पथरीली नदियों सी सड़क पर
बैठ न पाया कहीं, इस तपती धरती पर
न, ही कर पाया फूलों के निषेचन में
कोई भी सहयोग !!
निराश फूलों के पराग सूखते गए, उम्मीदों के साथ !!

वही चमकीली इंद्रधनुषी तितली
आज नामालूम
कैसे फड़फड़ा रही थी
 गमले की गुलाबी पंखुड़ियों पर
बैठी थी एकाकीपन के साथ
पर थी रंगत ऐसी
जैसे अन्दर से खिलखिलाहट उमड़ रही हो !

बेचारी तितली ने पता नहीं
कैसे क्यों कब, कितने किलोमीटर का काटा सफ़र
अब जा कर उस पंखुड़ी पर
सुस्ताते हुए जी रही थी
पंखों पर लिपट रहे थे
उन्मुक्त पराग कण
जिससे, कुछ उसके पंखो का बदला हुआ था वर्ण
मेरे मोबाइल के कैमरे की क्लिक
कर रही थी अब बयान
- इस शहरी जंगले में
खिले फूल की सार्थकता !!

लगा कुछ ऐसा, जैसे कहा हो तितली ने
- थैंक यू !!

ऐसे ही हर, छत पर खिलाओ न गुलाब ! प्लीज !!
जिंदगी सतरंगी उम्मीदों भरी हो
बस इत्ती सी चाहत :-)