जिंदगी की राहें

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Thursday, June 6, 2019

सुट्टे की धमक


सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ
कि क्या सोचूं ?
जी.एस.टी. के उपरान्त लगने वाले टैक्स पर करूँ बहस,
या, फिर आने वाले पे कमिशन से मिलने वाले एरियर का 
लगाऊं लेखा जोखा
या, सरकारी आयल पूल अकाउंट से
पेट्रोल या गैस पर मिलने वाली सब्सिडी पर तरेरूं नजर
पर, दिमाग का फितूर कह उठता है
क्या पैसा ही जिंदगी है ?
या पैसा भगवान् नहीं है,
पर भगवान की तुलना में है ज्यादा अहम् !
और, अंततः, बस अपने भोजपुरी सिनेमा के रविकिशन को
करता हूँ, याद, और कह उठता हूँ
"जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा"
अब, अंतिम कश लेने के दौरान
चिंगारी पहुँचती है फ़िल्टर वाले रुई तक
भक्क से जल उठता है
तर्जनी और मध्यमा के मध्य का हिस्सा
और फिर बिना सोचे समझे कह उठता हूँ
भक्क साला .....
जबकि कईयों के फेसबुक स्टेटस से पा चुका हूँ ज्ञान
गाली देना पाप है
रहने दो, डेली पढ़ते हैं, डब्बे पर
स्मोकिंग इज इन्ज्युरिअस टू हेल्थ
जलते गलते जिगर की तस्वीर के साथ
फिर भी, वो धुएं का अन्दर जाना,
आँखों को बाहर निकलते हुए महसूसना
है न ओशो के कथन जैसा
बिलिफ़ इज ए बैरियर, ट्रस्ट इज ए ब्रिज !
लहराता हूँ हाथ
छमक कर उड़ जाती है सिगरेट, साथ ही
हवाओं के थपेड़े से मिलता है आराम
फिर बिना सोचे समझे महसूसता हूँ
उसके मुंह से निकलने वाले जल मिश्रित भाप की ठंडक
देती है कंपकपी
ऐसे भी सोचा, उसकी दी हुई गर्मी ने भी दी थी कंपकंपी
अंततः
दिमाग कह उठा, कल का दिन डेटिंग के लिए करो फिक्स
प्यार समय मांगता है
बिना धुंआ बिना कंपन
बेटर विदाउट सिगरेट ... है न !!!!
~मुकेश~